नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के नेतृत्व में केंद्र में लगातार दूसरी बार बनने वाली बीजेपी नीत एनडीए (NDA) की सरकार के सामने लोकसभा में कोई नेता प्रतिपक्ष नहीं होगा. यह तब होगा जब 2014 के 44 की तुलना में 2019 में 52 सीटें हासिल कर कांग्रेस (Congress) 17वीं लोकसभा में पहुंचेगी. वजह यही है कि कांग्रेस इस बार भी 16वीं लोकसभा की ही तरह नेता प्रतिपक्ष पद के लिए जरूरी सांसद जीत कर संसद में पहुंचने में असफल रही है.
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नेता प्रतिपक्ष का यह है नियम
नियमानुसार लोकसभा (Loksabha) में नेता प्रतिपक्ष का पद हासिल करने के लिए मुख्य विपक्षी दल के पास सदन की कुल संख्या के 10 फीसदी सांसद होने चाहिए. चूंकि लोकसभा की कुल सदस्य संख्या 542 है. ऐसे में इस पद की दावेदारी के लिए 55 सांसदों का होना जरूरी है. इस बार हालांकि कांग्रेस ने अपना पिछला प्रदर्शन सुधारते हुए 8 सीटें अधिक जीती हैं. इसके बावजूद वह नेता प्रतिपक्ष (Leader Of Opposition) के लिए आवश्यक सांसदों की संख्या जुटाने में असफल रही है. ऐसे में जाहिर है पिछली लोकसभा की तरह उसे यह पद नहीं मिल सकेगा.
17वीं लोकसभा में बीजेपी 302, कांग्रेस 52 सीटें जीती
शुक्रवार को शाम छह बजे तक एक सीट पर मतगणना जारी थी. उस वक्त तक अरुणांचल प्रदेश (Arunachal Pradesh) की पश्चिमी लोकसभा सीट की मतगणना हो रही थी. समाचार लिखे जाने तक बीजेपी प्रत्याशी और केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू कांग्रेस के नबम टिकू से 41,738 मतों से आगे चल रहे थे. इस वक्त तक बीजेपी 302 सीट चुकी थी, जो कि सदन में बहुमत (Majority) के लिए जरूरी 272 के आंकड़े से कहीं ज्यादा है. इस तरह बीजेपी नीत एनडीए को 17वीं लोकसभा चुनाव में 352 सीटें प्राप्त हुई हैं. यह भारतीय लोकतांत्रिक प्रणाली में प्रचंड बहुमत की श्रेणी में आता है.
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2014 में भी कांग्रेस को नहीं मिला था नेता प्रतिपक्ष का दर्जा
16वीं लोकसभा में भी कांग्रेस को मात्र 44 सीटें प्राप्त हुई थीं. इस वजह से 2014 में भी कांग्रेस को नेता प्रतिपक्ष का दर्जा नहीं मिला था. हालांकि, कांग्रेस लोकसभा में सबसे बड़ा विपक्षी दल था. ऐसे में एनडीए सरकार कांग्रेस के नेता सदन मल्लिकार्जुन खड़गे (mallikarjun kharge) को जरूरी बैठकों में बुलाती जरूर रही. हालांकि इन बैठकों में मल्लिकार्जुन खड़गे को नेता प्रतिपक्ष के तौर पर नहीं, बल्कि लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता के रूप में बुलाया जाता था. यही वजह है कि लोकपाल की नियुक्ति समेत कई अहम बैठकों में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता के रूप में आमंत्रित किए जाने पर मल्लिकार्जुन खड़गे शामिल नहीं हुए थे.
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नेता प्रतिपक्ष पहले लोकसभा स्पीकर मावलांकर की देन
लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सिर्फ लोकसभा में मुख्य विपक्षी पार्टी का ही नेता नहीं होता है, बल्कि यह अपने आप में काफी महत्वपूर्ण पद भी है. वह लोकपाल, सीबीआई निदेशक, मुख्य सतर्कता आयुक्त, मुख्य सूचना अधिकारी और राष्ट्रीय मनावधिकार आयोग के अध्यक्ष की नियुक्ति में अपनी रजामंदी देता है. लोकसभा के स्पीकर जीवी मावलांकर (GV Mavalankar) ने ही नेता प्रतिपक्ष के लिए सदन के कुल सदस्यों की 10 फीसदी संख्या अनिवार्य की थी. यह संख्या सदन के कोरम के बराबर होती थी. यानी लोकसभा की बैठक के लिए जरूरी कोरम की संख्या कुल सदस्यों की संख्या का दस प्रतिशत होती है. ऐसे में नेता प्रतिपक्ष के लिए भी यही नियम लागू होता है. शुरुआती तीन लोकसभाओं में भी नेता प्रतिपक्ष नहीं होता था, क्योंकि पंडित नेहरू के विराट प्रभाव के आगे कोई भी अन्य राजनीतिक दल इतनी संख्या जीत ही नहीं सका था.
HIGHLIGHTS
नेता प्रतिपक्ष के लिए जरूरी है मुख्य विपक्षी दल के 10 फीसदी सांसद होना.
कांग्रेस जरूरी संख्या से है पीछे. पिछली बार भी इसी कारण नहीं मिला था पद.
पहली लोकसभा के स्पीकर जीवी मावलांकर ने तय किए थे नेता प्रतिपक्ष के नियम.
Source : Nihar Ranjan Saxena