प्रियंका गांधी को पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाये जाने के बाद गोरखपुर के कांग्रेसी काफी खुश नजर आ रहे हैं. इनको अब लगने लगा है की उनकी पार्टी एक बार फिर से अपने उस सुनहरे अतीत में लौट सकेगी. गोरखपुर में पार्टी की स्थिति भले ही इस समय काफी ख़राब हो, लेकिन प्रियंका के आगमन की सूचना के बाद इनका जोश एक बार फिर से लौट आया है. गोरखपुर में कांग्रेस की पूर्व प्रत्याशी डॉ. सुरहिता करीम और जिलाध्यक्ष राकेश यादव का मानना है कि प्रियंका के पूर्वी उत्तर प्रदेश के प्रभारी बनाये जाने के बाद से कार्यकर्ता काफी उत्साहित हैं और वह लोग ज्यादा से ज्यादा लोगो को जोड़ने का अभियान चला रहे हैं. ऐसा नहीं है की कांग्रेस की शुरू से ही बुरी स्थिति थी.
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देश में 1951-52 में पहली बार लोकसभा चुनाव हुए. तब गोरखपुर ज़िले और आसपास के ज़िलों को मिलाकर 4 सांसद चुने जाते थे. 1951-52 में गोरखपुर दक्षिण से सिंहासन सिंह कांग्रेस के सांसद चुने गए. यही सीट बाद में गोरखपुर लोकसभा सीट बनी. 1957 में गोरखपुर लोकसभा सीट से दो सांसद चुने गए. सिंहासन सिंह दूसरी बार सांसद बने और दूसरी सीट कांग्रेस के महादेव प्रसाद ने जीती. इसी कड़ी में 1962 के लोकसभा चुनाव में गोरखनाथ मंदिर ने चुनाव में दस्तक दी. गोरक्षापीठ के महंत ब्रह्मलीन दिग्विजय नाथ हिंदू महासभा के टिकट पर मैदान में उतरे. उन्होंने कांग्रेस के सिंहासन सिंह को कड़ी टक्कर दी, लेकिन वह हार गए. सिंहासन सिंह लगातार तीसरी बार सांसद बने. 1967 में दिग्विजय नाथ निर्दलीय चुनाव लड़े और कांग्रेस के विजय रथ को रोक दिया. दिग्विजय नाथ चुनाव जीत गए. 1969 में दिग्विजय नाथ का निधन हो गया. जिसके बाद 1970 में उपचुनाव हुआ. दिग्विजय नाथ के उत्तराधिकारी और गोरक्षपीठ के महंत ब्रह्मलीन अवैद्यनाथ ने निर्दलीय चुनाव लड़ा और सांसद बने.
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1971 में फिर से कांग्रेस ने इस सीट पर वापसी की. कांग्रेस के नरसिंह नरायण पांडेय चुनाव जीते. 1977 में इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव में भारतीय लोकदल के हरिकेश बहादुर चुनाव जीते. कांग्रेस के नरसिंह नरायण पांडेय चुनाव हार गए. 1980 के चुनाव से पहले हरिकेश बहादुर कांग्रेस में चले गए. कांग्रेस ने सत्ता में वापसी की और हरिकेश बहादुर कांग्रेस के टिकट पर दूसरी बार सांसद बने. 1984 के लोकसभा चुनाव से पहले हरिकेश लोकदल में चले गए. लेकिन इस बार पार्टी बदलने के बावजूद वे चुनाव नहीं जीत सके. कांग्रेस ने मदन पांडेय को चुनाव लड़ाया और मदन जीतकर सांसद बने. 1989 के चुनाव में राम मंदिर आंदोलन के दौरान गोरखनाथ मंदिर के मंहत अवैद्यनाथ फिर से चुनावी मैदान में उतर गए और हिंदू महसभा के टिकट पर अवैद्यनाथ दूसरी बार सांसद बने. इसके बाद से यह सीट कभी कांग्रेस को वापस नहीं मिली. पिछले 28 सालों में कांग्रेस की स्थिति काफी ख़राब हो चुकी है. पार्टी में नए लोगों के नहीं जुड़ने और बूथ लेवल पर कार्यकर्ताओं की कमी की वजह से यह पार्टी चौथे नम्बर की पार्टी बन चुकी है.
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पिछले छह लोकसभा चुनाव व एक उपचुनाव में कांग्रेस की यहां से जमानत भी नहीं बचा पाई है .जमीनी स्तर पर यहां कांग्रेस का कोई आधार नहीं बचा है. और तो और पार्टी का अपना को कार्यालय भी नहीं है. एक जुगाड़ के कमरे में कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता किसी तरह से पार्टी चला रहे हैं. प्रचार के लिए ना तो कोई सिस्टम है और ना ही बजट.पिछले साल हुए लोकसभा उपचुनाव में कांग्रेस को यहां से मात्र 18858 वोट मिला था. कांग्रेस पार्टी की उम्मीदवार डा. सुरहिता चटर्जी करीम गोरखपुर लोकसभा उपचुनाव बुरी तरह से हार गई थी. उनकी जमानत भी जब्त हो गई थी और इसी के साथ लगातार सात बार जमानत जब्त कराने का अनोखा रिकार्ड भी कांग्रेस के खाते में जुड़ गया था. गोरखपुर के वरिष्ठ पत्रकार अजय श्रीवास्तव का मानना है कि गोरखपुर में पार्टी का प्रभाव न के बराबर है. पार्टी यहां चुनाव केवल औपचारिक रूप से लड़ती है जिसका खामियाजा पार्टी को हमेशा भुगतना पड़ता है. पार्टी का कोई नेता गोरखपुर सीट को केन्द्रित कर काम नहीं करता लेकिन जब चुनाव आता है तो टिकट के दर्जनों दावेदार हो जाते हैं. इस बार भी यही हाल है. टिकट के लिए लम्बी लाइन लगी है लेकिन इनमें से कोई ऐसा दावेदार नहीं दिखता जो चुनाव में मजबूती से अपनी उपस्थिति दर्ज करा सके.
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यहां से 6 बार चुनाव जीत हासिल करने वाली कांग्रेस जब धराशायी हुई तो फिर कभी संभल न सकी. पिछले छह चुनाव में हर बार प्रत्याशी बदलने के बावजूद उसका प्रदर्शन फीका होता गया है. जिले के अधिकतर कांग्रेस नेताओं का कोई जनाधार नहीं है. उनकी कभी कभार ही उपस्थिति दिखती है. कुछ नेता तो केवल मीडिया में अपनी उपस्थिति बनाये रखने की जुगत करते रहते हैं. कांग्रेस की इसी कमजोरी का फायदा बीजेपी को मिलता आया है और इस बार भी बीजेपी पूरे उत्साह में है. बीजेपी के क्षेत्रीय प्रवक्ता बृजेश त्रिपाठी का मानना है की प्रियंका गांधी की कोई आंधी इस लोकसभा में काम नहीं करेगी. आज जिस तरह से बीजेपी ने चुनाव प्रचार को पूरी तरह से हाईटेक कर दिया है उसके मुकाबले कांग्रेस के पास ऐसा कुछ भी नहीं है जो सोशल मिडिया पर उसकी उपस्थिति को दर्ज करा सके. 1996 से गोरखपुर लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन काफी ख़राब रहा है और 3 से 4 प्रतिशत में ही पार्टी का सारा वोट सिमट के रह गया है. सोनिया गांधी और राहुल गांधी की रैलियों से भी यहां कुछ प्रभाव नहीं पड़ा. इस लोकसभा चुनाव में प्रियंका गांधी के चुनाव प्रचार को लेकर कांग्रेसी उत्साहित तो हैं और लोगों को पार्टी से जोड़ने का अभियान भी चलाया जा रहा है, लेकिन इस अभियान का असर वोटों को कितना बढ़ा पायेगा, ये देखना दिलचस्प होगा.
Source : Dipak Srivastava