Mamata Vs Modi : बंगाल की सियासी पिच और राजनीतिक फायदे के लिए TMC - BJP की धुआंधार बैटिंग

लोकसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है वैसे ही पश्चिम बंगाल सत्ताधारी पार्टी बीजेपी और विपक्षियों की लड़ाई का गढ़ बनता जा रहा है जिसके एक ध्रुव पर नरेंद्र मोदी और अमित शाह खड़ें है तो दूसर तरफ राज्य की सीएम ममता बनर्जी के नेतृत्व में पूरा विपक्ष एकजुट होने की कोशिश में है

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Mamata Vs Modi : बंगाल की सियासी पिच और राजनीतिक फायदे के लिए TMC - BJP की धुआंधार बैटिंग

पीएम मोदी और ममता बनर्जी (फाइल फोटो)

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लोकसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है वैसे ही पश्चिम बंगाल केंद्र में सत्ताधारी पार्टी बीजेपी और विपक्षियों की लड़ाई का गढ़ बनता जा रहा है जिसके एक ध्रुव पर नरेंद्र मोदी और अमित शाह खड़ें है तो दूसरी तरफ राज्य की सीएम ममता बनर्जी के नेतृत्व में पूरा विपक्ष एकजुट होने की कोशिश में है. इस लड़ाई को तो तब और हवा मिली जब रविवार को शारदा चिंड फंड घोटाला मामले में सीबीआई कोलकाता पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार से पूछताछ करने पहुंची तो उल्टे केंद्रीय जांच एजेंसी (सीबीआई) टीम को ही राज्य पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया.सीबीआई और बंगाल पुलिस की यह खींचतान शाम होते-होते ममता बनर्जी बनाम नरेंद्र मोदी की लड़ाई बन गई. पीएम मोदी के खिलाफ ममता की इस लड़ाई में उमर अब्दुल्ला, शरद पवार, अरविंद केजरीवाल, तेजस्वी जैसे विपक्षी नेता ने अपने समर्थन की आहुति देने लगे जिसके बाद दोनों तरफ से ही इसे लोकतंत्र के लिए खतरा और संघीय ढांचे पर हमला बताया जाने लगा.

अब सवाल यह उठ रहा है कि जब इसी शारदा घोटाले में सत्ताधारी पार्टी टीएमसी के नेता मदन मित्रा, सुदीप बंदोपाध्याय, कुणाल घोष जैसे तमाम नेता फंसे चुके हैं तो आखिर इस बार ऐसा क्या हुआ कि घोटाले को लेकर ममता पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार के लिए सीबीआई के सामने ढाल बनकर खड़ी हो गईं और धरने पर बैठ गईं.

आप जब इस सवाल के तह तक जाएंगे तो आपको पता चलेगा कि दरअसल यह सारी कवायद महीने दो महीने में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए हो रही है. राज्य में बीजेपी का बढ़ता ग्राफ ममता बनर्जी को खतरे की घंटी की तौर पर दिख रहा है जिसकी वजह से वो किसी भी हालत में बंगाल में बीजेपी के बढ़ते जनाधार को रोकना चाहती हैं और चुनाव में इसका फायदा उठाना चाहती हैं. ममता की पार्टी तृणमूल के लिए वैसे भी अब राज्य में लेफ्ट और कांग्रेस कोई खास मायने नहीं रखता क्योंकि एक तरफ तो दोनों ही पार्टियां का अस्तित्व वहां खतरे में है और कांग्रेस तो आए दिन मोदी विरोध के नाम पर ममता को समर्थन देती रहती हैं.

बीजेपी के बढ़ते ग्राफ से बढ़ी रही है ममता की टेंशन

पश्चिम बंगाल में ममता की पार्टी तृणमूल कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद से ही लेफ्ट और कांग्रेस के बुरे दिन शुरू हो गए हैं लेकिन 2014 के बाद से बीजेपी का ग्राफ तेजी से बढ़ता जा रहा जो ममता की टेंशन को भी बढ़ा रहा है. बीजेपी ने राज्य की 42 में से 22 लोकसभा सीटों पर जीत का लक्ष्य रखा है और पूरी बीजेपी का ध्यान अभी पश्चिम बंगाल पर ही केंद्रित है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर पार्टी अध्यक्ष अमित शाह तक बंगाल की लगातार यात्रा कर रहे हैं और जनधारा को बढ़ाने के साथ ही संगठन को भी तृणमूल के खिलाफ मजबूत करने में जुटे हुए हैं.

ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि बीते साल 2018 में पश्चिम बंगाल के एक लोकसभा सीट उलुबेरिया और विधानसभा सीट नवपाड़ा पर हुए उप चुनाव में बीजेपी को भले हीं जीत न मिली हो लेकिन लेफ्ट और कांग्रेस को पछाड़कर वो दूसरे नंबर पर रही थी. इतना ही नहीं अभी हाल ही पश्चिम बंगाल में हुए पंचायत चुनाव में भी बीजेपी टीएमसी के बाद दूसरे नंबर पर थी. टीएमसी जहां 20848 ग्राम पंचायत की सीटों को जीतने में सफल रही थी वहीं बीजेपी ने 5657 पंचायत की सीटों पर जीत हासिल की थी. यहां सीपीएम तीसरे और कांग्रेस चौथे नंबर पर रही थी.

इन आंकडों के अलावा साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी राज्य में करीब 17 फीसदी वोट पाने में सफल रही थी और दो सीटों पर कब्जा भी किया था. जबकि लेफ्ट को 9 सीटों का नुकसान हुआ था. वहीं 2016 में हुए विधानसभा चुनाव में जीत भले टीएमसी को मिली थी लेकिन बीजेपी ने अपने वोट प्रतिशत को 6 से बढ़ाकर 10 फीसदी तक पहुंचा दिया था और तीन सीटों को जीतने में भी कामयाबी पाई थी. एनडीए गठबंधन को कुल 6 सीटें हासिल हुई थी. इससे पहले राज्य में बीजेपी के एक भी विधायक नहीं थे. इन आंकड़ों से साफ है कि अब बीजेपी लेफ्ट और कांग्रेस को पछाड़कर पश्चिम बंगाल में मुख्य विपक्षी पार्टी बन चुकी है और ममता बनर्जी इसी बात से परेशान हैं.

ममता की मुस्लिमपरस्त छवि का फायदा उठाने की जुगत में बीजेपी

बीजेपी पश्चिम बंगाल में कोई भी ऐसा मौका नहीं गंवाना चाहती जिससे उसके जनाधार में वहां वृद्धि हो. बात चाहे वहां रथ यात्रा निकालने की हो या फिर दुर्गापूजा विसर्जन या फिर सरस्वती पूजा की. इन हिंदू त्योहारों पर ममता बनर्जी के मुस्लिम त्योहारों को तरजीह देने को बीजेपी जोर-शोर से लोगों के बीच उठाती है और अपनी छवि के मुताबिक ऐसे मामलों को कोर्ट तक भी ले जाती है. ऐसे में बीजेपी की छवि जहां हिंदू हितों की रक्षा वाली बनती है वहीं ममता बनर्जी की छवि बहुसंख्यकों की भावनाओं को सम्मान नहीं देने वाली मुख्यमंत्री की बन जाती है.

ऐसे में पश्चिम बंगाल में कल तक जो हिंदू लेफ्ट या कांग्रेस के साथ थे अब वो अपने हितों को देखकर तेजी से बीजेपी के तरफ आ रहे हैं. रोहिंग्या मुद्दों को लेकर भी ममता बनर्जी पर बीजेपी हिंदू विरोधी होने का आरोप लगाती रहती है. शायद यही वजह है कि लोकसभा चुनाव को सामने देखकर इस बार ममता बनर्जी ने बंगाल के सबसे बड़े त्योहार माने जाने वाले दुर्गापूजा में पहली बार पूजा पंडालों को सरकार की तरफ से मदद देने का भी ऐलान कर दिया.

अब लेफ्ट नहीं ममता के निशाने पर है बीजेपी

साल 2011 तक राज्य में सत्ता चला रहे लेफ्ट पर ममता बनर्जी हमलावर रहती थीं लेकिन विधानसभा चुनाव में उनसे सत्ता छीनने के बाद ममता के राजनीतिक दुश्मन भी बदल गए. बंगाल में लेफ्ट के गर्त में जाने और बीजेपी के उभार खासतौर पर 2014 के बाद से ममता ने अपना पूरा फोकस बीजेपी विरोध पर लगा दिया. ममता बनर्जी बीजेपी के बढ़ते जनाधार से किस कदर परेशान हैं इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि बंगाल में आए दिन बीजेपी और टीएमसी कार्यकर्ताओं में खूनी संघर्ष की खबरें सुर्खियां बनती है.

2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए ही अभी हाल में ममता बनर्जी ने अमित शाह के हेलीकॉप्टर को बंगाल की धरती पर लैंडिंग की इजाजत नहीं दी जिस पर जमकर विवाद हुआ. अभी एक दिन पहले ही बीजेपी के फायर ब्रांड नेता और यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ के हेलीकॉप्टर को भी ममता बनर्जी ने लैंड नहीं करने दिया जिसके बाद योगी ने पहली बार मोबाइल से बंगाल की जनता को संबोधित किया.

विवाद ममता का क्या फायदा ?

अब ऐसे में जो सवाल सभी के मन में उठ रहा है कि आखिरकार सीबीआई बनाम राज्य पुलिस के इस विवाद से आखिरकार फायदा किसका होगा. तो इसका सीधा सा जवाब है आने वाले चुनाव में दोनों दलों को इसका फायदा होगा. ममता बनर्जी का फायदा यह है कि बीते 15 दिनों में दो बार देश के सभी नेताओं को पछाड़ते हुए वो केंद्र की राजनीति की मुख्य धुरी बनकर उभरी हैं और उन्हें मोदी के आगे विपक्ष के सबसे कद्दावर चेहरे के तौर पर देखा जा रहा है.

ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि जनवरी में ममता बनर्जी के जनाक्रोश रैली में लगभग सभी विपक्षी पार्टियों के नेता को ममता बनर्जी एक मंच पर लाने में सफल रही थीं और अब वहीं एक बार फिर सभी विपक्षी दल ममता की आवाज में हां में हां मिला रहे हैं. इसका सीधा फायदा ममता को यह होगा कि टीएमसी के कोर समर्थक और वोटर ममता बनर्जी को मोदी के विकल्प के तौर पर देखेंगे और मोदी विरोध की यह राजनीति राष्ट्रीय फलक पर उनकी राजनीति का विस्तार कर रही है.

विवाद से बीजेपी को क्या फायदा ?

पश्चिम बंगाल के हाल में जितने भी सर्वे सामने आए हैं उसमें करीब 49 फीसदी जनता पीएम मोदी को दोबारा प्रधानमंत्री के तौर पर देखने की इच्छुक है. जबकि राज्य की करीब 25 फीसदी जनता की पीएम पद के लिए पहली पसंद ममता बनर्जी हैं. ऐसे में इस विवाद और बीजेपी नेताओं को राज्य में रोकने की कोशिश से बीजेपी के जनाधार में और बढ़ोतरी होगी और गैर मुस्लिमों को लगेगा कि ममता बनर्जी भ्रष्ट अधिकारियों और नेताओं को बचाने क लिए किसी भी हद तक जा सकती है. वहीं दूसरी तरफ पीएम मोदी को लेकर लोगों के मन में यह छवि बनेगी कि वो भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रहे हैं जिसमें यह पार्टियां बाधा बन रही है.

आने वाले लोकसभा चुनाव में भले ही पश्चिम बंगाल में टीएमसी ही नंबर वन पार्टी बने लेकिन इतना तो तय है कि बीजेपी को इस विवाद का फायदा जरूर मिलेगा जिससे उसकी सीट और वोट प्रतिशत दोनों बढ़ने का अनुमान है

Source : Kunal Kaushal

West Bengal Mamata Banerjee CBI Vs Mamata
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