2014 से अब तक गंगा में काफी पानी बह चुका है. इसका प्रमाण पिछले लोकसभा चुनाव (Loksabha Elections 2019) से भी ज्यादा सीटों पर बीजेपी या कहें नरेंद्र मोदी का जीतना है. 2014 में यह कहकर भ्रम फैलाने की कोशिश की गई कि अगर नरेंद्र मोदी सत्ता में आते हैं, तो मुसलमानों (Muslim Fear) को भारत छोड़कर जाना पड़ सकता है. उस समय कई मुल्ला-मौलवियों ने बीजेपी के खिलाफ मतदान करने का फतवा (Fatwa) जारी किया. हालांकि यह अलग बात है कि इस फतवे ने हिंदू वोटरों को ही एकजुट किया. नतीजतन बीजेपी की जीत की राह और आसान हो गई.
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मुसलमानों के एक तबके का दूर हुआ 'डर'
इस बार 2019 में परिदृश्य काफी बदला हुआ था. मुसलमानों के एक धड़े का 'डर' दूर हो चुका था और वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister) के कार्यकाल में न सिर्फ खुद को सुरक्षित मान कर चल रहा है, बल्कि अपने लिए आगे बढ़ने के अवसर भी देख रहा है. उसकी यह सोच बीजेपी (BJP) को मिले कुल मतों में हुई वृद्धि के रूप में सामने आई. आंकड़ों की भाषा में बात करें तो बीजेपी ने मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर भी अच्छा प्रदर्शन किया. बिहार, पश्चिम बंगाल और ओडिशा जैसे राज्यों में भी पार्टी का जनाधार काफी बढ़ा है. इसका यह भी मतलब हुआ कि बीजेपी को उन लोकसभा क्षेत्रों में अप्रत्याशित सफलता हासिल हुई, जहां मुस्लिम आबादी (Muslim Dominanse) अधिक है. जाहिर है इन सीटों पर अच्छे-खासे वोट हासिल कर बीजेपी ने कांग्रेस या सपा के वोट बैंक में भी सेंध लगाई.
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फतवों से दूर रहे मुल्ला-मौलवी
एक गौर करने वाली बात यह भी है कि 2019 के लोकसभा चुनावों (Loksabha Elections 2019) में मुल्ला-मौलवियों ने अपने को फतवा आदि जारी करने से दूर रखा. वे जानते थे कि ऐसा कोई भी फतवा बीजेपी के लिए मतों को ध्रुवीकरण (Vote Polarisation) करने का ही काम करेगा. हालांकि जमात-ए-इस्लामी के सैय्यद सदातुल्लाह हुसैनी ने गठबंधन के प्रत्याशी के पक्ष में वोट देने की अपील करते हुए काम करने को अपने नुमाइंदों से कहा था. सनद रहे हर चुनाव में दिल्ली की जामा मस्जिद से खास राजनीतिक पार्टी के लिए जारी होने वाले फतवा इस बार जारी नहीं हुआ.
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29 सीट देती हैं 50 फीसदी मुस्लिम सांसद
2011 की जनगणना के अनुसार, देश की 543 लोकसभा सीटों में से 29 सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम आबादी 40 प्रतिशत से अधिक है. इन 29 में से 27 सीटें जम्मू-कश्मीर, उत्तर प्रदेश, बिहार, असम, केरल और पश्चिम बंगाल में आती हैं, जबकि दो अन्य सीटें लक्षदीप और तेलंगाना की हैदराबाद है. यह बात किसी से छिपी नहीं है कि आजादी के बाद से लोकसभा (Loksabha) में मुस्लिम सांसदों की भागीदारी लगातार घटी है. ऐसे में यह भी दिलचस्प तथ्य है कि 50 प्रतिशत से ज्यादा मुस्लिम सांसद (Muslim MP) इन्हीं 29 सीटों से चुनकर आते हैं.
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इनमें से 5 पर बीजेपी का कब्जा
आजादी (Indipendence) के बाद से बीजेपी को इन 29 सीटों पर अधिक सफलता नहीं मिली थी, लेकिन 2014 और अब 2019 में हालात पूरी तरह बदल गए हैं. 2014 में पार्टी ने 29 में से सात सीटों पर कब्जा जमाया था. इनमें कोई भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं था. इन सात में से पांच सीटें उसे उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में मिली थीं, जहां बीजेपी ने कुल 80 में से 71 सीटें अपने नाम की थी. खास बात ये है कि कई जगह तो उसने कांग्रेस को भी पीछे छोड़ दिया. कांग्रेस ने तब इन 29 में से छह सीटें ही जीती थीं. बाकी की 16 सीटें अन्य दलों के हिस्से में गई थीं.
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67 में से 39 पर बीजेपी का कब्जा
देश की 19 लोकसभा सीट ऐसी हैं, जहां मुस्लिम आबादी 30 से 40 प्रतिशत है, जबकि 48 सीटों पर यह आंकड़ा 20 से 30 फीसदी का है. इन 67 सीटों में बीजेपी को उल्लेखनीय सफलता मिली है. 2014 में इन सीटों में 39 पर बीजेपी का परचम लहराया था. इस बार भी यहां इतनी ही सीटें बीजेपी के हिस्से में आई हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में 22 मुस्लिम प्रत्याशी लोकसभा में पहुंचे थे. इस बार यह आंकड़ा कुछ सुधार के साथ 26 तक पहुंच गया है.
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बीजेपी ने उतारे 6 मुस्लिम प्रत्याशी
हालांकि इनमें से कोई भी बीजेपी (BJP) से नहीं है. पार्टी ने इस बार केवल छह मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया था. गौरतलब है कि 19.5 फीसदी मुसलमान मतदाताओं के बावजूद बीजेपी ने एक भी मुस्लिम प्रत्याशी (Muslim Candidates) मैदान में नहीं उतारा था. यूपी की 30 सीटें ऐसी हैं, जहां मुसलमान मतदाता 15 से 50 फीसदी तक है. ऐसे में बीजेपी का 62 सीटों पर विजय हासिल करना बताता है कि पार्टी को मुस्लिम मतदाताओं का भी भरपूर प्यार मिला है.
HIGHLIGHTS
- 50 फीसदी मुस्लिम सांसद देने वाली 29 सीटों में 5 पर बीजेपी जीती.
- इस बार लोकसभा में चुनकर पहुंचे 26 मुस्लिम सांसद.
- मुसलमानों के एक धड़े ने खुलकर नरेंद्र मोदी का समर्थन.
Source : Nihar Ranjan Saxena