राजस्थान में सीटों के बटवारे पर जातिवाद हावी, तय नहीं हो पा रहा प्रत्याशियों का नाम

राजस्थान के लोकसभा सीटों पर प्रत्याशियों के नाम को लेकर दोनों बड़ी राजनीतिक पार्टियां बीजेपी (BJP) और कांग्रेस (Congress) में अभी संशय की स्थिति है.

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Vikas Kumar
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राजस्थान में सीटों के बटवारे पर जातिवाद हावी, तय नहीं हो पा रहा प्रत्याशियों का नाम
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लोकसभा चुनाव 2019 (General Election 2019) अब ज्यादा दूर नहीं है. सारी राजनीतिक पार्टियां एक दूसरे से दो-दो हाथ करने को तैयार हैं और जीतने के समीकरण बनाने में लगी हुई हैं. राजस्थान के लोकसभा सीटों पर प्रत्याशियों के नाम को लेकर दोनों बड़ी राजनीतिक पार्टियां बीजेपी (BJP) और कांग्रेस (Congress) में अभी संशय की स्थिति है. दोनों एक दूसरे के सामने तगड़ा प्रत्याशी उतारना चाहते हैं इसलिए दोनों पार्टियां ये सोच रही कि पहले सामने वाली पार्टी अपने प्रत्याशी का नाम घोषित करे.

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बता दें कि राजस्थान की 25 लोकसभा सीटों पर प्रत्याशी चयन के लिए कांग्रेस व भाजपा में मंथन चल रहा है और प्रदेश की करीब 10 सीटें जातिवाद के भंवर में फंसी है. दरअसल 10 सीट ऐसी हैं जहां जाति विषेश का वर्चस्व वर्षों से कायम है. आइये, इन सीटों के समीकरण के बारे में समझते हैं इस खास आर्टिकल में -
लोकसभा सीटों पर प्रत्याशी उतारने के लिए दिल्ली में हुई बीजेपी की प्रदेश कोर कमेटी की मीटिंग में 13 सीटों पर मौजूदा सांसदों को उतारने पर सहमती बनी. जबकि कांग्रेस की स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक में कुल 25 प्रत्याशियों के नाम फाइनल हुए जिनमें विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी, राजस्व मंत्री हरीश चौधरी, चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा, कृषि मंत्री लाल चंद कटारिया, पूर्व नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी सहित को लोकसभा का टिकट मिल सकता है

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12 बीजेपी में क्षेत्रीय व जातीय समीकरण के कारण आ रही अड़चन
बीजेपी की प्रदेश कोर कमेटी में शामिल पूर्व सीएम वसुंधरा राजे सहित अन्य पदाधिकारी 260 दावेदारों की सूची लेकर दिल्ली में प्रदेश चुनाव प्रभारी प्रकाश जावड़ेकर से मिले. गंगानगर, चूरू, सीकर, झुंझुनूं, करौली-धौलपुर, भरतपुर, बाड़मेर, राजसमंद, अलवर, अजमेर, दौसा व बांसवाड़ा सहित 12 सीटों पर नाम तय नहीं हो पाए. यहां जाट, जाटव फैक्टर के अलावा क्षेत्रीय पार्टियों की भूमिका को देखते हुए टिकट तय होते हैं.

होली के बाद आएगी कांग्रेस की लिस्ट
कांग्रेस स्क्रीनिंग कमेटी की दिल्ली में चली दो राउंड की मीटिंग में 25 नाम फाइनल हुए हैं. इन्हें अब केंद्रीय चुनाव समिति में भेजा जाएगा. वहां से नाम फाइनल होते ही होली के बाद सूची जारी की जाएगी.

10 सीटों के फंसने की वजह
यहां की सीटों पर ज्यादातर सीटों जातिवाद का ही दबदबा रहा है और पिछले पांच सालों से किसी खास जाति या वर्ग के लोग ही जीतते आए हैं. आइये देखते हैं कौन सी हैं वो 10 सीटें-
जयपुर शहर: ब्राह्मण (1991-2014)
लगातार 7 लोकसभा चुनावों से ब्राह्मण जीत रहे हैं. 6 बार भाजपा और एक बार कांग्रेस प्रत्याशी जीता.

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सीकर: जाट (1991-2014)
पिछले 7 आम चुनावों से जाट प्रत्याशी के पास सीट. पिछली बार वैदिक आश्रम पिपराली के महंत जीते थे.
झुंझुनूं: जाट (1996-2014)
1991 में अयूब खान ने इस सीट पर जीत दर्ज की थी. इसके बाद पिछले 6 आम चुनावों से जाट ही जीत रहे.
चूरू: जाट (1991-2014)
यहां 7 लोकसभा चुनावों से जाट ही जीत रहे हैं. 5 बार तो पिता-पुत्र रामसिंह कस्वां-राहुल कस्वां जीते.
नागौर: जाट (1991-2014)
पिछले 7 में सभी 7 आम चुनावों में जाट प्रत्याशी ने ही जीत दर्ज की है. जबकि, इन सीटों पर 2-3 जातियां ज्यादा हावी
जैसलमेर-बाड़मेर: जाट (1991-2014)
यहां भी सात में से 6 लोकसभा चुनावों में जाट ही जीते. सिर्फ 2004 में राजपूत मानवेन्द्र सिंह विजयी रहे थे.
पाली: जैन (1991-2014)
इस सीट पर 7 में से 5 आम चुनावों में जैन की जीत हुई. हालांकि, 2009 में जाट और 2014 में कल्बी जाति के प्रत्याशी ने जीत हासिल की थी.
जोधपुर: राजपूत (2009-2014)
7 में 3 बार माली, 2 बार विश्नोई, 2 बार राजपूत जीते. 2009 और 2014 में यह सीट राजपूत के पास रही.

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अलवर: यादव
परिसीमन के बाद अलवर सीट यादव बाहुल्य हो गई है. इस वजह से यहां यादव प्रत्याशी को ज्यादा तरजीह दी जाती है. पहले यह सीट सब जातियों के लिए ओपन मानी जाती थी.
राजसमंद: राजपूत
परिसीमन के बाद 2009 में पहली बार चुनाव हुए. दोनों बार राजपूत जीते. इस बार प्रत्याशी कोई भी हो, यहां से राजपूत प्रत्याशी का उतारा जाना लगभग तय है.
स.माधोपुर: मीणा/गुर्जर
पिछले दो लोकसभा चुनावों में इस सीट से एक बार मीणा और एक बार गुर्जर जीते. यहां से उतरने वाला प्रत्याशी मीणा या गुर्जर जाति का ही होगा.
जयपुर ग्रा.: जाट/राजपूत
जयपुर ग्रामीण सीट 2009 में बनी. यहां एक बार जाट और एक बार राजपूत प्रत्याशी जीता. यहां से दोनों बार जीते प्रत्याशी केंद्र सरकार में मंत्री बने.
इन सीटों के जातीय समीकरण को देखकर लगता है कि लोकतंत्र चाहे कितना ही परिपक्व हो गया हो मगर जातिवाद की जकड़ से आजाद नही हो पाया है.

Source : लालसिंह फौजदार

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