कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव के लिए अपना घोषणापत्र जारी कर दिया है, जिसमें कई वादे किए गए हैं. इनमें से एक वादे की सबसे अधिक चर्चा हो रही है, वह है आईपीसी की धारा 124 ए को खत्म करने की. जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में हुए बवाल के चलते यह धारा पिछले कुछ सालों से काफी चर्चाओं में है और कांग्रेस सहित कुछ राजनीतिक दल इसे खत्म करने की बात कर रहे हैं. आइए जानते हैं क्या है धारा 124ए और क्यों मचा है इस पर बवाल?
कांग्रेस ने घोषणापत्र जनआवाज 2019 में कहा है, 'भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए (जो कि देशद्रोह के अपराध को परिभाषित करती है) जिसका दुरुपयोग हुआ और बाद में नए कानून बन जाने से उसकी महत्ता भी समाप्त हो गई है, उसे खत्म किया जाएगा.'
क्या है धारा 124 ए?
भारतीय दंड संहिता (इंडियन पिनल कोड IPC) की धारा 124-ए को ही राजद्रोह का कानून कहा जाता है. अगर कोई व्यक्ति देश की एकता और अखंडता को नुकसान पहुंचाने वाली गतिविधि को सार्वजनिक रूप से अंजाम देता है तो वह 124-ए के अधीन आता है.
साथ ही अगर कोई व्यक्ति सरकार-विरोधी सामग्री लिखता या बोलता है, ऐसी सामग्री का समर्थन करता है, राष्ट्रीय चिन्हों का अपमान करने के साथ संविधान को नीचा दिखाने की कोशिश करता है तो उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 124-ए में राजद्रोह का मामला दर्ज हो सकता है. इन गतिविधियों में लेख लिखना, पोस्टर बनाना, कार्टून बनाना जैसे काम भी शामिल होते हैं.
कितनी हो सकती है सजा?
इस कानून के तहत दोषी पाए जाने पर दोषी को 3 साल से लेकर अधिकतम उम्रकैद की सजा हो सकती है.
क्या है इस कानून का इतिहास?
यह कानून अंग्रेजों के जमाने में बना था और अब तक अस्तित्व में है. 1860 में इस कानून को बनाया गया था और 1870 में इसे आईपीसी में शामिल कर दिया गया. उस वक्त अंग्रेज इस कानून का इस्तेमाल उन भारतीयों के लिए करते थे, जो अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाते थे. आजादी की लड़ाई के दौरान भी देश के कई क्रांतिकारियों और सैनानियों पर यह केस लगाया गया था.
Source : News Nation Bureau