केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी अपने बयान की वजह से लगातार ख़बरों में बने हुए हैं, हालांकि यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा है कि उनका बयान प्रधानमंत्री मोदी के ख़िलाफ़ है या विपक्ष के. यह समझने के लिए सबसे पहले केंद्रीय मंत्री के हालिया बयान को समझते हैं जिसमें उन्होंने कहा है कि 'सपने दिखाने वाले नेता लोगों को अच्छे लगते हैं पर दिखाए हुए सपने अगर पूरे नहीं किए तो जनता उनकी पिटाई भी करती है. इसलिए सपने वही दिखाओं जो पूरे हो सकें. मैं सपने दिखाने वालों में से नहीं हूं, मैं जो बोलता हूं वो शत प्रतिशत डंके की चोट पर पूरा करता हूं.'
विपक्ष का मानना है कि गडकरी का यह बयान नरेंद्र मोदी को केंद्र में रखकर बोला गया है. हालांकि बीजेपी इसका यह कहते हुए बचाव कर रही है कि 'गडकरी ने विपक्ष के लिए यह बात कही है क्योंकि पीएम मोदी जो भी कहते हैं उसे पूरा करते हैं.'
तो क्या वाकई गडकरी का ताज़ा बयान विपक्ष के लिए है, इसे समझने के लिए गडकरी के कुछ पुराने बयान पर भी गौर करते हैं. राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में बीजेपी को मिली हार के बाद 23 दिसम्बर को नितिन गडकरी ने पुणे में कहा था कि 'नेतृत्व को जीत का श्रेय और हार की ज़िम्मेदारी दोनों लेनी चाहिए.' इतना ही नहीं हार की समीक्षा करते हुए उन्होंने कहा था कि 'अगर मैं पार्टी अध्यक्ष हूं और मेरे सांसद और विधायक ठीक से काम नहीं कर रहे हैं तो यह किसी और की नहीं, मेरी ही ज़िम्मेदारी होगी.'
कम-से-कम इस बयान से साफ हो जाता है कि गडकरी अपने शीर्ष नेतृत्व पीएम मोदी और शाह पर ही निशाना साध रहे थे. बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह राज्यों में मिली जीत को मोदी लहर का कमाल बता रहे थे लेकिन जब हार की ज़िम्मेदारी लेने की बात आई तो उन्होंने राज्य और केंद्र के मुद्दे अलग बता कर अपना पल्ला झाड़ लिया था.
इतना ही नहीं अभी तक जिस कांग्रेस को प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह पानी पीकर कोसते रहे गडकरी ने उन्हीं की तारीफ भी की थी. नितिन गडकरी ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की प्रशंसा करते हुए कहा कि उन्हें अपनी क्षमता साबित करने के लिए किसी तरह के आरक्षण की जरूरत नहीं पड़ी और उन्होंने कांग्रेस के अपने समय के पुरुष नेताओं से बेहतर काम किया.
गौरतलब है कि मोदी सरकार ने शीतकालीन सत्र में सवर्णों के लिए आर्थिक आधार पर 10 प्रतिशत आरक्षण का क़ानून लेकर आई थी. जिसके बाद सात जनवरी को नागपुर में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि वे आरक्षण की व्यवस्था में यक़ीन नहीं रखते हैं. 'इस देश में इंदिरा गांधी जैसी नेता भी थीं, क्या उन्होंने कभी आरक्षण का सहारा लिया.'
इससे कुछ समय पहले उनका एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें वे फ़िल्म अभिनेता नाना पाटेकर से मराठी में हंसते हुए यह कहते हुए दिखाई दिए कि 'हमने वादे तो कर दिए थे, हमें क्या पता था कि हम सत्ता में आ जाएंगे और वादे पूरे करने होंगे.' हालांकि बाद में स्पष्टीकरण में यह कहा गया कि यह महाराष्ट्र के संदर्भ में था न कि केंद्र के.'
विपक्ष गडकरी के बयान को मोदी के ख़िलाफ़ कर रही है इस्तेमाल
विपक्ष अब इस मौक़े का राजनीतिक फ़ायदा उठाने में जुट गई है. कांग्रेस नेता प्रियंका चतुर्वेदी ने ट्वीटर पर लिखा, 'गडकरी जी हम समझ गए हैं कि आपका निशाना किधर है.' कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने संवाददाताओं से कहा, 'स्पष्ट है कि गडकरी की नजर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर है और उनका बयान मोदी को इंगित करता है.' राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) प्रवक्ता नवाब मलिक ने कहा कि गडकरी खुद को मोदी के विकल्प के रूप में स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि भारतीय जनता पार्टी सत्ता में वापसी को लेकर पक्का विश्वास नहीं है.
मोदी को संबोधित एक ट्वीट में एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि गडकरी आपको आइना दिखा रहे हैं वह भी काफी परिष्कृत रूप से. बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) प्रवक्ता सुधींद्र भदौरिया ने कहा कि गडकरी द्वारा सीधा हमला होने पर भी मोदी चुप हैं.
संघ का Plan B तो नहीं!
2019 में बीजेपी को बहुमत नहीं मिलने स्थिति में हो सकता है संघ प्लान बी लेकर चल रहा है. राजनीतिक हलकों में माना जाता है कि पीएम मोदी के नेतृत्व में एनडीए के कई सहयोगी बीजेपी से नाराज़ हैं और ऐसे में अगर गठबंधन की सरकार बनाने की नौबत आई तो नितिन गडकरी के नाम पर सहयोगी दलों को साथ किया जा सकता है. केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी की छवि एक तेज़ तर्रार और काम करने वाली नेता की रही है. इतना ही नहीं पार्टी के अंदर भी उनकी अच्छी पकड़ है. ऐसे में उनके नाम पर आसानी से सभी दलों में और पार्टी के अंदर सहमति बनाई जा सकती है.
नितिन गडकरी 2009 से 2013 के बीच भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष रह चुके हैं. इतना ही नहीं गडकरी बीजेपी के पहले ऐसे नेता हैं जिनको दोबारा राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने के लिए पार्टी का संविधान बदल दिया गया था.
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हालांकि घोटाले की आंच के चलते वे दोबारा पार्टी अध्यक्ष बनते-बनते रह गए. गडकरी के संघ के साथ अच्छे संबंध हैं क्योंकि वो नागपुर से आते हैं जहां राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मुख्यालय है.
Source : Deepak Singh Svaroci