पिछले दो माह से कयास लगाए जा रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार देश के हर आदमी के लिए न्यूनतम आय की गारंटी देने जा रही है. यूनिवर्सल बेसिक इनकम स्कीम नाम से चर्चा में आई इस योजना को लेकर तमाम कयासबाजी चल रही है. माना जा रहा है कि सरकार अंतरिम बजट में इसकी घोषणा कर सकती है, लेकिन सरकार से दो कदम आगे जाकर फ्रंटफुट पर खेलते हुए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने छत्तीसगढ़ में बाकायदा इसका ऐलान भी कर दिया. एक तरह से राहुल गांधी ने सरकार का मजा किरकिरा कर दिया है.
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छत्तीसगढ़ में किसानों को ऋणमोचन योजना का प्रमाणपत्र देने के दौरान राहुल गांधी ने कहा- "हम एक ऐतिहासिक फैसला लेने जा रहे हैं, जो दुनिया की किसी भी सरकार ने नहीं लिया है. 2019 का चुनाव जीतने के बाद देश के हर गरीब को कांग्रेस पार्टी की सरकार न्यूनतम आमदनी गारंटी देगी. हर गरीब व्यक्ति के बैंक खाते में न्यूनतम आमदनी रहेगी." राजनीतिक हलकों में माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी बीजेपी जिस योजना के बारे में मंथन ही करती रह गई, राहुल गांधी ने बैठे-बिठाए उसे लपक लिया.
राहुल गांधी ने 'न्यूनतम रोजगार गारंटी' की बात कर उस एक जमात को साधने की कोशिश की है. अगर सरकार अंतरिम बजट में यह प्रावधान कर भी देती है तो राहुल गांधी के पास कहने को यह तर्क हो जाएगा कि मोदी सरकार ने उन्हीं का आइडिया चुराया है. हालांकि सरकार इस पर स्टडी रिपोर्ट पेश कर चुकी है, लेकिन लोगों की सभा में तो राहुल गांधी ने ही इस योजना को परोस दिया है.
राजनीतिक दृष्टि से गारंटी और न्यूनतम आमदनी को कांग्रेस का बड़ा मास्टस्ट्रोक मान सकते हैं, क्योंकि बात जब बैंक खाते और उसमें न्यूनतम आमदनी की होती है तो लोगों को '15 लाख रुपए' की याद आ जाती है और फिर वो ठगा महसूस करते हैं. राहुल गांधी यह भी कह सकते हैं बीजेपी ने 15 लाख का जुमला परोसा और हमने आपके खाते में न्यूनतम आमदनी देने का फॉर्मूला.
छत्तीसगढ़ में ही क्यों की घोषणा
कांग्रेस ने विधानसभा चुनावों के दौरान छत्तीसगढ़ से ही किसानों की कर्जमाफी का ऐलान किया था और वहां पार्टी को दो तिहाई बहुमत हासिल हुआ था. राहुल गांधी छत्तीसगढ़ को शुभ मानते हैं, शायद इसलिए वहां से उन्होंने न्यूनतम आय गारंटी योजना की घोषणा की. राहुल गांधी ने पूरे दमखम से कहा कि "कांग्रेस ने कर्जमाफी, जमीन वापसी का वादा पूरा किया. पैसे की कोई कमी नहीं है. हम दो हिंदुस्तान नहीं चाहते. बीजेपी दो हिंदुस्तान बनाना चाहती है. एक हिंदुस्तान उद्योगपतियों का, जहां सब कुछ मिल सकता है और दूसरा गरीब किसानों का हिंदुस्तान, जहां कुछ नहीं मिलेगा, सिर्फ 'मन की बात' सुनने को मिलेगी."
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क्यों पिछड़ गई मोदी सरकार?
2016-17 की आर्थिक समीक्षा में सार्वभौमिक मूलभूत आय या यूनिवर्सल बेसिक इनकम (यूबीआई) का विचार सामने रखा गया था. आज की तारीख से जोड़ें तो दो साल पहले यह अवधारणा मोदी सरकार के दिमाग में थी लेकिन इसमें कहां चूक हुई, यह विचार-विमर्श का विषय है. अब मोदी सरकार यूबीआई को आगे बढ़ाती भी है तो उसपर 'कॉपीकैट' का चस्पा लगेगा और यही कहा जाएगा कि कांग्रेस का विचार आगे बढ़ाने में मोदी सरकार माहिर है.
क्या है यूनिवर्सल बेसिक इनकम स्कीम
यूनिवर्सल बेसिक इनकम (यूबीआई) एक सामाजिक सुरक्षा योजना है. इसके तहत देश के हर नागरिक को हर महीने एक निश्चित राशि मुहैया कराई जाती है ताकि वे अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा कर सकें यानी लोगों को बिना कोई काम किए और बिना शर्त एक निश्चित रकम सरकार की तरफ से मिल जाएगी. यूनिवर्सल बेसिक इनकम किस तरीके से लागू होगी, कितनी राशि दी जाएगी, कितने लोगों इसके दायरे में आएंगे, इनकी कैटगरी क्या होगी, क्या इसका आधार सामाजिक और आर्थिक होगा, यह अभी स्पष्ट नहीं है. सरकार हर मंत्रालयों से राय ले रही है. हाल ही में लोकसभा में बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने यूबीआई का मसला उठाते हुए कहा था कि देश में गरीबी हटाने के लिए 10 करोड़ गरीब परिवारों के खाते में 3,000 रुपये डाले जाने चाहिए. विश्व के कई देशों ब्राजील, कनाडा, डेनमार्क, फिनलैंड, जर्मनी, आयरलैंड में इस तरह की योजनाएं चल रही हैं.
मध्य प्रदेश में चला था ऐसा पायलट प्रोजेक्ट
सिक्किम ने यूनिवर्सल बेसिक इनकम का प्रस्ताव दिया है. हालांकि अभी तक किसी भी राज्य में ऐसी योजना लागू नहीं हुई है लेकिन मध्य प्रदेश में इससे मिलती जुलती योजना पायलट प्रोजेक्ट के रूप में 2010-16 तक चलाई गई थी जिससे लोगों को काफी फायदा पहुंचा था.
Source : Sunil Mishra