ईवीएम (Electronic Voting Machine) मशीन के बारे में तो अब आप सभी जानते होंगे कि चुनाव में इसका क्या उपयोग है और किस तरह ये छोटी सी मशीन नेताओं की किस्मत बदल देती है. लेकिन इसके अलावा भी इस मशीन के बारे में कई ऐसी बातें हैं, जिनसे आप अंजान हैं. ऐसे में हम आपको बताने वाले हैं कि वो कौन सा समय था, जब सबसे पहली बार इसका इस्तेमाल किया गया था? इस किस्मत बदलने वाली मशीन को बनाया कहा जाता है? इसे कितनी कीमत में खरीदा जाता है? इसे चलाने का क्या तरीका है? इन सब सवालों का जवाब इस आर्टिकल में मिलने वाला है.
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केवल दो कंपनियां बनाती हैं ईवीएम
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन बनाने का जिम्मा भारत की दो सरकारी कंपनियों का है. जिसमें बेंगलुरु की इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड और हैदराबाद की इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया का नाम शामिल है.
इस समय पहली बार इस्तेमाल हुआ था ईवीएम
सबसे पहली बार ईवीएम का इस्तेमाल 1982 में केरल में हुए आम चुनाव में किया गया था. हालांकि, इसके उपयोग को लेकर कोई विशेष कानून नहीं था. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव को रद्द कर दिया था. फिर 16 सालों बाद 1998 में मध्यप्रदेश, राजस्थान और दिल्ली में इसे इस्तेमाल किया गया.
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ईवीएम चलाने के लिए नहीं पड़ती बिजली की जरूरत
अगर आप अब तक ये समझते आ रहे हैं कि ये ईवीएम मशीन बिजली से चलती है, तो आप गलत है. क्योंकि ये 6 वोल्ड की एल्कलाइन बैटरी की मदद से चलती है. इसके पीछे भी एक बड़ा कारण है, जिससे इस ईवीएम मशीन को उन जगहों पर भी इस्तेमाल किया जा सके, जहां बिजली की सुविधा नहीं है. मशीन में कुल 64 उम्मीदवारों के नाम शामिल होते हैं और अधिकतम 3840 वोट दिए जा सकते हैं.
पहले के मुकाबले अब ईवीएम मशीन की कीमत हो गई है दुगुना
1990 में एक ईवीएम मशीन की खरीद 5500 पड़ी थी. लेकिन हर सामान की तरह इसके रेट में भी बढ़ोतरी हुई और साल 2014 में इसकी कीमत सीधे-सीधे डबल हो गई. 2014 में एक मशीन की कीमत 10,500 थी.
HIGHLIGHTS
- ईवीएम से जुड़ी ये बातें नहीं जानते होंगे आप
- जब पहली बार इसके इस्तेमाल से चुनाव हो गया था रद्द
- एक मशीन में इतने लोग दे सकते हैं वोट