Karnataka Election Results: कर्नाटक में विधानसभा चुनाव की काउंटिंग जारी है. रुझानों में कांग्रेस प्रचंड बहुमत के साथ सबसे आगे है. कांग्रेस 130 सीटों पर आगे चल रही है. वहीं, सत्ताधारी दल बीजेपी पछड़ती नजर आ रही है. अभी तक के रुझानों में बीजेपी को 66 सीटें मिलती नजर आ रही है. 2018 के चुनाव परिणामों में किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिली थी. हालांकि, बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. बीजेपी के खाते में 104 सीटें आई थी. कर्नाटक में लंबे समय से चली आ रही परंपरा फिर से दोहराती दिख रही है. यानी हर पांच साल में राज्य में सरकार बदलने की प्रथा इस बार भी देखने को मिल रही है.कांग्रेस ने बीजेपी को करारी शिकस्त देते हुए दक्षिण भारत से बीजेपी को सफाया कर दिया है. आखिर चुनाव प्रचार के दौरान बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व ने सत्ता वापसी के लिए पूरी ताकत झोंक रखी थी, फिर भी कर्नाटक में कमल नहीं खिल पाया. बीजेपी का कोर वोट बैंक लिंगायत समुदाय भी इस बार जुदा हो गया. दलित, आदिवासी, ओबीसी और वोक्कालिंगा समुदाय तो पहले से ही बीजेपी से नाराज चल रहा था. आइए जानते हैं कि आखिर वो पांच कारण कौन से हैं, जिसकी वजह से कर्नाटक में बीजेपी दोबारा सत्ता में वापसी नहीं कर पायी.
भ्रष्टाचार और वसूली का मुद्दा:
कर्नाटक में विधानसभा चुनाव के ऐलान के साथ ही कांग्रेस ने बीजेपी के खिलाफ भ्रष्टाचार का मुद्दा जोर-शोर से उठाया. पार्टी ने भाजपा के खिलाफ '40 फीसदी पे-सीएम करप्शन' का एजेंडा चलाया और यह एक अहम मुद्दा बन गया. इसी की वजह से एस ईश्वरप्पा को मंत्री पद गंवना पड़ा था. यहां तक कि बीजेपी के एक नेता जेल तक गए. कांग्रेस ने इसे चुनावी मुद्दा बनाया और बीजेपी के लिए गले की हड्डी बन गई. बीजेपी और केंद्रीय नेतृत्व भी इसकी तोड़ नहीं निकाल सकी.
हिंदुत्व कार्ड का दांव भी नहीं आया काम
कर्नाटक में बीजेपी के नेता हिजाब से लेकर अजान तक के मुद्दे को चुनावी कैंपने बनाने में जुटे रहे. इसी बीच चुनाव के समय बजरंगबली भी पहुंच गए, लेकिन बीजेपी ध्रुवीकरण करने में कामयाब नहीं हो सकी. कांग्रेस ने बजरंग दल और पीआईएफ जैसे संगठनों को बैन करने का वादा किया तो बीजेपी ने बजरंग दल को बजरंग बली से जोड़कर कांग्रेस के खिलाफ प्रचार करते दिखे. बीजेपी ने हिंदुत्व कार्ड खेलने में कोई कसर नहीं छोड़ी, लेकिन पार्टी को यह ध्रुवीकरण का दांव भी काम नहीं आ सका.
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सियासी समीकरण साधने में पिछड़ी बीजेपी
कर्नाटक के राजनीतिक समीकरण में बीजेपी अपने कोर वोट बैंक को संभालने में भी कामयाब नहीं हो सकी. बीजेपी का कोर वोटर लिंगायत समुदाय में कांग्रेस ने सेंधमारी कर डाली. साथ ही कांग्रेस ओबीसी, आदिवासी, दलित और मुस्लिम समुदाय पर भी अपना अच्छा खासा प्रभाव छोड़ने में सफल रही. वोक्कालिगा समुदाय को भी अपने कब्जे में करने में कामयाब रही. इसके पीछे डी के शिवकुमार, और सिद्धारमैया की जोड़ी ने संतुलन बनाकर हर वोटरों के दिलों दिमाग में कांग्रेस के दावे और वादे को पूरा करने का भरोसा जताया.
लिंगायतों में बीजेपी की पकड़ कमजोर
बीजेपी को इस बार दक्षिण कर्नाटक, उत्तर कर्नाटक और कित्तूर कर्नाटक में भारी नुकसान झेलना पड़ा है. इन इलाकों में लिंगायत वोटरों की संख्या अच्छी है, कित्तूर कर्नाटक से तो सीएम बसवराज बोम्मई आते हैं. वह खुद ही लिंगायत समुदाय के हैं. यहां पर बोम्मई समेत बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने जमकर प्रचार किया था, लेकिन पार्टी को इसका फायदा नहीं मिला. तीनों क्षेत्रों को मिलाकर करीब 30 सीटें आती हैं, लेकिन पार्टी को 15 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा. कित्तूर कर्नाटक में कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन किया.
येदियुरप्पा, शेट्टार और सावदी को नजर अंदाज करना बीजेपी को पड़ा महंगा
कभी कांग्रेस का गढ़ कहलाने वाले कर्नाटक में कमल खिलाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा को साइड करना भी बीजेपी के लिए बड़ा झटका है. लिंगायत समुदाय में अच्छी पकड़ रखने वाले येदियुरप्पा को बीजेपी ने अप्रत्यक्ष तौर से किनारे करने की कोशिश की. जिसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ा. इतना ही नहीं आजीवन बीजेपी के बैनर तले चुनाव लड़ने वाले पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार और पूर्व डिप्टी सीएम लक्ष्मण सावदी भा पार्टी से नाराज होकर कांग्रेस का दामन थाम लिया. शेट्टार, येदियुरप्पा, सावदी तीनों ही लिंगायत समुदाय के बड़े नेता हैं, इन नेताओं की इस समुदाय में अच्छी पैठ थी, लेकिन इन्हें नजर अंदाज करना बीजेपी को महंगा पड़ गया.
HIGHLIGHTS
- कर्नाटक में बीजेपी को बड़ा झटका
- बीजेपी की हार के ये हैं बड़े फैक्टर
- कांग्रेस का कर्नाटक पर कब्जा