1 जून को आखिरी चरण के मतदान के बाद से सभी की निगाहें 4 जून को होने वाले चुनावी नतीजे पर टिकी हुई थी और आखिरकार इम्तिहान की घड़ी आ ही गई, जब देश की दो मजबूत गठबंधन के बीच फैसला होगा कि किसके हाथ में देश की कमान होगी. देशभर में कुल सात चरणों में मतदान किया गया. 19 अप्रैल से शुरू हुआ यह मतदान 1 जून तक चला. इस लंबे समय काल में सभी राजनीतिक पार्टियों ने चुनावी तैयारी में कोई कसर नहीं छोड़ी. वहीं, सातवें चरण के मतदान के बाद से एग्जिट पोल आने शुरू हो गए और उसके मुताबिक एनडीए की प्रचंड बहुमत से सरकार बनते दिखाई जा रही है. भले ही एग्जिट पोल के मुताबिक केंद्र में मोदी सरकार की वापसी हो रही है, लेकिन यहां कई छोटी-छोटी बातों पर ध्यान देने की जरूरत है.
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आइए जानते हैं वो 5 फेक्टर जो चुनाव में पलट सकती है गेम-
मोदी फैक्टर
भाजपा की तरफ से मोदी पहली बार 2013 में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बने. जिसके बाद से मोदी पार्टी का चेहरा बन गए. 2014 और 2019 दोनों ही लोकसभा चुनाव के नतीजे यह साबित कर चुके हैं कि कैसे मोदी ने जाति रेखाओं से ऊपर उठकर, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में भी मोदी फेक्टर ने अलग-अलग समूहों के गठबंधन को एक साथ लाया था. यह सिर्फ मोदी फेक्टर ही है जिसने यूपी, बिहार, राजस्थान, झारखंड सहित कई राज्यों में अपना परचम लहराया.
वहीं, 2024 लोकसभा चुनाव की बात करें तो इस बार मोदी लहर में थोड़ी कमी देखी गई. खासकर पिछड़े व आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग में थोड़ी नाराजगी देखी गई. वहीं, अग्निपथ योजना, पेपर लीक जैसे मुद्दों को लेकर भी लोगों में गुस्सा देखा गया. उधर, विपक्ष ने भी आरक्षण और संविधान को पूरे चुनावी प्रचार के दौरान बड़ा मुद्दा बनाया और मोदी सरकार को घेरने का काम किया. यदि भाजपा बड़े पैमाने पर हिंदी बेल्ट में अपनी पकड़ बनाए रखती है, तो यह विपक्ष की बड़ी हार साबित होगी.
मोदी की गारंटी पर राजनीति
बता दें कि लोकसभा चुनाव को देखते हुए जैसे ही कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने न्याय गारंटी का अभियान चलाया, वैसे ही भाजपा लोगों के बीच मोदी की गारंटी लेकर आई. कांग्रेस ने भारत जोड़ो यात्रा से लेकर न्याय गारंटी के साथ अपने मतदाताओं को लुभाने में कुछ राज्यों में सफल रही. वहीं, दूसरी तरफ विपक्ष ने बेरोजगारी और रोजगार को अपना मुद्दा बनाकर मोदी सरकार पर जमकर निशाना साधा और न्याय की गारंटी ली. तो दूसरी तरफ मोदी की गारंटी के साथ केंद्र सरकार ने चार जाति समूहों- युवाओं, महिलाओं, किसान और गरीबों को लेकर चुनावी एजेंडा तैयार किया. अब देखना होगा कि मोदी की गारंटी या न्याय की गारंटी जनता ने किस पर भरोसा जताया है.
एनडीए गठबंधन भी एक फैक्टर
2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 303 सीटें अपने नाम की थी. वहीं, उसके सहयोगी दल ने करीब 50 सीटों पर जीत दर्ज की थी. वहीं, 2024 चुनाव में देशभर की तमाम विपक्षी पार्टियों ने मिलकर इंडिया एलायंस बनाया, जिसके कुछ पार्टी को वापस से अपने में मिलाने में भाजपा सफल रही. इंडिया एलायंस को देखते हुए भाजपा ने अपने कई पुराने सहयोगी दल को वापस से अपने में मिला लिया. बता दें कि बिहार में जेडीयू को महागठबंधन से तोड़कर एनडीए में शामिल किया तो वहीं कर्नाटक में जद (एस) के साथ, महाराष्ट्र में राकांपा और शिवसेना को तोड़ा, आंध्र प्रदेश में टीडीपी और जनसेना पार्टी को मिलाया, पंजाब में अकाली दल के साथ मिलकर लोकसभा चुनाव में मजबूती से खड़े हुए. आज के नतीजे यह साबित करेगी कि बीजेपी की रणनीति सफल रही या नहीं.
बीजेपी को बताया गया चुनावी मशीन
विपक्ष लगातार बीजेपी को चुनावी मशीन बताती नजर आ रही है. यह अब तो एक घिसी-पिटी बात बन चुकी है कि अमित शाह की निगरानी में पार्टी की चुनाव मशीनरी 24 घंटे काम पर है. वहीं, इन आरोपों पर भाजपा नेताओं ने चुटकी लेते हुए कहा कि इसे बदलकर 24X7X365 दिन कर दें. दूसरी तरफ भाजपा नेता सोशल मीडिया पर भी काफी एक्टिव नजर आते हैं और अपनी सरकार के एजेंडों को आगे बढ़ा रहे हैं. दूसरी तरफ उम्मीदवारों की पसंद और गठबंधन के आरोपों के बाद लोगों में भी कुछ जगहों पर अंसतोष देखा गया. वहीं, आरएसएस के साथ बीजेपी के रिश्तों को भी लेकर विपक्ष ने जमकर निशाना साधा, लेकिन बीजेपी हमेशा आरएसएस के साथ खड़ी रही और उसने सभी आरोपों को खारिज कर दिया. भाजपा नेताओं ने कहा कि देश भर में संघ के स्वयंसेवकों ने मतदाताओं को बूथों तक लाने में अहम भूमिका निभाई है.
बीजेपी विधानसभा-लोकसभा के अंतर को कर रही है खत्म!
लोकसभा और विधानसभा चुनाव में काफी अंतर है. लोकसभा चुनाव देश के नेतृत्व के लिए किया जाता है तो वहीं विधानसभा चुनाव राज्य के नेतृत्व के लिए होता है. इसका हालिया उदाहरण 2019 में ओडिशा था, जहां भाजपा ने लोकसभा चुनाव में तो बड़ी बढ़त हासिल की, लेकिन विधानसभा चुनाव में असफल साबित हुए. इस बार के लोकसभा चुनाव के साथ ही ओडिशा, अरुणाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश और सिक्किम में विधानसभा चुनाव भी हुए. अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम में विधानसभा चुनाव के नतीजे पहले ही आ चुके हैं, जिसमें भाजपा को क्लीन स्वीप मिली. अब देखना यह होगा कि क्या ओडिशा 2019 को दोहराएगा या फिर नतीजों में बदलाव देखने को मिलेगा? वहीं, क्या आंध्र 2019 से अलग हो जाएगा, जब लोकसभा और विधानसभा दोनों चुनाव में वाईएसआरसीपी ने जीत दर्ज की थी?
HIGHLIGHTS
- BJP की जीत में कौन सा फैक्टर रखेगा मायने
- 5 प्वाइंट हो सकते हैं गेम चेंजर
- मोदी की गारंटी पर राजनीति
Source(News Nation Bureau)