लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजों का ऐलान आज हो जाएगा. शह मात के इस खेल में कौन मारेगा बाजी, आज सबके सामने होगा. हालांकि जनादेश 2024 भाजपा के लिए स्पष्ट बहुमत पेश कर रहा है, मगर बावजूद इसके किसी वजह से अगर विपक्षी गठबंधन INDIA ठीक-ठाक स्थिति में पहुंच जाता है और NDA को कड़ी टक्कर देने में कारगर रहता है, तो भाजपा के भीतर असंतोष के स्वर मुखर हो सकते हैं. लिहाजा इस आर्टिकल में उन तमाम चुनौतियों का जिक्र है, जिसपर काउंटिंग के वक्त भगवा पार्टी की नजर रहेगी.
मोदी मैजिक
2013 में भाजपा के प्रधान मंत्री पद के उम्मीदवार बनने के बाद से, नरेंद्र मोदी पार्टी का चेहरा और उसकी सभी गतिविधियों के केंद्र में रहे हैं. 2014 और 2019 दोनों में, पार्टी के विशाल जनादेश को इस बात के प्रतिबिंब के रूप में देखा गया था कि, कैसे मोदी ने जाति रेखाओं से ऊपर उठकर, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश में, अलग-अलग समूहों के गठबंधन को एक साथ लाया था. हालांकि, इस बार मतदाता मोदी के प्रभाव में नहीं दिखे, खासकर निचले सामाजिक और आर्थिक तबके से, जिन्होंने अग्निपथ योजना, पेपर लीक, नौकरियों की कमी, किसानों के प्रति सरकार का रवैया जैसे मुद्दों पर अपना गुस्सा जाहिर किया है.
बीजेपी एक चुनावी मशीन है
अमित शाह की निगरानी में पार्टी की चुनाव मशीनरी 24X7 काम पर है. अगर पार्टी के नेता विभिन्न स्तरों पर शारीरिक रूप से जमीन पर नहीं हैं, तो भाजपा सोशल मीडिया पर सर्वव्यापी है, अपनी सरकार के संदेश को बढ़ा रही है. हालांकि, कुछ चिंता है कि यह चुनाव मशीनरी अब तेजी से मोदी के अधीन होती जा रही है, उनके जीवन से भी बड़े व्यक्तित्व को बढ़ावा दे रही है. हालांकि जीत की होड़ ने किसी भी तरह के तनाव को सतह पर नहीं रखा है, लेकिन उम्मीदवारों की पसंद और गठबंधन के दबाव को लेकर असंतोष पनप रहा है - और इस बार कई स्थानों पर फैल गया है.
क्या बीजेपी विधानसभा-लोकसभा विभाजन को खत्म कर सकती है?
जब राज्य और संसद की बात आती है, तो मतदाता किस तरह अलग-अलग चुनाव करते हैं, इसका सबसे हालिया उदाहरण 2019 में ओडिशा था, जहां भाजपा ने लोकसभा में बड़ी बढ़त हासिल की, लेकिन विधानसभा में इसे लागू करने में विफल रही. जबकि एक साथ हुए अन्य चुनावों में उसे नुकसान और असफलता का सामना करना पड़ा है, ऐसे समय में जब भाजपा एक राष्ट्र, एक चुनाव को लागू करने के लिए तैयार है, इस बार मतदान पैटर्न देखना दिलचस्प होगा.
आंध्र प्रदेश, ओडिशा, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव हुए. सिक्किम और अरुणाचल विधानसभाओं के नतीजे पहले ही आ चुके हैं, जिससे क्रमश: सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा और भाजपा को क्लीन स्वीप मिल गई है.
बीजेपी और गठबंधन
2019 में भाजपा के 303 सीटें जीतने के साथ, उसके सहयोगियों ने खुद को अनावश्यक महसूस किया, जिससे एनडीए धीरे-धीरे सिकुड़ता गया. हालांकि, इस बार जब विपक्षी दल भारत के रूप में एक साथ आए, तो भाजपा ने भी पुराने और नए सहयोगियों को लुभाकर किसी भी नुकसान के खिलाफ खुद को सुरक्षित करने की तैयारी कर ली. यह बिहार में जद (यू) के साथ, कर्नाटक में जद (एस) के साथ, आंध्र प्रदेश में टीडीपी और जनसेना पार्टी के साथ और महाराष्ट्र में राकांपा और शिवसेना को तोड़ने के बाद सफल रही. हालांकि, बिहार में बीजेडी और पंजाब में अकाली दल के साथ गठबंधन की उसकी कोशिशें विफल रहीं.
कल्याण की राजनीति
जैसे ही कांग्रेस ने राहुल गांधी की न्याय गारंटी के इर्द-गिर्द एक अभियान चलाया, भाजपा मोदी की गारंटी के साथ सामने आई. कांग्रेस, जो कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश और तेलंगाना राज्य चुनावों में अपने कल्याण कार्यक्रम वादों के साथ मतदाताओं को लुभाने में सफल रही थी, ने चुनाव से बहुत पहले मतदाताओं के सामने न्याय गारंटी का अनावरण करना शुरू कर दिया, वास्तव में भारत जोड़ो न्याय यात्रा के साथ चुनावों से पहले बेरोजगारी और बढ़ती कीमतें राजनीतिक चर्चा का हिस्सा बनने के साथ, न्याय गारंटी को जोर पकड़ते हुए देखा गया.
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