लोकसभा चुनावों में जमानत जब्त होने के भी दिलचस्प रिकाॅर्ड रहे हैं. मजेदार बात यह है कि राज्य स्तरीय क्षेत्रीय दल व पंजीकृत गैर मान्यता प्राप्त पार्टियों के अलावा निर्दलीय प्रत्याशियों के ही नहीं बल्कि बड़े पैमाने पर राष्ट्रीय पार्टियों के प्रत्याशियों तक के जमानत जब्त होते रहे हैं. साल 2014 के लोकसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी की जबरदश्त लहर के बावजूद बीजेपी के 62 उम्मीदवार अपनी जमानत नहीं बचा सके.
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बता दें पिछले लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी 428 सीटों पर चुनाव लड़ी और 282 पर उसे विजयश्री मिली. 62 सीटों पर इसके उम्मीदवार अपनी जमानत नहीं बचा सके. नेशनल पार्टियों द्वारा उम्मीदवारों के जमानत जब्त होने में कांग्रेसी उम्मीदवारों ने रिकॉर्ड बनाया. इस चुनाव में सबसे ज्यादा बीएसपी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई. 503 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली बीएसपी कोई सीट नहीं जीत पाई और 447 उम्मीदवारों के जमानत जब्त हो गए.
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वहीं कांग्रेस के 178 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई. कांग्रेस 464 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और उसके 44 प्रत्याशी चुनाव जीतकर सांसद बने थे. इसके अलावा CPI के 67 में से 57 उम्मीदवार अपनी जमानत नहीं बचा सके. एक सीट पर उसे सफलता हासिल हुई. CPI(M) की हालत इससे कुछ बेहतर थी. इस पार्टी ने 93 सीटों पर चुनाव लड़ा और 9 सीटें हासिल की, जबकि 50 उम्मीदवारों ने अपनी जमानत गंवाई.
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चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक नेशनल पार्टियों के 1591 उम्मीदवारों में से 807 की जमानत जब्त हो गई. पिछले चुनाव में कुल 83,40,82,814 मतदाता थे और 54,78,00,004 वोट पड़े थे.
उत्तर प्रदेश का हाल
आंकड़े बताते हैं कि पिछले चार दशक के दौरान हुए लोकसभा चुनावों में कई बार तो 85 से 90 फीसदी तक उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई हैं. इतने बड़े पैमाने पर जमानत जब्त होने के बाद भी चुनाव में खड़े होने वाले प्रत्याशियों की संख्या घटने का नाम नहीं ले रही. ये लगातार बढ़ती ही जा रही है.
- वर्ष 1996 के लोकसभा चुनाव में 3,297 उम्मीदवार प्रदेश भर में खड़े हुए जिसमें से 3,062 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई.
- 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रदेश में 1,288 प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतरे थे, जिसमें से 1,087 उम्मीदवार अपनी जमानत तक नहीं बचा पाए.
- आंध्रप्रदेश में 506, बिहार में 512, महाराष्ट्र में 800 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई.
आयोग की होती है कमाई
जब्त होने वाली जमानत राशि चुनाव आयोग की कमाई का एक महत्वपूर्ण जरिया है. पूरे प्रदेश की अगर बात करें तो हर चुनाव में ये रकम कई करोड़ रुपये में पहुंच जाती है.
क्या होती है जमानत
चुनाव लड़ने के लिए हर प्रत्याशी को जमानत के रूप में चुनाव आयोग के पास एक निश्चित राशि जमा करनी होती है. जब प्रत्याशी निश्चित मत हासिल नहीं कर पाता तो उसकी जमानत जब्त हो जाती है. अर्थात वह राशि आयोग की हो जाती है. लोकसभा चुनाव में सामान्य उम्मीदवारों के लिए जमानत राशि 25 हजार तथा अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लिए 12 हजार 500 रुपये जमानत की राशि निर्धारित है.
शौकिया उतरते हैं मैदान में
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो बड़ी संख्या में ऐसे लोग है जो शौकिया चुनाव मैदानों में उतरते है. लेकिन अगर उन पर होने वाले सरकारी राजस्व की हानि का आंकलन किया जाए तो हजारों प्रत्याशियों पर करोड़ों रुपये का राजस्व खर्च हो रहा है.
Source : DRIGRAJ MADHESHIA