बिहार में लालू प्रसाद यादव के राजनीतिक क्षतिज पर उदय के बाद यह पहला अवसर है जब राष्ट्रीय जनता दल का खाता भी नहीं खुला है. 2014 में मोदी लहर के बावजूद राजद 3 सीटें जीतने में कामयाब रही थी, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में बिहार में महागठबंधन बनाने के बावजूद राजद जीरो रही है. जाति आधारित राजनीति करने वाली राजद के लिए यह गंभीर चिंता का विषय है. इससे यह भी साफ हो गया है कि लालू की अनुपस्थिति में उनके दोनों बेटे तेजस्वी और तेजप्रताप पिता की विरासत को आगे बढ़ाना तो दूर संभालने में भी सक्षम नहीं है.
यह भी पढ़ेंः मनी लॉन्ड्रिंग मामला : रॉबर्ट वाड्रा की अग्रिम जमानत याचिका का ईडी ने किया विरोध
खतरे में आया अस्तित्व
जातिगत राजनीति को ही केंद्र में रख कर बिहार में राजद ने अन्य पिछड़ी जातियों से जुड़ी पार्टियों उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएसपी, मुकेश साहनी की वीआईपी के साथ गठजोड़ कर महागठबंधन बनाया था. इसमें कांग्रेस भी ऐन मौके शामिल हो गई. अस्तित्व में आए नए-नए इस महागठबंधन ने 'ओबीसी आरक्षण खतरे' में का नारा देकर केंद्र सरकार के गरीबों को मिलने वाले 10 फीसदी आरक्षण का भी जमकर विरोध किया. इसके बावजूद उनका यह प्रदर्शन रहा. 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐसी पटकथा लिखी कि 'सामाजिक न्याय' का नारा बुलंद करने वाले दलों का अस्तित्व ही खतरे में आ गया है.
एक नजर बिहार के 40 सीटों पर आए अंतिम परिणामों पर...
Source : News Nation Bureau