मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के तीसरे और देश के छठे चरण के चुनाव में हर किसी की निगाहें भोपाल लोकसभा सीट पर टिकी हैं जो देश की राजनीतिक दिशा और दशा के लिए बेहद अलग होगा. कल तक जो भगवा बीजेपी का पेटेंट माना जाता था, यहां कांग्रेसी भी उसी रंग में रंगे नजर आ रहे हैं. राजनीति की इस नई प्रयोगशाला से क्या निकलेगा जानने के लिए थोड़ा इंतजार करना होगा. जी हां, भोपाल (Bhopal) ने सुर्खियों में बनारस, अमेठी और रायबरेली को जरूर पीछे छोड़ दिया. मप्र में 12 मई को होने जा रहे भोपाल, गुना, मुरैना, विदिशा, भिंड, ग्वालियर, सागर और राजगढ़ लोकसभा चुनाव में भोपाल बेहद संवेदनशील तथा अंतर्राष्ट्रीय मीडिया की निगाहों में हैं.
भोपाल
कांग्रेसी दिग्गज दिग्विजय सिंह (Digvijay Singh) और हिन्दू आतंकवाद के लपेटे में लंबे समय से विवादों और सुर्खियों में रही साध्वी प्रज्ञा ठाकुर (Sadhvi Pragya Thakur) के बीच मुकाबला दो विचारधाराओं से भी बढ़कर हिन्दुत्व पर केन्द्रित होकर दिलचस्प मोड़ पर आ खड़ा हुआ है. दोनों राजपूत हैं लेकिन हिन्दुत्व छोड़ सारे मुद्दे गौण हैं. प्रज्ञा स्वयं साध्वी हैं तो सैकड़ों साधुओं का तपती धूप में दिग्विजय के लिए हठयोग और रोड शो जैसे आयोजन देश पहली बार देख रहा है. ऊंट किस करवट बैठेगा कहना आसान नहीं. जातिगत समीकरण भी भोपाल के जरिए कौन सा सूत्र गढ़ेगा या राजनीति के दलदल में भगवा रंग का पैरामीटर बदलेगा? अभी कयास हैं. ऐसे में नाक की लड़ाई बने भोपाल का फैसला 19,56,936 मतदाताओं में करीब चार लाख मुस्लिम, साढ़े तीन लाख ब्राह्मण, ढाई लाख कायस्थ, दो लाख अनुसूचित जाति-जनजाति, सवा लाख क्षत्रिय, इतने ही सिन्धी मतदाताओं को करना है.
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आरएसएस (RSS) के दबदबे वाली इस सीट पर 1989 के बाद से बीजेपी लगातार काबिज है. फिलहाल कायस्थ समाज के आलोक संजर सांसद हैं. 8 विधानसभाएं जिसमें भोपाल उत्तर, भोपाल दक्षिण-पश्चिम,भोपाल मध्य में कांग्रेस तो नरेला,गोविन्दपुरा, हुजूर, सीहोर, बैरसिया में बीजेपी काबिज है. गुना (सामान्य) लोकसभा सीट से कांग्रेस और सिंधिया परिवार के नुमाइंदे ही जीतते रहे हैं. 2014 में कांग्रेस के ज्योतिरादित्य सिंधिया चौथी बार जीते. इनसे पहले माधवराव सिंधिया और भारतीय जनता पार्टी (BJP) की संस्थापक सदस्य विजयाराजे सिंधिया सांसद रहीं. 1999 से कांग्रेस का कब्जा है. पहले बीजेपी की विजयाराजे सिंधिया 1989 से 1999 तक सांसद रहीं. कांग्रेस 9, भाजपा 4 और जनसंघ 1-1 बार जीत चुकी है. 8 विधानसभा सीटों में बमोरी, चंदेरी, पिछोर, मुंगावली, अशोकनगर पर कांग्रेस तो शिवपुरी, गुना, कोलारस पर बीजेपी काबिज है. सिंधिया परिवार के लिए अपारजेय इस सीट पर मुकाबला कांग्रेस के ज्योतिरादित्य सिंधिया और बीजेपी के नए प्रत्याशी डॉ. केपी यादव के बीच है. कांग्रेस का पलड़ा भारी है ऐसे में बीजेपी का नया प्रयोग उसके मतों का कितना प्रतिशत बढ़ाएगा, यही देखा जाएगा.
मुरैना
मुरैना (सामान्य) लोकसभा सीट उत्तर प्रदेश और राजस्थान सीमा से लगी है. सात बार बीजेपी, दो बार कांग्रेस, एक-एक बार जनसंघ, भारतीय लोकदल और निर्दलीय चुनाव जीते हैं. यहां सीधा मुकाबला बीजेपी प्रत्याशी केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर (Narendra Singh Tomar) और बीता विधानसभा चुनाव हारे कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष रामनिवास रावत में है. बसपा भी ठीक-ठाक स्थिति में है जिससे गुर्जर जाति के करतार सिंह भड़ाना सामने हैं. बसपा किसका समीकरण बिगाड़ेगी देखना दिलचस्प होगा. विधानसभा की 8 सीटों में 7 श्योपुर, सबलगढ़, जौरा, सुमावली, मुरैना, दिमनी, अंबाह में कांग्रेस तो एकमात्र विजयपुर में बीजेपी काबिज है. यहां बीजेपी अपना दबदबा बनाए रखने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रही है तो कांग्रेस ने भी बिसातें बिछा दी हैं. मुख्य मुकाबला इन्हीं दोनों के बीच है.
विदिशा
विदिशा (सामान्य) लोकसभा सीट मध्य प्रदेश की सबसे हाईप्रोफाइल थी. अटलजी, सुषमा स्वराज, रामनाथ गोयनका, शिवराज सिंह, राघवजी जैसे दिग्गजों ने यहां प्रतिनिधित्व किया. लेकिन इस बार नए व सीधे सरल स्वभाव के रमाकान्त भार्गव को बीजेपी का टिकट मिला जो जिला सहकारी बैंक और एपेक्स बैंक के अध्यक्ष हैं. जिनके ब्राह्मण होने से जातिगत समीकरण बिठाने की कोशिशें भी लगती है. कांग्रेस ने अपने कद्दावर नेता पूर्व विधायक शैलेन्द्र पटेल को खड़ा किया है. विदिशा से ही नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी (Kailash Satyarthi) भी आते हैं और लोगों का मानना है कि यहां से कर्क रेखा गुजरती है इसलिए जीतने वाला राजनीतिक ऊंचाइयों तक जाता है. किसी हाईप्रोफाइल के नहीं लड़ने से विदिशा बेहद शांत और बिना किसी लहर या उत्साह के मतदान को तैयार है. इसमें विधानसभा सांची, विदिशा में कांग्रेस तो भोजपुर, इच्छावर, गंजबासौदा, खातेगांव, सिलवानी, बुधनी में बीजेपी काबिज है. ऐसे में राजनीतिक गोटियां भी बिछाई गई हैं. यकीनन विदिशा का फैसला रोचक होगा.
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भिंड
इस बार भिंड (अनुसूचित जाति) लोकसभा सीट पिछले साल दो अप्रैल 2018 को हुए दलित संगठनों के भारत बंद के दौरान ग्वालियर-चंबल में दलित बनाम सवर्ण से एकाएक सुर्खियों में आए युवा चेहरा देवाशीष जरारिया का कांग्रेस उम्मीदवार बनने से अलग चर्चाओं में है. हालाकि ब्राह्मणवाद और मनुवाद के प्रखर विरोधी रहे देवाशीष अब खुद को अम्बेडकरवादी कांग्रेसी कह सबको साथ लेकर चलने की बात कह रहे हैं. बीजेपी ने पूर्व ब्यूरोक्रेट और मौजूदा सांसद भागीरथ प्रसाद का टिकट काटकर मुरैना के दिमनी की पूर्व विधायक संध्या राय पर दांव खेल सबको चौंकाया है. संध्या शिवराज गुट की हैं तथा पार्टी की वफादार मानी जाती हैं. 2009 में परिसीमन के बाद भिण्ड अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हुई तबसे बीजेपी लगातार दोनों बार जीती. इतिहास में झांके तो 8 बार बीजेपी तो केवल 3 बार कांग्रेस यहां परचम लहरा सकी. 8 विधानसभा सीटों में 5 लहार, मेहगांव, सेवड़ा, भांडेर, गोहद में कांग्रेस अटेर, दतिया में बीजेपी तो भिण्ड में बसपा काबिज है. जातिगत समीकरणों के लिहाज से भी नतीजा रोचक होगा. टक्कर कांग्रेस-बीजेपी के बीच सीधी है.
ग्वालियर
ग्वालियर (सामान्य) लोकसभा सीट पर भी बीजेपी ने मौजूदा सांसद केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर का टिकट काटकर यहीं से मेयर विवेक नारायण शेजवलकर को मैदान में उतार मराठा मतदाताओं को साध सुमित्रा महाजन की भरपाई की कोशिश भी की है. संघ की पसंद, गुटबाजी से दूर मराठा मतदाताओं में पैठ रखने वाले शेजवलकर बीजेपी में सबकी पसंद हैं. कांग्रेस ने तीन बार से लगातार हार का सामना कर रहे अशोक सिंह को टिकट दिया है. 2014 की मोदी लहर के बावजूद बीजेपी यहां से महज 29600 मतों से जीत पाई थी. ऐसे में कांग्रेस (Congress) बड़ी चुनौती को फिर तैयार है. 22 बार चुनाव हारकर भी एक चायवाला आनन्द सिंह कुशवाहा 23वीं बार चुनाव मैदान में है. इसमें 8 विधानसभा में सात ग्वालियर, ग्वालियर-पूर्व, ग्वालियर-दक्षिण, भितरवार, डबरा, करेरा, पोहरी में कांग्रेस तो ग्वालियर-ग्रामीण में बीजेपी काबिज है. अहम यह कि क्या बीजेपी यहां अपना किला बचा पाएगी ? चुनावी उफान के बाद भी मतदाताओं का निरुत्साह चुनावी पंडितों की सांसें फुलाए हुए है.
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सागर
बुंदेलखंड अंचल की सागर (सामान्य) लोकसभा सीट मप्र का सबसे बड़ा संभाग है. यहां 6 बार से बीजेपी जीत रही है. जातिगत समीकरण के लिहाज से ठाकुर और जैन समुदाय का वर्चस्व है. मुकाबला बीजेपी-कांग्रेस के बीच दो दागी ठाकुरों में सीधा-सीधा है. बीजेपी दो बार के सांसद लक्ष्मीनारायण यादव की जगह नया चेहरा नगर निगम के अध्यक्ष रायबहादुर सिंह ठाकुर को जबकि कांग्रेस ने प्रभुसिंह ठाकुर को मैदान में उतारा है जो दिग्विजय कैबिनेट में राज्यमंत्री थे. इस बार जैन समाज का रुख साफ नहीं दिखने से कशमकश काफी रोचक है. हालांकि, बीजेपी से बगावत कर निर्दलीय पर्चा दाखिल कर वापस ले चुके मुकेश जैन ढाना को टिकट न मिलने से जैन समाज की नाराजगी कितनी दूर हुई यह अन्दर की बात है. इसमें 8 विधानसभा आती हैं जिनमें बीना, खुरई, नरयावली, सागर, सिरोंज, शमशाबाद, कुरवाई में बीजेपी एकमात्र सुरखी में कांग्रेस काबिज है. ऐसे में प्रत्याशी बदलने व भीतरघात का असर चुनावी नतीजों पर कितना पड़ेगा यह नतीजों से ही साफ होगा.
राजगढ़
राजगढ़ (सामान्य) लोकसभा सीट दिग्विजय सिंह के दबदबे वाली मानी जाती है. जहां दो बार खुद दिग्गी राजा तो 5 बार उनके भाई लक्ष्मण सिंह सांसद रहे. पिछली बार यह सीट बीजेपी की झोली में थी. कांग्रेस ने पहली बार किसी महिला को उम्मीदवार बनाया है जो दिग्विजय की पसंद है. वहीं बीजेपी ने वर्तमान सांसद रोडमल नागर पर ही दांव खेला है. बसपा ने निशा त्रिपाठी को मैदान में उतारा जरूर लेकिन उन्होंने नाम वापस ले लिया जिससे त्रिकोणीय मुकाबला अब सीधा है.
मोना तीन बार से जिला पंचायत सदस्य हैं जिसका फायदा उन्हें मिलेगा. इस सीट पर 6 बार कांग्रेस 3 बार बीजेपी जीत चुकी है. इसमें 7 विधानसभा सीटों में 5 पर चाचौड़ा, राघोगढ़, खिलचीपुर, ब्यावरा, राजगढ़ कांग्रेस तथा नरसिंहगढ़ व सुसनेर में बीजेपी व निर्दलीय हैं.
मध्य प्रदेश के तीसरे चरण में जहां भोपाल सबसे अलग रंग में है. वहीं, 3 अन्य सीटें अब भी हाईप्रोफाइल हैं. कुल मिलाकर 6 में नाक की लड़ाई तो 2 में प्रभाव के दमखम पर मुहर 23 मई को लग पाएगी जो देखने लायक होगा.
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Source : IANS