केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम से लगभग 450 किलोमीटर दूर वायनाड संसदीय सीट को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने आसन्न लोकसभा चुनाव में अपना दूसरा ठिकाना बनाया है. परंपरागत अमेठी से इतर वायनाड को चुने जाने के पीछे कांग्रेस आलाकमान की ओर से केरल काडर की मांग को आधार बनाया गया. कहा गया कि इससे केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु में कांग्रेस को फायदा होगा. तर्क यही दिया गया कि इसे तरह उत्तर और दक्षिण को और नजदीक लाया जा सकेगा.
हालांकि वायनाड के चयन के पीछे गणित और रणनीति कांग्रेस के लिए बेहद साफ है. दक्षिण में कांग्रेस को अपने काडर को एक बनाए रखने के लिए सत्ता रूपी टॉनिक चाहिए होता है. 2014 आमचुनाव में कांग्रेस को जो झटका लगा, उससे दक्षिण में भी उसका प्रभाव फीका पड़ा. केरल की ही बात करें तो 2009 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस नीत युनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) ने 20 में से 16 सीटों पर जीत हासिल की थी, लेकिन 2014 में सीबीआई नीत लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) ने कांग्रेस नीत यूडीएफ के गढ़ रहे मालाबार क्षेत्र में कड़ी टक्कर दी. 2016 के विधानसभा चुनाव में तो वाम मोर्चे ने वायनाड की तीन में से दो विधानसभा सीटों पर कब्जा जमा लिया. यूडीएफ के लिए राहत की बात रही मल्लापुरम सीट, जिस पर यूनियन मुस्लिम लीग ने अल्पसंख्यक मतों के एकतरफा झुकाव से कब्जा जमाए रखा.
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अगर आंकड़ों की बात करें तो 2009 में वायनाड से कांग्रेस के ही एमआई शानवास जीते थे. उन्हें तब 49.86 फीसदी मत मिले थे और उन्होंने सीपीआई के एम रहमतुल्लाह को हराया था, जिन्हें 31.23 फीसदी मत मिले. 2014 के आमचुनाव में वायनाड सीट कांग्रेस के ही पास रही, लेकिन जीत का प्रतिशत कम हो गया. शानवास को 2014 में 41.20 फीसदी वोट ही मिले थे, जबकि सीपीआई के उम्मीदवार सथ्यन मोकरी के वोट प्रतिशत में इजाफा हुआ था. उन्हें 38.92 फीसदी मत प्राप्त हुए थे.
यह एक ऐसी चेतावनी थी जिसे समझ कर केरल कांग्रेस के नेता दिल्ली में बैठे हाईकमान से गुहार लगाने लगे. नतीजा यह रहा कि काडर की मांग करार देकर पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटोनी ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए वायनाड सीट का रास्ता साफ कर दिया. कांग्रेस अध्यक्ष मूलतः इस सीट पर अल्पसंख्यक वोटों के आधार पर ही लड़ने आ रहे हैं. सात विधानसभा सीटों कलपेट्टा, मननथावड़े और सुल्तान बथेरी वायनाड से. निलंबुर, एर्नाड और वंडूर मल्लपुरम से. कोझिकोड से तिरुवंबडी विधानसभा क्षेत्र इसमें आते हैं.
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वायनाड में 13 लाख से अधिक मतदाता हैं, जिनमें 49 फीसदी हिंदू है, 28 फीसदी मुस्लिम और 21 फीसदी क्रिश्चयन हैं. यह गणित कांग्रेस के अनुकूल है, जो यहां अल्पसंख्यक कार्ड ही खेलती आई है. अल्पसंख्यकों के 49 फीसदी वोटों के अलावा जनजातीय वोटों की हिस्सेदारी 20 फीसदी के लगभग है. हालांकि दलित और पिछड़ा वर्ग का वोट कांग्रेस और वामदलों में बंटता रहा है.
इसी गणित के आधार पर कांग्रेस यहां से पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी को खड़ा करने को जोखिम ले रही है. जोखिम इसलिए भी कहा जा सकता है कि पिछली बार इस सीट से कांग्रेस को महज 20 हजार से कुछ अधिक वोटों से ही जीत मिली थी. वायनाड से कांग्रेस अध्यक्ष की दावेदारी से राज्य में सत्तारूढ़ एलडीएफ तीखी प्रतिक्रिया दे रहा है. इसकी एक बड़ी वजह यही है कि 2019 आमचुनाव को लेकर तैयार महागठबंधन में वाम मोर्चा भी एक प्रमुख धड़ा है. अब वायनाड से राहुल गांधी के आ जाने से लड़ाई कम से कम केरल में तो सीपीआई बनाम कांग्रेस हो गई है.
Source : News Nation Bureau