17वीं लोकसभा के गठन के लिए चुनावी बिगुल फुंक चुका है. कुछ ही दिनों में सियासत की बिसात पर मोहरे चलने लगेंगे. लोकसभा चुनाव 2019 के इस रण में राष्ट्रीय स्तर पर दो धड़ों में सीधी टक्कर है. एक BJP के नेतृत्व वाले NDA और दूसरी कांग्रेस की अगुआई वाले UPA. पीएम नरेंद्र मोदी और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के अलावा 17 बड़े नेता देश का मिजाज तय करेंगे.
नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री
2014 में NDA ने नरेंद्र मोदी को पीएम पद का उम्मीदवार बनाया था. उनके नेतृत्व में राजग ने जबर्दस्त जीत हासिल की थी और केंद्र में पूर्ण बहुमत की सरकार बनी. पांच साल में जितने भी चुनाव हुए उनमें मोदी ही बीजेपी के स्टार प्रचारक रहे. इस बार ‘नमो अगेन’ के रूप में अभियान चलाया जा रहा है. वहीं एक और नारा उछल रहा है ' मोदी है तो मुमकिन है' . एयर स्ट्राइक से उत्साहित इस बार भी बीजेपी मोदी की अगुआई में चुनाव मैदान में है.
योगी आदित्यनाथ, मुख्यमंत्री, यूपी
2017 में सीएम बनने के बाद से योगी आदित्यनाथ बीजेपी में पीएम मोदी के बाद सबसे बड़े प्रचारक के तौर पर उभरे हैं. फायरब्रांड हिंदुत्ववादी नेता के रूप में उनकी पहचान है. हालांकि, गोरखपुर, फूलपुर और कैराना में हुए उपचुनाव में भाजपा हार गयी. लेकिन इसके बाद भी पार्टी को उम्मीद है कि उनके नेतृत्व में प्रदर्शन अच्छा होगा.
राहुल गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष
दिसंबर, 2017 में राहुल गांधी कांग्रेस के नये अध्यक्ष बने. अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस से कर्नाटक की सत्ता चली गई, लेकिन बीजेपी को सत्ता का स्वाद नहीं चखने दिया. राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस ने मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में BJP को सत्ता से बेदखल कर दिया. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी मोदी सरकार को बेरोजगारी, राफेल के मुद्दे पर घेर रहे हैं.
अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष
2014 के चुनाव में अमित शाह के नेतृत्व में यूपी की 80 सीटों में से बीजेपी को 73 सीटों पर जीत मिली. जुलाई, 2014 में उन्हें बीजेपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया. पांच साल में 27 राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए, जिनमें से 14 में जीत और 13 में हार मिली. इस चुनाव में अमित शाह विरोधी पार्टियों और नेताओं पर ज्यादा आक्रामक हैं.
प्रियंका गांधी वॉड्रा, कांग्रेस महासचिव, यूपी प्रभारी
चुनावों के दौरान सोनिया गांधी और राहुल के लिए प्रचार करने वाली कांग्रेस की स्टार प्रचारक प्रियंका गांधी वॉड्रा ने 23 जनवरी को बतौर महासचिव सक्रिय राजनीति में कदम रखा. उन्हें पूर्वी यूपी की 41 लोकसभा सीटों की जिम्मेदारी दी गयी है. उनके आने से यूपी में कांग्रेस कार्यकर्ता उत्साहित हैं. माना जा रहा है कि वह यूपी में पीएम मोदी, अमित शाह और सीएम योगी आदित्य नाथ को सीधी टक्कर देंगी.
मायावती, बसपा प्रमुख
बसपा प्रमुख मायावती की दलित राजनीति में गहरी पैठ है. यूपी ही नहीं, देश के कई इलाकों में उनका वोट बैंक है. हालांकि, 19 प्रतिशत से ज्यादा वोट पाकर भी बसपा 2014 में खाता नहीं खोल सकी थी, लेकिन इस बार वह अपने विरोधी सपा के साथ गठबंधन कर मोदी की मजबूत घेराबंदी करती दिख रही हैं.
अखिलेश यादव, सपा प्रमुख
पारिवारिक कलह के बीच अखिलेश यादव ने सपा की कमान संभाली. 2014 में यूपी की सरकार रहते हुए भी सपा मात्र पांच सीटों पर जीत हासिल कर सकी थी. इस बार वह बसपा से गंठबंधन कर ताल ठोंक रहे हैं. हालांकि, उनके चाचा शिवपाल सिंह यादव नयी पार्टी बनाकर चुनौती पेश कर रहे हैं.
ममता बनर्जी, तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष
एनडीए के विरोध में एकजुट महागठबंधन में पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनजी बड़ा चेहरा बन कर उभरी हैं. 2014 में मोदी लहर के बावजूद उनकी पार्टी टीएमसी ने 42 में से 34 सीटों पर कब्जा जमाया था. 18 जनवरी को कोलकाता में विपक्ष की बड़ी रैली कर ममता ने 15 से ज्यादा दलों को एकजुट किया था.
नीतीश कुमार, जदयू अध्यक्ष
बिहार में नीतीश कुमार बड़ा चेहरा हैं. भाजपा संग 50-50 के फॉर्मूले पर लड़ रहे जदयू अध्यक्ष नीतीश एनडीए में बड़े नेता हैं. सीएम के तौर पर यह उनका तीसरा कार्यकाल है. भाजपा से अलग होने और फिर एनडीए में शामिल होने के बाद इस बार उनकी भूमिका अहम होगी.
एन चंद्रबाबू नायडू, टीडीपी अध्यक्ष
तेलगू देशम पार्टी प्रमुख एन चंद्रबाबू नायडू आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं. 25 सीटोंवाले आंध्र में उनकी बड़ी भूमिका है. तेदेपा पहले एनडीए में थी, लेकिन विशेष दर्जा की मांग पर नायडू एनडीए से अलग हो कर महागठबंधन में शामिल हो गये. वह दक्षिण में भाजपा की राह में बड़ी बाधा बनेंगे.
नवीन पटनायक, बीजद अध्यक्ष
बीजद प्रमुख और ओड़िशा के सीएम नवीन पटनायक का राज्य में मजूबत जनाधार है. 2014 में मोदी लहर के बावजूद यहां भाजपा सिर्फ एक सीट जीत पायी थी, जबकि बीजद ने 21 में से 20 सीटें जीती थीं. मोदी ने यहां दिसंबर और जनवरी में कई दौरे किये हैं.
लालू प्रसाद, राजद अध्यक्ष
बिहार के पूर्व सीएम और राजद प्रमुख लालू प्रसाद इन दिनों चारा घोटाले में रांची में सजा काट रहे हैं, लेकिन बिहार की राजनीति में वह बड़ा चेहरा हैं. 2015 के विस चुनाव में नीतीश के साथ उन्होंने भाजपा को शिकस्त दी थी. हालांकि, बाद में उनकी राहें अलग हो गयीं. इस बार राज्य में राजद महागठबंधन का नेतृत्व करेगा.
शरद पवार, राकांपा अध्यक्ष
महाराष्ट्र के पूर्व सीएम रहे राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार को राजनीति का पुराना खिलाड़ी माना जाता है. इस बार वह कांग्रेस के साथ गठबंधन कर महाराष्ट्र में चुनाव लड़ रहे हैं. राजनीति में उनका जनाधार भले सिमित हो, लेकिन उन्हें गंभीर राजनेता माना जाता है. एक समय वह पीएम मैटेरियल थे.
उद्धव ठाकरे, शिवसेना अध्यक्ष
शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे पिता बाल ठाकरे के बाद विरासत संभाल रहे हैं. एनडीए में रह कर भी वह भाजपा को लगातार घेरते रहे हैं. महाराष्ट्र में अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर भाजपा के लिए सिरदर्द बन गये थे, लेकिन बाद में वह भाजपा के साथ गठबंधन कर साथ में चुनाव लड़ेंगे.
एमके स्टालिन, द्रमुक अध्यक्ष
करुणानिधि के बेटे एमके स्टालिन तमिलनाडु के बड़े नेता हैं. 2014 में एक भी सीट नहीं जीत पाने वाली उनकी पार्टी इस बार कांग्रेस के साथ मिल कर चुनाव लड़ रही है. इस बार उनकी राह आसान मानी जा रही है, क्योंकि उनकी प्रतिद्वंदी अन्नाद्रमुक प्रमुख जे जयललिता का निधन हो चुका है.
महबूबा मुफ्ती, पीडीपी प्रमुख
जम्मू-कश्मीर में भाजपा के साथ सरकार चलाने वाली पीडीपी की राहें अब अलग है. पाकिस्तान से तनाव के बीच कश्मीर इन दिनों काफी डिस्टर्ब है. महबूबा ने हालांकि गठबंधन को लेकर अपने पत्ते नहीं खोले हैं, लेकिन उनकी पार्टी राज्य में भाजपा को चुनौती देगी.
वामदल
वामदल भले ही प्रभावहीन हो गये हों, लेकिन अभी भी देश के कुछ इलाकों में उनका ठोस जनाधार है. केरल में उनकी सरकार है. त्रिपुरा में भी उनकी लंबे समय तक सरकार रही है. इस बार वामदल क्षेत्रीय पार्टियों के साथ महागठबंधन की तैयारियों में जुटा है. धारदार भाषणों के जरिये चर्चा मे रहनेवाले जेएनयू के छात्र कन्हैया कुमार बिहार से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं.
Source : DRIGRAJ MADHESHIA