कर्नाटक में चुनाव से ऐन पहले बीजेपी ने मुसलमानों को लेकर बड़ा दांव खेला था. ओबीसी के तहत मुसलमानों को मिला आरक्षण खत्म कर दिया और इसे प्रभावशाली लिंगायत और वोक्कालिगा समुदायों में बांट दिया. हालांकि बाद में उसे कहना पड़ा कि फिलहाल आरक्षण में बदलाव लागू नहीं किया जाएगा. कर्नाटक के विधानसभा चुनावों में मुस्लिम वोटों को लेकर हुई इस पूरी राजनीति का नतीजों पर क्या असर रहा, बीजेपी का ये दांव पार्टी को कितना भारी पड़ा, क्या कांग्रेस इस मुद्दे को भुनाने में कामयाब रही, इन्हीं सब मुद्दों पर आज चर्चा करते हैं. पहले दक्षिण भारत और खासकर कर्नाटक में मुस्लिम आरक्षण की कहानी जान लीजिए. दक्षिण के पांच राज्यों में मुस्लिम आरक्षण की व्यवस्था है.
कर्नाटक के अलावा बाकी राज्य हैं- आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल और तमिलनाडु. इनमें से कर्नाटक पहला राज्य रहा, जिसने मुसलमानों को प्राप्त आरक्षण खत्म करने का फैसला किया, वो भी विधानसभा चुनाव से ठीक पहले. कर्नाटक में 1994 में मंडल कमीशन की सिफारिशों के तहत मुस्लिमों की कुछ जातियों को ओबीसी में सब कैटिगरी बनाकर 4 फीसदी आरक्षण दिया गया था.
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मार्च में मुस्लिम कोटा खत्म कर दिया
कर्नाटक की बीजेपी सरकार ने मौजूदा विधानसभा चुनाव से पहले मार्च में ये मुस्लिम कोटा खत्म कर दिया. मुसलमानों को यह आरक्षण 2बी श्रेणी में मिला था. इसे खत्म करके उन्हें EWS यानी आर्थिक रूप से पिछड़ों की श्रेणी में डाल दिया गया. कर्नाटक में EWS को 10 फीसदी आरक्षण है. इसमें ब्राह्मण, वैश्य, मुदालियर, जैन आदि समुदाय शामिल हैं. बोम्मई सरकार के फैसले के बाद मुसलमानों को आरक्षण पाने के लिए इन्हीं समुदायों के साथ लड़ना होगा.
सरकार ने मुस्लिमों से जो आरक्षण वापस लिया था, उसे वीरशैव लिंगायत और वोक्कालिगा समुदायों में आधा आधा बांट दिया. इसकी वजह भी जान लीजिए. कर्नाटक की आबादी में इन दोनों समुदायों की सबसे ज्यादा हिस्सेदारी है. अब बीजेपी ने ये आरक्षण इन्हीं दोनों समुदायों में बांटने का फैसला क्यों किया, इसके पीछे का गणित भी जान लीजिए.
लिंगायतों का दमखम
17% के करीब लिंगायत हैं कर्नाटक में
67 सीटों पर लिंगायतों का असर है
23 मुख्यमंत्रियों में से 10 लिंगायत रहे हैं
54 विधायक अभी लिंगायत समुदाय के हैं
कर्नाटक में 2017-18 में जातिगत जनगणना हुई थी. इसके आधिकारिक आंकड़े तो कभी जारी नहीं हुए. लेकिन अनाधिकारिक आंकड़ों में लिंगायत वोटरों की संख्या 14 से 18 फीसदी मानी जाती है. वोक्कालिगा की बात करें तो आबादी में इनका हिस्सा 11 से 16 फीसदी समझा जाता है. उत्तरी कर्नाटक का इलाका लिंगायत बहुल है. वहीं दक्षिणी कर्नाटक और बेंगलुरू में वोक्कालिगा की बहुतायत है. बीजेपी ने इस चुनाव में लिंगायत समुदाय से 46 उम्मीदवार खड़े किए हैं. उसके वोक्कालिगा प्रत्याशियों की संख्या 42 है.
वोक्कालिगा की ताकत
15% के करीब हैं वोक्कालिगा कर्नाटक में
44 सीटों पर वोक्कालिगा का असर
7 मुख्यमंत्री वोक्कालिगा के रहे हैं अब तक
42 प्रत्याशी वोक्कालिगा से उतारे बीजेपी ने
कर्नाटक की नौ दर्जन से अधिक विधानसभा सीटों पर लिंगायत और वोक्कालिगा का प्रभाव माना जाता है. कर्नाटक में विधानसभा की कुल 224 सीटें हैं. इनमें से 67 सीटों पर लिंगायतों को हावी माना जाता है. जनरल सीटों की बात करें तो 21 विधानसभा क्षेत्रों में लिंगायतों का असर है. वोक्कालिगा समुदाय की बात करें तो 44 सीटों पर इनका असर माना जाता है. जनरल सीटों में से 25 पर इनका प्रभाव बताया जाता है. लिंगायतों का कर्नाटक की राजनीति में कितना असर रहा है, ये इस बात से समझा जा सकता है कि 1952 के बाद राज्य के 23 मुख्यमंत्रियों में से 10 इसी समुदाय के रहे हैं. अभी 54 विधायक लिंगायत से हैं. इनमें बीजेपी विधायकों की संख्या 37 है. अब आप समझ गए होंगे कि बीजेपी ने मुस्लिम कोटा खत्म करके लिंगायत और वोक्कालिगा में बांटने का कदम क्यों उठाया.
कर्नाटक में मुस्लिमों का असर
224 कुल विधानसभा सीटें हैं कर्नाटक में
18 पर मुस्लिमों का प्रभाव माना जाता है
11 सीटें पिछले चुनाव में कांग्रेस को मिलीं
6 सीटों पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी
कर्नाटक में मुस्लिमों के सियासी असर की बात करें तो लगभग 18 सीटों पर इनका प्रभाव देखा जाता है. पिछले चुनाव में कांग्रेस ने इनमें से 11 सीटों पर जीत दर्ज की थी. बीजेपी को यहां 6 सीटों पर जीत मिली थी. बाकी एक सीट जेडीएस के खाते में गई थी. बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीटों का फासला भले ही ज्यादा रहा हो, लेकिन वोट प्रतिशत में अधिक फर्क नहीं था. कांग्रेस को लगभग 44 फीसदी वोट मिले थे, जबकि बीजेपी ने 40 प्रतिशत वोट पाए थे.
कांग्रेस राजनैतिक मजबूरी में 4 प्रतिशत मुस्लिम आरक्षण लेकर आई थी
मुस्लिम कोटा खत्म करने का बसवराज बोम्मई सरकार का फैसला सुप्रीम कोर्ट की चौखट तक पहुंच चुका है. कोर्ट में इसे लेकर बीजेपी को तीखे सवालों का भी सामना करना पड़ा है. कहा गया कि कोर्ट में मसला होने के बावजूद बीजेपी के नेता चुनाव में इसे उठाने की कोशिश कर रहे हैं. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने खुद कहा था कि कांग्रेस राजनैतिक मजबूरी में 4 प्रतिशत मुस्लिम आरक्षण लेकर आई थी, जो असंवैधानिक था. संविधान में धर्म के आधार पर आऱक्षण की कोई व्यवस्था नहीं है, ऐसे में मुसलमानों को मिला 4 फीसदी आरक्षण असंवैधानिक है. कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने भी इसे लेकर बयान दिया था. बोम्मई सरकार को आश्वासन देना पड़ा कि मुस्लिम कोटा रद्द करने के फैसले को अभी लागू नहीं किया जाएगा. बोम्मई ने सफाई दी कि मुस्लिम आरक्षण खत्म नहीं किया गया है बल्कि बदलाव करते हुए EWS कैटिगरी में दिया गया है. इसमें मुसलमानों को अब आर्थिक मापदंडों का भी फायदा मिलेगा.
बीजेपी ने मुस्लिम आरक्षण के अलावा कर्नाटक चुनाव में हिंदुत्व कार्ड भी खेला. कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में बजरंग दल को बैन करने का ऐलान किया तो बीजेपी ने उसे हाथोंहाथ ले लिया. एक समय तो ऐसा लग रहा था जैसे पूरा चुनाव ही हनुमानमय हो गया है. पीएम मोदी ने खुद बजरंग बली की जयकारे लगाए थे. बीजेपी सरकार की तरफ से मुस्लिम कोटा खत्म किए जाने के बाद कांग्रेस को इसमें अवसर नजर आया. उसने ऐलान कर दिया कि पार्टी सत्ता में आई तो ओबीसी मुसलमानों को चार फीसदी आरक्षण बहाल किया जाएगा. लेकिन देखना होगा कि कांग्रेस के लिए ये दांव उलटा न पड़ जाए क्योंकि मुस्लिम आबादी के मुकाबले लिंगायत और वोक्कालिगा की संख्या ज्यादा है.
HIGHLIGHTS
- चुनाव से ऐन पहले बीजेपी ने मुसलमानों को लेकर बड़ा दांव खेला
- ओबीसी के तहत मुसलमानों को मिला आरक्षण खत्म कर दिया
- क्या कांग्रेस इस मुद्दे को भुनाने में कामयाब रही