कभी गाड़ी नाव पर तो कभी नाव गाड़ी वाली हिंदी कहावत भारतीय राजनीति पर बिल्कुल खरी उतरती है. 2014 की बात है तब पीएम इन वेटिंग नरेंद्र मोदी को न सिर्फ वाराणसी में रैली करने की इजाजत नहीं दी गई थी, बल्कि उनके रोड शो के काफिले की रफ्तार भी थाम दी गई थी. कहते हैं उस वक्त यह कारनामा तत्कालीन अखिलेश सरकार के निर्देश पर वाराणसी के डीएम ने किया था. और... आज जिला प्रशासन समेत उत्तर प्रदेश की सरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नामांकन को ऐतिहासिक बनाने के लिए जी-जान से जुटी है.
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2014 में नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे और वाराणसी में नामांकन करने जा रहे थे. तब बीजेपी की योजना भव्य जुलूस निकालने और बड़ी सभा करने की थी, लेकिन तत्कालीन डीएम प्रांजल यादव ने सुरक्षा कारणों को आधार बना रैली रद्द कर दी थी और मोदी के रोड शो का काफिला रोक दिया था. बड़ी हाय-तौबा मची थी. अरुण जेटली ने तो प्रांजल यादव को 'अपराधी अधिकारी' तक करार दिया था. बीजेपी राज्य सरकार की पक्षपातपूर्ण कार्रवाई की शिकायत चुनाव आयोग तक लेकर गई थी. तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश सिंह यादव समेत राम गोपाल वर्मा तक पर अंगुलियां उठीं.
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राज्य में सत्तारूढ़ यादव परिवार से प्रांजल यादव की नजदीकियों को उस समय और बल मिला, जब मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उन्हें मुख्यमंत्री कार्यालय से संबद्ध कर विशेष सचिव की जिम्मेदारी दी. बीजेपी के केंद्र में आने के बाद तय माना जा रहा था कि प्रांजल यादव को उनके 'किए' की सजा मिल कर रहेगी. लेकिन जो हुआ उसने सत्ता और नौकरशाह के संबंधों को एक नया आयाम दिया. प्रांजल यादव को उनकी 'कर्तव्यनिष्ठा' के लिए मोदी सरकार ने सम्मानित किया और पीएम नरेंद्र मोदी के सपनों को साकार करने की खास जिम्मेदारी दी.
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वाराणसी को क्योटो बनाने के पीएम मोदी के ख्वाब को साकार करने का 'रोड मैप' तैयार करने के लिए जापान गए प्रतिनिधिमंडल में प्रांजल यादव भी शामिल थे. यही नहीं, पीएम बनने के बाद नरेंद्र मोदी और प्रांजल यादव की कई मुलाकातें हुईं. पीएम मोदी ने उन्हें वाराणसी को विकास पथ पर अग्रसर करने की खुली छूट दी. इसके बाद प्रांजल यादव पीएम मोदी के एक और 'सिग्नेचर प्रोजेक्ट' स्किल इंडिया के मिशन डायरेक्टर बनाए गए. फिलहाल चुनाव पूर्व किए गए तबादलों में प्रांजल यादव को नेशनल इंटीग्रेशन में विशेष सचिव बना कर भेजा गया है.
Source : Nihar Ranjan Saxena