उत्तर प्रदेश के अकबरपुर लोकसभा सीट (Akbarpur Lok sabha Seat) देश में लोकसभा चुनावों की तारीखों का ऐलान हो चुका है. 7 चरणों में वोट डाले जाएंगे. लोकसभा चुनाव 2019 की तैयारी को लेकर सभी पार्टियों ने अपना समीकरण तय कर लिया है. यूपी की औद्योगिक नगरी कानपुर से सटा कानपुर देहात जिसे अकबरपुर लोकसभा सीट के नाम से जाना जाता है. 2009 में यह लोकसभा सीट वजूद में आई है. इससे पहले यह सीट बिल्लौर लोकसभा सीट के तहत आती थी. इस अकबरपुर लोकसभा सीट पर चौथा चरण में यानी 29 अप्रैल को मतदान होगा.
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गंगा और यमुना के मध्य दोआब में बसे अकबरपुर लोकसभा सीट पर एक समय में कांग्रेस का मजबूत गढ़ माना जाता था. कांग्रेस के इस मजबूत इलाके में गांधी-नेहरू परिवार से बगावत करने वाले अरुण नेहरू को जनता दल ने 1989 में उतारा और जीत दर्जकर कांग्रेस से ये सीट छीन ली. इसके बाद 1991 में बीजेपी ने श्याम बिहारी मिश्र को उताकर कमल खिलाया और लगातार 1999 तक लगातार वो यहां से सांसद चुने जाते रहे. बाद में ये इलाका बीजेपी के लिए काफी उपजाऊ साबित हुआ. 2004 में बसपा ने राजा रामपाल को मैदान पर उतारकर बीजेपी से ये सीट छीन ली. हालांकि, 2007 में उन्होंने बसपा छोड़कर कांग्रेस का दामन थाम लिया. इसके बाद 2007 में हुए उपचुनाव में बसपा के अनुज शुक्ला वारसी सांसद बने. इसके बाद यह सीट अकबरपुर लोकसभा सीट बन गई.
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अकबरपुर का परिचय
अकबरपुर यूपी का एक शहर है. वर्तमान समय यह अम्बेडकर नगर का जिला मुख्यालय है. पावन सरयू नदी इस जनपद का मुख्य आकर्षण है. यह भूमि प्रभु श्री राम की लीला स्थली होने के कारण तीर्थ भूमि है. यह स्वतंत्रता सेनानी डॉ. राम मनोहर लोहिया की जन्म स्थली भी है. यह एक नगर पालिका परिषद है. तमसा नदी शहर को अकबरपुर व शहजादपुर में विभाजित करती है. रामायण के अनुसार, राजा दशरथ ने शिकार करते समय यहीं पर श्रावण की तीर लगाने से मृत्यु हुई थी, यहां टांडा में मेडिकल कालेज भी है. यहां टांडा, अकबरपुर और जलालपुर में कई छोटे लुम के कारखाने हैं, जिसमें टेरीकाट और सूती कपड़े लुन्गी (ताहबन) गमछा आदि तैयार होते हैं. यहां से राजधानी लखनऊ की दूरी लगभग 189 किलोमीटर है.
ये है यहां की राजनीति
अकबरपुर लोकसभा सीट को पहले बिल्हौर संसदीय सीट के रूप में जाना जाता था, लेकिन 2009 में परिसीमन के बाद यह अकबरपुर लोकसभा सीट के रूप में अस्तित्व में आया. बसपा से नाता तोड़कर कांग्रेस का दामन थामने वाले राजाराम पाल 2009 में सांसद बने. इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने कांग्रेस से यह सीट छीन ली. 2014 में बीजेपी से देवेंद्र सिंह उर्फ भोले सिंह ने यहां जीत हासिल की. अकबरपुर सीट पर 1957 से 1971 तक कांग्रेस का कब्जा रहा. 1977 में इस सीट पर भारतीय लोकदल ने रामगोपाल सिंह यादव को मैदान में उतारकर अपने पाले में कर लिया. कांग्रेस ने 1980 में राम नारायण त्रिपाठी को मैदान में उतारकर फिर वापसी की और 1984 में कांग्रेस ने जगदीश अवस्थी को प्रत्याशी बनाकर अपना कब्जा बरकरार रखा.
सामाजिक समीकरण
अकबरपुर लोकसभा सीट पर 2011 के जनगणना के मुताबिक, कुल जनसंख्या 22,67,095 है. इसमें 64.65 फीसदी ग्रामीण और 35.35 फीसदी शहरी आबादी है. 2017 में हुए विधानसभा चुनाव के मुताबिक इस लोकसभा सीट पर पांचों विधानसभा सीटों पर कुल 17,14,453 मतदाता और 1,784 मतदान केंद्र हैं. अनुसूचित जाति की आबादी इस सीट पर 23.22 फीसदी है. इसके अलावा अकबरपुर संसदीय सीट पर राजपूत और ब्राह्मण मतदाता काफी निर्णायक भूमिका में हैं.
पांच विधानसभा सीटें हैं अकबरपुर में
अकबरपुर लोकसभा सीट के तहत कुल पांच विधानसभा सीटें आती हैं. इनमें अकबरपुर रानिया, बिठूर, कल्याणपुर, महाराजापुर और घाटमपुर विधानसभा सीटें शामिल हैं, जिनमें से घाटमपुर सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. मौजूदा समय में पांचों सीटों पर बीजेपी का कब्जा है.
2014 लोकसभा में क्या थी स्थिति
2014 के लोकसभा चुनाव में अकबरपुर संसदीय सीट पर 54.93 फीसदी मतदान हुए थे. इस सीट पर बीजेपी के अशोक कुमार दोहरे ने सपा के प्रेमदास कठेरिया को एक लाख 72 हजार 946 वोटों से मात देकर जीत हासिल की थी. बीजेपी के देवेंद्र सिंह उर्फ भोले सिंह को 4,81,584 वोट मिले, जबकि बसपा के अनिल शुक्ला वारसी को 2,02,587 वोट मिले. सपा के लाल सिंह तोमर को 1,47,002 और कांग्रेस के राजाराम पाल को 96,827 वोट मिले थे
सांसद का प्रदर्शन
अकबरपुर लोकसभा सीट से 2014 में जीतने वाले देवेंद्र सिंह उर्फ भोले सिंह का लोकसभा में बेहतर प्रदर्शन रहा है. पांच साल में चले सदन के 331 दिन में वो 298 दिन उपस्थित रहे. इस दौरान उन्होंने 120 सवाल सदन में उठाए और 67 बहसों में हिस्सा लिया. इतना ही नहीं उन्होंने पांच साल में मिले 25 करोड़ सांसद निधि में से 21.61 करोड़ रुपये विकास कार्यों पर खर्च किया.
Source : News Nation Bureau