लोकसभा चुनाव 2019 (Loksabha Election 2019) की उल्टी गिनती शुरु हो गई है और भारतीय चुनाव आयोग (ECI) मार्च के पहले सप्ताह में चुनाव कार्यक्रमों की घोषणा कर सकती है. हम भी चुनावों के लिए कमर कस रहे हैं और एक सीरीज के साथ आ रहे हैं. क्या हुआ था 2014 लोकसभा चुनाव में? हम हर राज्य में 2014 में हुए लोकसभा चुनाव का विश्लेषण करेंगे और कोशिश करेंगे कि क्या इस बार भी इतिहास खुद को दोहराएगा या फिर रिजल्ट कुछ और सामने आएगा.
अब, असम राज्य में राजनीतिक परिदृश्य पर नजर डालते हैं. सर्बानंद सोनोवाल की अगुवाई वाली भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) 2016 से राज्य में शासन कर रही है. यह राज्य की पहली बीजेपी सरकार है.
असम में 2001 से 2016 तक राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में तरुण गोगोई के कार्यकाल के बाद कांग्रेस पार्टी यहां बैकफुट पर है. नागरिकता संशोधन विधेयक पर असम गण परिषद (एजीपी) ने अपना समर्थन बीजेपी (BJP) से वापस ले लिया, जिसके बाद कांग्रेस (Congress) के अंदर फिर से असम में जीत की उम्मीद जग गई है. हालांकि बीजेपी सरकार को असम में फिलहाल कोई दिक्कत नहीं है क्योंकि यहां बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) का समर्थन उसके साथ है.
2014 के लोकसभा चुनावों में, बीजेपी ने इस राज्य में अच्छा प्रदर्शन किया. वहीं कांग्रेस की रैली यहां कम हुई. आइए इसपर विस्तार से चर्चा करते हैं-
2014 के लोकसभा चुनावों में असम में क्या हुआ था?
2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने पहली बार असम में 7 सीट पर परचम लहराया. 2014 लोकसभा चुनाव में असम में तीन चरण में 7,12 और 24 अप्रैल मतदान हुआ. कांग्रेस यहां बदरुद्दीन अजमल की पार्टी ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और 3 सीट पर कब्जा जमाया. कोकराझार लोकसभा सीट (Loksabha Seat) पर निर्दलीय नब कुमार सरनिया बोडोलौंड पीपुल्स फ्रंट के तत्कालीन सांसद संसुमा खुंग्गुर को मात देकर जीत दर्ज की. ब्रह्मा रहे जिनको 278,649 वोट मिले थे जो कि कुल वोट का 22.77 फीसदी था।
असम में 36.86 प्रतिशत सीट शेयर के साथ बीजेपी को 55,07,152 वोट मिले. वहीं कांग्रेस को 29.90 प्रतिशत सीट शेयर के साथ 44,67,295 वोट मिले. वहीं, एआईयूडीएफ को 14.98 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 22,37,612 जनता का वोट मिला. वहीं असम गण परिषद (एजीपी) जो राज्य में 1985 से 1990 और 1996 से 2001 तक दो बार राज्य में शासन कर चुकी थी उसे 3.87 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 5,77,730 वोट मिले.
वहीं, भगवा पार्टी ने गुवाहाटी, नोवोंग और मंगलदोई लोकसभा सीटों पर जीत को बरकरार रखा था और अपने चुनावी इतिहास में पहली बार तेजपुर, जोरहाट, डिब्रूगढ़ और लखीमपुर सीटें जीतीं. कांग्रेस ने स्वायत्त जिला कलियाबोर और सिलचर सीटें जीतीं. असम में 17 लोकसभा सीट पर ये विजेता रहे.
गुवाहाटी से बीजेपी उम्मीदवार विजय चक्रवर्ती, मंगलदोई से बीजेपी उम्मीदवार रामेन डेका, नौगांव से बीजेपी उम्मीदवार राजेन गोहेन, लखीमपुर से बीजेपी उम्मीदवार सर्बानंद सोनोवाल, जोरहाट से बीजेपी उम्मीदवार कामाख्या प्रसाद तासा, डिब्रुगढ़ से बीजेपी उम्मीदवार रामेश्वर तेली और तेजपुर लोकसभा सीट पर बीजेपी उम्मीदवार राम प्रसाद शर्मा ने परचम लहराया.
वहीं, कलियाबोर से कांग्रेस कैंडिडेट गौरव गोगोई, सिल्चर से कांग्रेस कैंडिडेट सुष्मिता देव, और स्वशासी जिला असम से कांग्रेस कैंडिडेट बीरेन सिंह एंगती ने जीत दर्ज की. करीमगंज से असम यूनाइटेड फ्रंट (AIUDF) के राधेश्याम बिस्वास, धुबरी से AIUDF प्रमुख बदरुद्दीन अजमल, बारपेटा से AIUDF के सिराजुद्दीन अजमल ने जीत दर्ज की. सोनोवाल ने 2016 में लखीमपुर से इस्तीफा दे दिया और राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में पदभार संभाला. बीजेपी उम्मीदवार प्रधान बरुआ ने उपचुनाव में पार्टी के लिए सीट बरकरार रखी.
वहीं, कविन्द्र पुरकायस्थ (बीजेपी), जोयराम एंगलेंग(बीजेपी), उरखो ग्वारा ब्रह्मा(निर्दलयी), चंद्र मोहन पटोवरी (बीजेपी), फनी भूषण चौधरी(एजीपी), वीरेंद्र प्रसाद वैश्य (एजीपी),किरिप चलीहा (कांग्रेस), मोनी कुमार सुब्बा (निर्दलीय), जोसेफ टोप्पो (एजीपी), बिजॉय कृष्णा हांडिक (कांग्रेस), पबन सिंह घाटोवर (कांग्रेस) और रानी नाराह (कांग्रेस) चुनाव हार गए.
असम विधानसभा चुनाव 2016 का रिजल्ट क्या रहा था?
बीजेपी ने 2014 में असम में मिली जीत को विधानसभा 2016 में जारी रखा. बीजेपी ने कांग्रेस को सत्ता से हटाने के लिए एजीपी, बीपीएफ और अन्य दलों के साथ गठबंधन किया.सबसे बड़ी पुरानी पार्टी उस वक्त तरुण गोगोई के नेतृत्व में 15 साल पुरानी सत्ता विरोधी लड़ाई से जूझ रही थी. अपने सहयोगी दलों के साथ भगवा पार्टी ने कांग्रेस को हराया और 126 सदस्यीय मजबूत विधानसभा में 86 सीटें जीतीं.
बीजेपी ने अपने दम पर 60 सीटों पर परचम लहराया. 29.51 प्रतिशत वोट शेयर के साथ बीजेपी को 49,92,185 वोट मिले. वहीं इसके सहयोगी दल एजीपी और बीपीएफ ने 14 और 12 सीटें जीतीं. एजीपी ने 8.14 फीसदी वोटों के साथ 13,77,482 वोट हासिल किए, जबकि बीपीएफ को 3.94 फीसदी वोटों के साथ 6,66,057 वोट मिले. वहीं कांग्रेस 30.96 प्रतिशत वोट शेयर के साथ महज 26 सीट पर सिमट गई. जबकि एआईयूडीएफ 13.05 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 13 सीट जीतीं. कांग्रेस और AIUDF को 52,38,655 और 22,07,945 वोट मिले.
2019 की वर्तमान स्थिति क्या है ?
नागरिकता संशोधन विधेयक पर बीजेपी सिर्फ असम में ही नहीं बल्कि पूरे उत्तर पूर्व क्षेत्र में मुश्किल स्थिति में है. असम गण परिषद ने पहले ही बीजेपी से अपना समर्थन वापस ले लिया है और अब एनपीपी और आईपीएफटी जैसे कुछ और सहयोगी दल भी विधेयक के मुद्दे पर बीजेपी को चेतावनी दे रहे हैं. हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का मानना है कि यह विधेयक देश के लिए बेहद जरूरी है. शाह ने हाल में संकेत दिया है कि सभी सहयोगी पार्टियों की सहमति के बाद ही मोदी सरकार यह कानून बनाएगी. विधेयक के अनुसार, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, ईसाई और पारसी समुदाय के अवैध प्रवासियों को कैद या निर्वासित नहीं किया जाएगा. इस विधेयक से असम में हलचल मच गई है क्योंकि यह 1985 के असम समझौते के खिलाफ है, जिसमें साफ-साफ कहा गया है कि 25 मार्च 1971 के बाद बांग्लादेश से आए अवैध प्रवासियों को वापस भेजा जाएगा.
इस दौरान बीजेपी ने कांग्रेस और एआईयूडीएफ को हालिया पंचायत चुनाव में हरा दिया. उस समय सत्ताधारी गठबंधन का हिस्सा रहे असम गण परिषद ने इस बार अकेले चुनाव लड़ा और उसे हार का सामना करना पड़ा. असम के राज्य निर्वाचन आयोग के मुताबिक, ग्राम पंचायत की 21,990 सीटों में सत्ताधारी पार्टी के 9,025 ग्राम पंचायत सदस्य चुने गए. इसके अलावा बीजेपी के 991 ग्राम पंचायत अध्यक्ष, 1,020 आंचलिक पंचायद सदस्य और 212 जिला परिषद सदस्य चुने गए. असम गण परिषद के 1,676 ग्राम पंचायत सदस्य, 137 ग्राम पंचायत अध्यक्ष, 117 आंचलिक पंचायत सदस्य और 19 जिला परिषद सदस्य चुने गए.
एजीपी के कांग्रेस के साथ जाने पर क्या होगा ?
2014 के लोकसभा चुनाव में असम गण परिषद को करीमगंज, सिलचर और धुबरी में 1 प्रतिशत से भी कम वोट मिले थे, लेकिन उसे लखीमपुर में 7.35 प्रतिशत, कालियाबोर में 6.69 प्रतिशत, बारपेटा में 6.11 प्रतिशत, गुवाहाटी में 5.72 प्रतिशत, मंगलोई में 5.39 प्रतिशत, डिब्रूगढ़ में 5.13 प्रतिशत और जोरहाट में 5.01 प्रतिशत वोट मिले थे. इसके अलावा उसे नौगांव में 2.86 प्रतिशत और तेजपुर में 4.13 प्रतिशत वोट मिले थे.
इसलिए 2014 के लोकसभा चुनाव के आंकड़ों के आधार पर देखें तो अगर एजीपी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ जाने का फैसला किया तो इससे मंगलदोई में बीजेपी की संभावना में सेंध लग सकती है. ऐसी स्थिति में बीजेपी यह लोकसभा सीट हार सकती है.
Source : Varun Sharma