लोकसभा चुनाव के पहले चरण के तहत 11 अप्रैल को होने वाले मतदान में पश्चिमी उत्तर प्रदेश और बिहार की 10 सीटों पर राष्ट्रीय लोकदल अध्यक्ष अजित सिंह, केंद्रीय मंत्री वी. के. सिंह और महेश शर्मा जैसे प्रमुख नेताओं की किस्मत का फैसला होगा. सबसे अधिक 80 सासंदों को संसद भेजने वाले उत्तर प्रदेश में चुनाव का पहला चरण महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके पश्चिमी हिस्से में किसी प्रकार का ध्रुवीकरण भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को अपनी संख्या प्रभावी रूप से बढ़ाने में मदद कर सकता है जैसाकि 2014 के लोकसभा चुनाव में देखा गया था.
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पहले चरण में उत्तर प्रदेश की इन आठ सीटों पर रहेगी नजर
मुजफ्फरनगर : यहां से राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के प्रमुख और सपा-बसपा-रालोद गठबंधन के उम्मीदवार अजित सिंह को मुजफ्फरनगर में पूर्व केंद्रीय मंत्री संजीव बाल्यान के खिलाफ मैदान में उतारा गया है. इस लोकसभा सीट के सभी पांच विधानसभा क्षेत्रों में मुस्लिम मतदाता भारी संख्या में हैं. लगभग 17 लाख मतदाताओं के बीच मुसलमानों की संख्या 26 प्रतिशत है, जिसके बाद 15 प्रतिशत जाटव और लगभग आठ प्रतिशत जाट हैं.
दिवंगत चौधरी चरण सिंह के बेटे अजित सिंह को 2014 में अपनी पारंपरिक सीट बागपत बीजेपी के सत्यपाल सिंह के हाथों गंवानी पड़ी थी. 2014 में बाल्यान ने बसपा के कादिर राणा को 40 हजार वोटों से हराया था, जिसके बाद उन्हें नरेंद्र मोदी सरकार में मंत्री पद दिया गया था. क्षेत्र के लोगों का मानना है कि दोनों नेताओं के लिए जीत की राह इतनी आसान नहीं होने वाली है.
गाजियाबाद : केंद्रीय मंत्री वी.के. सिंह यहां से पुनर्निर्वाचित होने का सपना संजोए हुए हैं. सपा-रालोद-बसपा गठबंधन के उम्मीदवार सुरेश बंसल और कांग्रेस उम्मीदवार डॉली शर्मा के साथ यहां मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है. साहिबाबाद, गाजियाबाद, मोदीनगर, मुरादनगर और लोनी में फैले गाजियाबाद संसीदय क्षेत्र में 27.26 लाख मतदाता हैं, जहां मुस्लिम, गुर्जर, वैश्य, ब्राह्मण मतदाताओं की अच्छी संख्या है.
बसपा छोड़कर सपा में शामिल होने वाले बंसल वैश्य समुदाय का समर्थन प्राप्त करने की उम्मीद कर रहे हैं, जिससे वह ताल्लुक रखते हैं. उन्हें इस क्षेत्र में पिछड़े वर्ग के मतदाताओं पर पकड़ बनाने के लिए भी जाना जाता है क्योंकि उन्होंने बसपा में रहते हुए इस वर्ग के लिए कई काम किए थे. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने शुक्रवार को गाजियाबाद में एक रोड शो किया, जबकि गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने शनिवार को वी.के. सिंह के समर्थन में एक रैली को संबोधित किया था.
गौतम बुद्ध नगर (नोएडा) : केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा की किस्मत यहां होने वाले त्रिकोणीय मुकाबले में दांव पर लगी है. कांग्रेस ने अरविंद कुमार सिंह को जबकि सपा-बसपा-रालोद गठबंधन ने यहां बसपा के सतवीर को संयुक्त रूप से अपना उम्मीदवार बनाया है. इस संसदीय क्षेत्र से दो निर्दलीय सहित कुल 13 उम्मीदवार मैदान में हैं.
बागपत : केंद्रीय मंत्री सत्यपाल सिंह इस जाट बहुल निर्वाचन क्षेत्र से फिर से मैदान में हैं. रालोद नेता अजित सिंह के बेटे जयंत चौधरी सपा-बसपा-रालोद उम्मीदवार के रूप में सत्यपाल सिंह को चुनौती दे रहे हैं. चौधरी पहले मथुरा लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं लेकिन 2014 चुनाव में उन्हें बीजेपी की हेमामालिनी के हाथों शिकस्त का सामना करना पड़ा था.
सहारनपुर : बीजेपी ने अपने मौजूदा सांसद राघव लखनपाल को फिर से उम्मीदवार बनाया है जबकि कांग्रेस ने इमरान मसूद को मैदान में उतारा है. मसूद ने 2014 में लखनपाल को कड़ी टक्कर दी थी. लखनपाल ने मसूद को करीब 65 हजार वोटों से हराया था. बसपा ने इस सीट से फजलुर रहमान को टिकट दिया है. वह मांस व खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों के मालिक हैं और क्षेत्र में उनका प्रभाव है.
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सहारनपुर लोकसभा सीट पर कहानी दिलचस्प दिखाई दे रही है. सहारनपुर संसदीय क्षेत्र में मुस्लिमों की बड़े पैमाने पर मौजूदगी है और 2014 में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने इस सीट पर कब्जा जमाया था. 2019 में भी यही स्थिति बरकरार रह सकती है.
पहले चरण में बिहार की दो सीटों पर पर नजर रहने वाली है
नवादा : नवादा ग्रामीण और अर्ध-शहरी संसदीय क्षेत्र में एक बार फिर से दो शक्तिशाली जातियों, एक अगड़ी (भूमिहार) और एक पिछड़ी (यादव), के बीच सीधी लड़ाई है. यह क्षेत्र अभी भी विकास के मोर्चे पर पिछड़ा हुआ है. नवादा की सीट राजग सहयोगी लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के हिस्से में आई है. पार्टी ने मुंगेर से मौजूदा पार्टी सांसद और पूर्व सांसद सूरजभान सिंह की पत्नी वीना देवी के बजाए सूरजभान के छोटे भाई चंदन कुमार को मैदान में उतारने का फैसला किया है.
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जातिगत राजनीतिक मजबूरियों के कारण महागठबंधन को इस सीट पर राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के निष्कासित विधायक राजबल्लभ यादव की पत्नी विभा देवी को मैदान में उतारने के लिए मजबूर होना पड़ा. यादव को नाबालिग लड़की से दुष्कर्म के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है. नवादा से13 उम्मीदवार मैदान में हैं, लेकिन मुख्य मुकाबला चंदन कुमार और विभा देवी के बीच ही होगा.
औरंगाबाद : संख्या में कम होने के बावजूद राजपूत जाति के वर्चस्व के कारण इसे मिनी चितौड़गढ़ भी कहा जाता है. 1952 से यहां से राजपूत उम्मीदवार जीतते रहे हैं. लेकिन, इस बार यहां संघर्ष दो राजपूत उम्मीदवारों के बीच नहीं है. महागठबंधन में शामिल हिन्दुस्तान अवाम मोर्चा ने इस सीट से अत्यंत पिछड़ा वर्ग से संबंद्ध उपेंद्र प्रसाद को चुनाव मैदान में उतारा है, जो कि दांगी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं. दांगी समुदाय के मतदाता इस निर्वाचन क्षेत्र में बड़ी संख्या में हैं.
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वहीं राजग ने मौजूदा बीजेपी सांसद सुशील सिंह को मैदान में उतारा है. सुशील उस परिवार से ताल्लुक रखते हैं, जिसने औरंगाबाद के पहले राजनीतिक परिवार को चुनौती दी थी. वह परिवार दिग्गज कांग्रेस नेता सत्यनारायण सिन्हा का था. सिन्हा छोटे साहब नाम से मशहूर थे.
(इनपुट IANS)
Source : News Nation Bureau