उत्तरी त्रिपुरा (Tripura) में कल यानी शनिवार रात एक वाहन की जांच के दौरान बांग्लादेश (Bangladesh) के कॉक्स बाजार (Cox Bazaar) की रहने वाली पांच महिलाओं को गिरफ्तार किया गया. ये सभी महिलाएं असम (Assam) के करीमगंज जा रही थीं. यह घटना बताती है कि असम में इस बार भारत-बांग्लादेश सीमा से सटे इलाकों में संसदीय चुनाव 'साम-दाम-दंड-भेद' की नीति पर हो रहे हैं. संभवतः यही वजह है कि ढुबरी में भारतीय जनता पार्टी ने अपना प्रत्याशी ही नहीं उतारा. यहां से बीजेपी नीत एनडीए के सहयोगी दल असम गण परिषद (AGP) का प्रत्याशी मैदान में है. वजह सिर्फ यही है कि मुस्लिम बाहुल्य ढुबरी में धर्म के आधार पर वोटों का ध्रुवीकरण हो रहा है.
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जमीनी स्तर पर बात करें तो ढुबरी में सांप्रदायिक कार्ड जमकर खेला जा रहा है. लक्ष्य बिल्कुल साफ है. बीजेपी के खिलाफ माहौल खड़ाकर मुस्लिम वोटों को एकजुट किया जाए. इस बात को समझ ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (AIUDF) के सांसद बदरुद्दीन अजमल अपनी चुनावी रणनीति पर काम कर रहे हैं. 65 फीसदी मुस्लिम वोटों वाली इस संसदीय सीट पर अजमल का मुकाबला कांग्रेस के अबु ताहिर बेपारी, असम गण परिषद के जावेद इस्लाम और तृणमूल कांग्रेस के नुरुल इस्लाम चौधरी से है. ये सभी प्रत्याशी अपने-अपने पक्ष में मुस्लिम वोटों को जुटाने का लक्ष्य लेकर चुनाव लड़ रहे हैं.
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ढुबरी देश की उन 15 सीटों में शामिल है, जहां मुस्लिम वोटों का प्रतिशत 50 फीसदी से ज्यादा है. ढुबरी से अभी तक एक भी हिंदू नेता चुनाव नहीं जीत सका है. हालांकि 1998 में बीजेपी के डॉ पन्नालाल ओसवाल ने 24 फीसदी वोटों पर कब्जा कर तगड़ी लड़ाई पेश की थी. हालांकि डॉ पन्नालाल ओसवाल की 1999 में उल्फा ने हत्या कर दी.
सांप्रदायिक कार्ड खेलने का आलम यह है कि 1983 के नेली (Nellie) और 2002 के गुजरात दंगों का खुलेआम जिक्र हो रहा है. इसके अलावा 'डी वोटर्स' और एनआरसी (नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस) भी मुस्लिम मतों को अपनी ओर खींचने के लिए जोर-शोर से प्रचारित किए जा रहे हैं. यहां बीजेपी के राष्ट्रीय नारे विकास का कोई नामलेवा नहीं है. उस पर विगत दिनों गो-मांस बेचने के शक में शौकत अली को सुअर का मांस खिलाए जाने की घटना भी बीजेपी के प्रति मतदाताओं में डर पैदा करने के लिए किया जा रहा है.
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ढुबरी में 3 लाख के लगभग हिंदू बंगाली मतदाता हैं, जो फिलहाल कांग्रेस का हाथ झटक चुके हैं. चूंकि बीजेपी नागरिकता बिल का मसला पुरजोर से उठाए है, तो अब वे उसके पीछे लामबंद हैं. इस बिल के अमल में आते ही इन लोगों को भारतीय नागरिकता मिल जाएगी, इस उम्मीद में वे सभी बीजेपी के पीछे आ खड़े हुए हैं. वैसे ढुबरी के 16 लाख मतदाताओं में हिंदू वोटरों की संख्या 6 लाख है. हिंदू बंगाली मतदाताओं के अलावा कोच-राजबोंघीष भी अच्छी संख्या में हैं.
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जाहिर है सांप्रदायिक कार्ड के चलते बीजेपी और असम गण परिषद ने जावेद इस्लाम को उतारा है. इस तरह उनकी नजरें हिंदू मतदाताओं के साथ-साथ मुस्लिम वोटों पर भी हैं. हिंदू वोटर बीजेपी का नाम जुड़ा होने से इस्लाम को वोट करेंगे. इसके अलावा मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल ने केंद्र की पीएमकिसान योजना को भी चतुराई से अमली-जामा पहनाया है. इस योजना का फायदा लेने वालों में मुस्लिम किसान भी हैं. इस तरह बीजेपी की मुस्लिम विरोधी छवि को तोड़ने की कोशिश हो रही है. हालांकि इतना तय है कि बीजेपी के लिए राह इतनी आसान नहीं है.
Source : News Nation Bureau