अमेठी की जनता ने गुरुवार को गांधी परिवार के साथ अपना 39 साल पुराना नाता तोड़ लिया. यह एक ऐसा रिश्ता जो भावनाओं से भरा और भावनाओं से पोषित था. बीजेपी की स्मृति ईरानी की जीत और राहुल गांधी की हार सिर्फ चुनावी लड़ाई का नतीजा नहीं है, यह उससे कहीं अधिक है. जगदीशपुर के एक व्यवसायी बेचू खान ने परिणाम के बारे में बोलते हुए कहा, 'अमेठी में एक पीढ़ीगत बदलाव देखा जा रहा है. नई पीढ़ी के पास भावनाओं के लिए बहुत कम जगह है और अपने भविष्य के बारे में अधिक चिंतित है जो उसने स्मृति ईरानी और बीजेपी में देखा है.'
उन्होंने कहा, 'इस नई पीढ़ी ने राजीव गांधी का स्थानीय लोगों से जुड़ाव नहीं देखा है. उन्होंने यह नहीं देखा कि संजय गांधी ने अमेठी को कैसे महत्वपूर्ण बनाया. इसलिए उनका गांधी परिवार के साथ भावनात्मक रिश्ता नहीं है.'
ये भी पढ़ें: General Election 2019: अमेठी सीट से 38000 से अधिक वोटों से हारे राहुल गांधी
गौरीगंज के एक वकील शिवनाथ शुक्ला ने कहा, 'हमारे लिए पहचान अधिक महत्वपूर्ण थी, विकास नहीं. जहां भी हम देश भर में जाते थे और कहते थे कि हम अमेठी के हैं तो हमें सम्मान मिलता था और स्थानीय कांग्रेस सदस्य हमारी मदद के लिए पहुंचते थे. स्थानीय लोगों के लिए यह अधिक मायने रखता था.'
तो फिर अमेठी ने इस बार गांधी को वोट क्यों नहीं दिया? इसपर स्थानीय लोगों का कहना है स्मृति ईरानी को चुनने में मुख्य भूमिका युवा मतदाताओं ने निभाई है.
मुसाफिरखाना से कांग्रेस कार्यकर्ता राम सेवक ने कहा, 'वह (ईरानी) उनके पास पहुंचीं, उन्हें छात्रवृत्ति, नौकरी आदि दिलाने में मदद की. युवाओं को अपने भविष्य के लिए एक नई आशा दिखाई दी. स्थानीय बीजेपी नेताओं ने स्मृति ईरानी और लोगों के बीच एक सेतु का काम किया. इस बार अमेठी में अपने हित के लिए मतदान किया है.'
और पढ़ें: स्मृति ईरानी ने किया ट्वीट, कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता ...
इसके अलावा, साल 2014 में अमेठी में स्मृति ईरानी ने एक लाख से अधिक मतों के अंतर से सीट हारने के बाद भी चुनाव प्रचार जारी रखा. वह नियमित रूप से निर्वाचन क्षेत्र का दौरा करती रहीं और राहुल गांधी की अनुपस्थिति की ओर इशारा करती रहीं. दिल्ली में भी अमेठी के लोग उन तक आसानी से पहुंच सकते थे.
Source : IANS