साल 2018 में जलाशयों की कुप्रबंधन की वजह से केरल को भयंकर बाढ़ की त्रासदी झेलनी पड़ी, वहीं तमिलनाडु में प्रदूषण की मार झेल रहे हज़ारों लोगों ने तूतीकोरिन स्थित स्टरलाइट कॉपर स्मेलटर यूनिट को बंद करवाने के लिए सड़को पर उग्र प्रदर्शन किया, इन सबके बावजूद प्रदूषण और पर्यावरण चुनावी मुद्दा नहीं है. इसी प्रकार कुछ रूटीन सर्वेक्षण और दिल्ली में कॉलोनी बसाने के नाम पर पेड़ों की कटाई के ख़िलाफ़ लोगों का प्रदर्शन के अलावा ज़्यादातर प्रयास महज़ दिखावा है. अभी भी शहरीकरण के नाम पर पेड़-पौधे हटाए जा रहे हैं और नतीजतन मौसम ख़राब होता जा रहा है.
मौसम विभाग की माने तो केरल बाढ़ जलवायु परिवर्तन का परिणाम है. ऐसे में आवश्यक है कि 2019 के मद्धेनजर सरकार जलाशय के प्रबंधन, गड़ियों से निकलने वाला धुंआ में कमी, देश की हवा को स्वच्छ करने की दिशा में ठोस क़दम और पर्यावरण को बचाने के लिए सख़्त क़ानून बनाने की दिशा में एक समग्र प्रयास किया जाए.
वैश्विक प्रतिबद्धता
पेरिस समझौते के तहत भारत 2030 तक कार्बन उत्सर्जन को 2.5-3 अरब टन तक कम करने को लेकर वचनवद्ध है. इसके बावज़ूद हम वनीकरण रे लक्ष्य से काफी पीछे हैं. बता दें कि यूएनईपी के उत्सर्जन रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2030 में कार्बन उत्सर्जन 56 गीगाटन तक पंहुच जाने से दुनिया के तापमान में 2.9 से 3.4 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हो जाएगी. पर्यावरण को बचाने की दिशा में पहल करते हुए भारत सरकार न केवल जंगल बढ़ाने की दिशा में काम कर रही है बल्कि पानी के स्तर को सुधारने की दिशा में भी प्रयासरत है. पर्यावरण और वन विभाग मंत्रालय की तरफ से 'परिदृश्य आधारित जलग्रहण उपचार योजना (landscape-based catchment treatment plan)' प्रस्तावित किया गया है जिससे की अंतर को पूरा किया जा सके.
स्वच्छ हवा की खोज
भविष्य को देखते हुए भारत में हवा की गिरती गुणवत्ता सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. भारत सरकार ने हाल ही में 102 शहरों में हवा की गुणवत्ता को बेहतर करने के लिए 300 करोड़ की योजना पास की है. इस योजना के तहत 2019 से 2024 तक प्रदूषण के स्तर में 20-30% की कमी लाने का लक्ष्य रखा गया है. सरकार ने शुरुआत में प्रदूषण पर नज़र बनाए रखने, प्रदूषण के कारकों का पता लगाना और लोगों के सेहत पर पड़ रहे इसके प्रभाव संबंधी जानकारी जुटाने पर ध्यान केंद्रित किया है. सरकार ने पहले भी स्पष्ट किया है कि प्रदूषण से होने वाली बीमारी और मौत को लेकर डाटा संग्रह करने का कोई तकनीक नहीं है.
महत्वपूर्ण नदियां
साल 2014 के चुनाव में गंगा को स्वच्छ और पुनर्जीवित करने का मुद्दा उठाया गया था. जो फ़िलहाल शहरों के नाले को गंगा में गिरने से रोकने और उसे गंदा पानी साफ़ करने के संयंत्र तक पहुंचाने पर केंद्रीत है. इस साल नमामि गंगा प्रोजेक्ट योजना के तहत कुछ आदारभूत संरचना तैयार होने की उम्मीद जताई जा रही है. इन सबके बावज़ूद सरकारी योजना में गंगा नदी को बचाने, उसे जीवंत रखने के लिए प्रणाली का विकास करने, जैव विविधता को संरक्षित करने और श्रद्धालुओं को गंगा में नहाने से लेकर पूजा करने तक को लेकर सही मार्गदर्शन करने जैसी महत्वपूर्ण बातों पर ध्यान नहीं दिया गया है.
समुद्र के बढ़ते स्तर से ख़तरा
भारत के तटों पर ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से सदी के आखिर तक समुद्र का जल स्तर 3.5 इंच से 34 इंच तक बढ़ सकता है. मुंबई सहित पश्चिमी तट और पूर्वी भारत के प्रमुख डेल्टाओं में यह बड़े खतरे की घंटी हो सकती है. एक रिपोर्ट के अनुसार सरकार ने हैदराबाद स्थित नेशनल सेंटर फॉर ओशियन इन्फॉर्मेशन सर्विस के हवाले से बताया है कि मुंबई और अन्य पश्चिमी तट जैसे खम्बाट, गुजरात का कच्छ, कोंकण के कुछ हिस्से और दक्षिण केरल समुद्र स्तर बढ़ने से सबसे ज्यादा चपेट में आ सकते हैं.
बड़े बांधों की सुरक्षा
देश में बांधों की सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करने के मकसद से केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बांध सुरक्षा विधेयक 2018 को मंजूरी दी है. विधेयक के कानून बनने से बांधों का ना सिर्फ बेहतर तरीके से संचालन और रखरखाव किया जा सकेगा बल्कि उसकी निगरानी और निरीक्षण भी ठीक से हो सकेगा. बिल में बांध सुरक्षा को लेकर एक राष्ट्रीय समिति बनाने का प्रावधान है, जो इसके लिए नीति बनाने का सुझाव देगी. इसके अलावा नियामक तंत्र के रुप में राष्ट्रीय बांध सुरक्षा प्राधिकरण भी बनाया जा सकेगा.
अमेरिका और चीन के बाद सबसे बड़े बांध भारत में हैं. यहां 5,200 से अधिक बड़े बांध हैं और लगभग 450 निर्माणाधीन हैं. इसके अलावा हजारों मध्यम और छोटे बांध हैं.
भारत के 75 फीसद बड़े बांध 25 वर्ष से अधिक पुराने हैं. 164 बांध सौ साल से भी अधिक पुराने हैं. पहले अलग-अलग समय पर देश के भीतर 36 बांधों के टूटने से न केवल पर्यावरणीय क्षति हुई बल्कि हजारों लोगों की जान भी जा चुकी है. इनमें राजस्थान के ग्यारह, मध्य प्रदेश के दस, गुजरात के पांच, महाराष्ट्र के चार, आंध्र प्रदेश के दो और उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, तमिलनाडु ओडिशा के एक-एक बांध शामिल हैं. 1979 में गुजरात में स्थित मच्छू -2 बांध के टूटने से 1,800 लोगों की मौत हो गई थी.
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साल 2018 में केरल में आई बाढ़ भी इसी का परिणाम बताया जा रहा है.
Source : News Nation Bureau