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प्रियंका गांधी अमेठी-रायबरेली में मजबूत कर रही कांग्रेस की जमीन, जानें 1989 से अब तक कैसे बढ़ाए कदम

Priyanka Gandhi: कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी इनदिनों जमकर प्रचार कर रही है. अब वह गांधी परिवार के गढ़ अमेठी और रायबरेली में डाल चुकी है. पहले जानते हैं प्रियंका गांधी ने पहली बार कब चुनाव प्रचार किया और इससे कांग्रेस को कितना फायदा हुआ.

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Suhel Khan
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Priyanka Gandhi Vadra

Priyanka Gandhi( Photo Credit : Social Media)

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Priyanka Gandhi: प्रियंका गांधी भले ही चुनावी मैदान में नहीं हैं लेकिन गांधी परिवार के गढ़ अमेठी और रायबरेली के अलावा देशभर में चुनाव प्रचार कर रही हैं. प्रियंका गांधी की रैलियों में भीड़ भी उमड़ रही है. ये कोई पहली बार नहीं है जब राहुल गांधी की बहन प्रियंका गांधी अपने भाई और पार्टी के लिए जमकर जनसभा और रैलियां कर रही हैं. इससे पहले भी वह लोकसभा चुनाव के समय कांग्रेस के लिए वोट मांगी आई हैं. ये सिलसिला पिछले 35 साल से जारी है. जब प्रियंका गांधी ने पहली बार अपने पिता और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के साथ चुनाव प्रचार किया था.

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अमेठी में पहली बार 1989 में किया चुनाव प्रचार

प्रियंका गांधी को 2019 में कांग्रेस पार्टी ने महासचिव बनाया. उसके बाद से वह राजनीति में सक्रिय बनी हुई हैं. चुनाव न लड़ने के बावजूद वह पार्टी के लिए जमकर चुनाव प्रचार कर रही हैं. वह पिछले 25 सालों से राजनीति में किसी न किसी तरह से परोक्ष या कई बार सार्वजनिक रूप से अपनी भूमिका निभाती रही हैं और खुलकर चुनाव प्रचार करती रही हैं. उन्होंने अपने विरोधियों पर आक्रामक तरीके से हमला किया है. प्रियंका गांधी ने पहली बार अपने पिता और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के साथ 1989 में लोकसभा चुनाव के दौरान अमेठी में प्रचार किया था.

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1999 में रायबरेली में किया पार्टी के लिए प्रचार

इसके बाद 1999 में प्रियंका गांधी रायबरेली में कांग्रेस उम्मीदवार कैप्टन सतीश शर्मा के लिए चुनाव प्रचार करती नजर आई. इस चुनाव में बीजेपी ने उनके खिलाफ राजीव गांधी के चचेरे भाई और एक समय के उनके करीबी विश्वासपात्र अरुण नेहरू को चुनावी मैदान में उतारा था. तब प्रियंका ने नेहरू के खिलाफ प्रचार करने का मुद्दा उठाया और मतदाताओं से किसी दलबदलू नेता का समर्थन न करने का आह्वान किया. प्रियंका गांधी ने इस चुनाव प्रचार के दौरान कहा था कि, "क्या आप उस व्यक्ति के लिए वोट करेंगे, जिसने मेरे पिता की पीठ में छुरी भोंकी थी."

प्रियंका गांधी के जबरदस्त चुनाव प्रचार के दम पर कैप्टन सतीश शर्मा ने इस चुनाव में जीत हासिल की थी. जबकि नेहरू चौथे स्थान पर रहे थे. लोगों के साथ उनके आसान जुड़ाव और दृढ़ व्यवहार ने पार्टी कैडर को उनके और उनकी दादी इंदिरा गांधी के बीच समानताएं दिखाई देने लगीं. उसके उन्होंने कर्नाटक में बेल्लारी निर्वाचन क्षेत्र में अपनी मां के लिए प्रचार किया. इस चुनाव में सोनिया गांधी पहली बार सुषमा स्वराज को हराकर सांसद पहुंची थीं.

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2004 राहुल गांधी के लिए चुनाव प्रचार में उतरी थीं प्रियंका

उसके पांच साल बाद प्रियंका गांधी ने 2004 में अपने भाई राहुल गांधी के लिए अमेठी में चुनाव प्रचार किया. ये राहुल गांधी का पहला लोकसभा चुनाव था. सोनिया गांधी ने इस सीट को उनके लिए खाली किया था और खुद रायबरेली सीट से चुनावी मैदान में उतरी थीं. 

2009 में भी किया चुनाव प्रचार

प्रियंका गांधी को 2009 में अपने भाई और मां के लिए अमेठी और रायबरेली निर्वाचन क्षेत्रों में प्रचार किया. इस चुनाव के बाद पार्टी कैडर ने प्रियंका को राहुल की तुलना में अधिक सुलभ और मिलनसार नेता के रूप में देखना शुरू कर दिया.

2014 में हुई प्रियंका गांधी को राजनीति में लाने की मांग

2014 लोकसभा चुनाव से काफी पहले प्रियंका को औपचारिक तौर पर राजनीति में लाने की मांग तेज हो गई. कई कार्यकर्ताओं का मानना ​​था कि प्रियंका उभरते हुए नरेंद्र मोदी का राहुल से बेहतर मुकाबला कर सकती हैं. पार्टी की इलाहाबाद इकाई ने बैनर लगाकर विवाद खड़ा कर दिया, जिसमें प्रियंका के नेतृत्व का आह्वान किया गया- "मैया अब रहती बीमार; भैया पार पड़ गया बाहर; प्रियंका फूलपुर से बनो उम्मीदवार, पार्टी का करो प्रचार, कांग्रेस सरकार बनाओ तीसरी बार." हालांकि, प्रियंका पहले से ही पार्टी की चुनावी रणनीति में सक्रिय भूमिका निभा रही थीं. उन्होंने यूपी में 20 कांग्रेस उम्मीदवारों को बदल दिया और देश भर में कई उम्मीदवारों के साथ निकट संपर्क में थीं. कांग्रेस के एक नेता ने कहा कि उन्होंने पूरे देश में लगभग 100 उम्मीदवार बदले हैं.

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2019 में काम नहीं आया प्रियंका का प्रचार

2214 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने अमेठी में राहुल गांधी के खिलाफ स्मृति ईरानी को मैदान में उतारा और आप ने अपने लोकप्रिय नेता कुमार विश्वास को टिकट दिया था. इन दोनों ने मिलकर राहुल को कड़ी चुनौती दी. राहुल के लिए प्रियंका के प्रचार को उनकी आसान अंतर से जीत के पीछे एक महत्वपूर्ण कारक माना गया. हालांकि, 2019 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी को इस सीट पर हाल का सामना करना पड़ा था. ये पहली बार था जब प्रियंका गांधी, गांधी परिवार के गढ़ में चुनाव प्रचार करने के बाद भी उस सीट को बचा नहीं पाईं. 

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