हालांकि रविवार को आए तमाम एक्जिट पोल (Exits Polls) केंद्र में फिर से नरेंद्र मोदी सरकार की वापसी करा रहे हैं, लेकिन एनडीए (NDA) खासकर बीजेपी (BJP) ने अभी भी अपने सारे पत्ते नहीं खोले हैं. गौरतलब है कि 17वीं लोकसभा चुनाव के पहले से यह कयास लगने शुरू हो गए थे कि यदि एनडीए को किन्हीं कारणों से पूर्ण बहुमत नहीं मिलता है, तो बीजेपी के लिए 'किंगमेकर' की भूमिका कौन निभा सकता है! इसके लिए बीजेपी ने एक खास रणनीति भी बनाई और पूरे चुनाव प्रचार अभियान में दक्षिण के तीन क्षत्रपों के खिलाफ नरम रुख अपनाए रखा. ऐसे में 23 मई को आने वाले चुनाव परिणामों (Loksabha Results 23 May) तक एनडीए ने 'फिंगर क्रॉस' रखी है और इन 'किंगमेकर्स' तक जाने वाले रास्ते भी खुले रखे हैं.
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जगन मोहन रेड्डी
आंध्रप्रदेश (Andhra Pradesh) विधान सभा और लोकसभा चुनाव एक साथ ही हुए. इसके बाद दोनों ही के एक्जिट पोल बता रहे हैं कि चंद्रबाबू नायडू की तेलुगू देशम पार्टी (TDP) को दोहरा झटका लग सकता है. न्यूज नेशन से लेकर इंडिया टुडे और अन्य एक्जिट पोल राज्य में जगन की पार्टी वायएसआर कांग्रेस पार्टी (YSRCP) को लोकसभा की 25 सीटों में 18 से 20 सीटें तक दे रहे हैं. यह संकेत टीडीपी नेता नायडू (Chandrababu Naidu) के लिए कतई अच्छा नहीं है. अगर एक्जिट पोल के आंकड़े जमीनी हकीकत बनते हैं तो नायडू के मिशन महागठबंधन को पलीता लगना तय है. ऐसे में जगन की पूछ बढ़ेगी. सिर्फ एनडीए में ही नहीं, बल्कि यूपीए में भी. वह किस तरफ जाएंगे इसे आसानी से समझा जा सकता है. जगन का ठिकाना एनडीए ही होगा.
वजह साफ है. जगन मोहन (Jagan Mohan Reddy) की आंध्रप्रदेश में पूरी राजनीति चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी के खिलाफ ही रही है. ऐसे में जिस खेमे में चंद्रबाबू होंगे, वहां जगन नहीं जाएंगे. हालांकि वह कह चुके हैं कि जो भी आंध्रप्रदेश को खास राज्य का दर्जा और पैकेज देगा, वह उसके साथ जाएंगे. बीजेपी नीत एनडीए के लिए यह कोई बड़ी बात नहीं है. इसके अलावा बीजेपी ने वायएसआरसीपी और जगन मोहन के खिलाफ चुनाव प्रचार के दौरान भी नरम रवैया (Soft Approach) ही अपनाए रखा. बीजेपी के आक्रामक हमले के केंद्र में भी चंद्रबाबू नायडू ही रहे. ऐसे में जगन मोहन बीजेपी के मददगार साबित हो सकते हैं.
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के चंद्रशेखर राव उर्फ केसीआर
आंध्रप्रदेश से अलग होकर अस्तित्व में आए तेलंगाना के सीएम के. चंद्रशेखर राव (KCR) की राजनीतिक समझ और पकड़ के कायल उनके धुर विरोधी भी हैं. ऐसे में जब लोकसभा चुनाव से पहले विधानसभा चुनाव करने का उन्होंने निर्णय किया, तो सभी मानकर चल रहे थे कि उनका यह दांव रंग लाएगा. गैर बीजेपी और गैर कांग्रेसी सोच रखने वाला उनका रवैया राज्य में कांग्रेस और बीजेपी के लिए घातक भी साबित हुआ. विधानसभा चुनाव में दोनों ही राष्ट्रीय दलों को उनकी हैसियत पता चल गई. इसके बाद लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने 'एकला चलो' का नारा देकर तीसरे मोर्चे (Third Front) की वकालत कर दी. इसके बावजूद बीजेपी के प्रति उनकी सोच बदल सकती है.
हालांकि अब तक की उनकी राजनीति देखते हुए इसके संकेत बेहद क्षीण हैं. फिर भी राजनीति में कब क्या हो जाए कुछ कहा नहीं जा सकता है. सच तो यह है कि केसीआर (k ChandraSekhar Rao ) केंद्र में बड़े पद की इच्छा रखते हैं. इसीलिए वह गैर बीजेपी और गैर कांग्रेस सरकार का नारा देते आए हैं. चर्चा तो यह भी है कि उन्होंने डीएमके नेता एम के स्टालिन (MK Stalin) से बात कर उन्हें कांग्रेस से अलग राह चुनने को कहा है. इसके साथ ही उन्होंने रविवार को आए सभी एक्जिट पोल को खारिज कर दिया है. वह भी तब जब सभी में उनकी पार्टी का प्रदर्शन राज्य में अच्छा दिखाया गया. यह बताता है कि वह अपनी सोच के मुताबिक लोकसभा चुनाव परिणामों की उम्मीद कर रहे हैं. यानी ऐसे परिणाम जहां तीसरे मोर्चे के लिए ढेर सारी गुंजायश हो. हालांकि ऐसा नहीं होने की स्थिति में वह बीजेपी की तरफ थोड़ी मुश्किल से ही जा सकते हैं, लेकिन कांग्रेस के दरवाजे तो वह खुद बंद कर चुके हैं. तेलंगाना को अलग राज्य का दर्जा देने में कांग्रेस के टालू रवैये को ही उन्होंने अब तक के चुनाव में भुनाया है. दूसरे बीजेपी के साथ जाने में एक बड़ी अड़चन उनकी पार्टी का एआईएमआईएम के साथ गठबंधन है. बीजेपी का साथ देने ले राज्य का मुस्लिम मतदाता (Muslim Voters) उनसे छिटक सकता है. हालांकि देश में अगर बीजेपी को मुस्लिम वोट अच्छा मिलता है, तो यह अड़चन भी दूर हो सकती है. वह बीजेपी के साथ आ सकते हैं.
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नवीन पटनायक
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) को जानने-समझने का दावा करने वाले अक्सर कहते हैं कि ओडिशा राज्य को लेकर बीजेपी का रुख स्पष्ट है. यही वजह है कि फानी तूफान के बाद ऐन लोकसभा चुनाव प्रचार के बीच जब पीएम मोदी ने राज्य के सीएम नवीन पटनायक की तारीफ की, तो किसी को ज्यादा आश्चर्य नहीं हुआ था. तमाम विशेषज्ञों ने कहा कि इससे राज्य में बीजेपी के प्रयासों को झटका लग सकता है. हालांकि यह बहुत सोचा-समझा कदम था. गौर करें बीजेपी का नवीन पटनायक के प्रति रुख बहुत अधिक कठोर नहीं रहा है. बीजेपी शुरू से बीजू जनता दल को एनडीए में लाने के लिए प्रयासरत रही है.
इसमें बीजेपी को कोई खास दिक्कत का सामना भी नहीं करना पड़ेगा. ओडिशा में आम जनता केंद्र में मोदी तो राज्य में नवीन पटनायक (Naveen Patnaik) की सरकार चाहती है. यह संकेत कई मीडिया रिपोर्ट में भी मिले. नवीन पटनायक भी कई अवसरों पर पीएम मोदी का पलक-पांवड़े बिछा कर स्वागत-सत्कार कर चुके हैं. ऐसे में 23 मई को चुनाव परिणाम आने के बाद जरूरत पड़ने पर नवीन पटनायक की बीजद एनडीए के खेमे का हिस्सा बन सकती है. कांग्रेस के साथ जाने का रास्ता बीजद के लिए काफी उबड़-खाबड़ है. बीते एक दशक में कांग्रेस आलाकमान की नवीन पटनायक से 'अच्छी' बात नहीं हुई है. इसे नवीन भी स्वीकार कर चुके हैं कि बीजू पटनायक के जो संबंध कांग्रेस के साथ थे, वह उनके नहीं हैं. यानी अगर मतगणना के दिन यानी 23 मई को चुनाव परिणाम आने पर ही पता चलेगा कि अब तक किंगमेकर (King Makers) माने जा रही इस त्रिमूर्ति का अंतिम पक्ष क्या रहेगा!
HIGHLIGHTS
- नवीन पटनायक की तारीफ खुद पीएम मोदी कर चुके हैं.
- जगन उस खेमे हिस्सा नहीं बनेंगे, जहां चंद्रबाबू नायडू होंगे.
- केसीआर की महत्वाकांक्षा केंद्र में बड़ी भूमिका निभाने की है.
Source : Nihar Ranjan Saxena