लोकसभा चुनाव 2019 (Lok Sabha election 2019) के छठे चरण के लिए मतदान जारी है. इस चरण में पश्चिम बंगाल (West Bengal) की भी 8 सीटों पर मतदान हो रहे है, लेकिन पहले पांच चरणों की तरह यह चरण भी खुंरेजी रहा. वैसे चुनाव चाहे पंचायत का हो या लोकसभा का, पश्चिम बंगाल में बिना खून खराबा संपन्न हो ही नहीं सकता. बंगाल में राजनीतिक हिंसा और खासकर चुनाव के दौरान हिंसा का दौरा खत्म खत्म नहीं हुआ है. राजनीतिक हिंसा हमेशा से पश्चिम बंगाल का हिस्सा रहा है और लोकसभा चुनाव-2019 भी इससे अलग जाता नहीं दिख रहा है.
34 वर्षो तक बंगाल की सत्ता पर काबिज रही माकपा ने नंदीग्राम व सिंगुर में हिंसक घटनाओं को अंजाम दिया. उसी का नतीजा रहा कि उन्हें लोगों ने सत्ता से हटा दिया. जरा याद करिए 18 साल पहले जब 2011 में ममता बनर्जी CPI(M) के 34 साल के शासन को खत्म कर सत्ता में आईं तो लगा पश्चिम बंगाल के सियासी क्षितिज पर राजनीति का एक नया सूरज चमकेगा, लेकिन बहुत जल्द ये भ्रम टूट गया. पश्चिम बंगाल में इस बार सभी पांच चरणों की वोटिंग के दौरान कहीं न कहीं किसी बहाने हिंसा देखने को मिली. अब बीजेपी से लेकर कांग्रेस व अन्य दलों के नेता भी कह रहे हैं कि तृणमूल ने चुनावी हिंसा के मामले में कम्युनिस्टों को भी पीछे छोड़ दिया है. पंचायत चुनाव की हिंसा को भला कौन भूल सकता है.
2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी पश्चिम बंगाल में खूब हिंसा हुई थी. सरकारी आकड़ों की ही बात करें तो 14 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी और 1100 से ज्यादा राजनीति हिंसा की घटनाएं राज्य में चुनाव के दौरान दर्ज की गई थीं. शायद यही कारण रहा कि चुनाव आयोग ने 2016 में राज्य में विधानसभा चुनाव को 6 चरण में कराने का फैसला किया था.
यह भी पढ़ेंः दुनिया की सबसे तेज चलने वाली बुलेट ट्रेन का जापान ने ट्रायल शुरू किया, जानें खासियत
साल 1960-70 के दशक के नक्सल आंदोलन से शुरू हुई हिंसा की ये कहानी अब भी जारी है. एक सरकारी आंकड़े के अनुसार 1977 से 2007 तक ही 28 हजार राजनीतिक हत्याएं राज्य में हुईं. इस दौर के बाद सिंगूर और नंदीग्राम के आंदोलन ने हिंसा का नया चेहरा बंगाल में पेश किया.
लोकसभा चुनाव 2019 में बंगाल में हिंसा
पश्चिम बंगाल में पांच चरणों के मतदान में लगातार हिंसा देखने को मिली है. पहला चरण में यहां 83.80% मतदान हुआ और इस दौरान अलीपुरदुआर और कूच बिहार में टीएमसी और बीजेपी कार्यकर्ताओं के बीच हिंसा की खबर आई. टीएमसी समर्थकों ने लेफ्ट फ्रंट प्रत्याशी गोविंदा राय पर हमला किया और उनकी गाड़ी तोड़ी.
यह भी पढ़ेंः लोकसभा चुनाव 2019 छठा चरण: एक Cilck पर जानें सभी 979 उम्मीदवारों की कुंडली
दूसरा चरण में भी रायगंज के इस्लामपुर में सीपीआई-एम सांसद मोहम्मद सलीम की कार पर कथित तौर पर टीएमसी समर्थकों के पत्थरों और डंडों से हमले की बात सामने आई. तीसरा चरण में भी हिंसा की कई शिकायतें मिली और बमबाजी तक की खबरें आईं.
ऐसे ही चौथा चरण में आसनसोल में टीएमसी कार्यकर्ताओं और सुरक्षाबलों में जमकर झड़प हुई. यही नहीं, बीजेपी सांसद बाबुल सुप्रियो की कार का शीशे भी तोड़े गये. इस सियासी हिंसा में कई ऐसे मौके भी आए हैं, जब सरेआम कानून की खिल्ली उड़ी और पुलिस तमाशबीन बनी रही. यही वजह है कि बंगाल में तैनात किए गए विशेष चुनाव पर्यवेक्षक अजय वी नायक को कहना पड़ा कि राज्य पुलिस पर लोगों को भरोसा नहीं है.
यह भी पढ़ेंः Lok Sabha Chunav 2019: बंगाल के छठे चरण में भी 'हिंसा', TMC-BJP कार्यकर्ताओं की हत्या
बदस्तूर जारी है हिंसा का दौर
बंगाल में सियासी हिंसा के इतिहास देखें तो पता चलेगा कि वाममोर्चा के शासन में होने वाली राजनीतिक हिंसा की घटनाएं आज भी बदस्तूर जारी हैं. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार 2016 में बंगाल में सियासी हिंसा की कुल 91 घटनाएं हुईं जबकि किसी न किसी रूप में 205 लोग इसका शिकार बने थे. 2015 में कुल 131 घटनाएं दर्ज की गई थीं, जिनमें कुल 184 लोगों को नुकसान पहुंचा था. 2013 में सियासी झड़पों में कुल 26 लोगों की जानें गई थीं.
HIGHLIGHTS
- 1977 से 2007 तक ही 28 हजार राजनीतिक हत्याएं राज्य में हुईं
- 2016 में बंगाल में सियासी हिंसा की कुल 91 घटनाएं हुईं, 205 लोग शिकार बने
- 2015 में 131 घटनाएं दर्ज की गई थीं, कुल 184 लोगों को नुकसान पहुंचा
Source : DRIGRAJ MADHESHIA