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रूहेलखंड में उम्मीदवारों को लग रहा है 'अपनों' से ही डर, कहीं गणित न पड़ जाए उलटा

संतोष सिंह गंगवार का मुकाबला सपा के भागवत शरण से हैं, जो खुद भी गंगवार हैं. उधर सपा के धर्मेंद्र यादव के लिए कांग्रेस के सलीम शेरवानी बदायूं में मुस्लिम वोटों के लिहाज से वोट कटवा की भूमिका निभा सकते हैं.

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Nihar Saxena
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रूहेलखंड में उम्मीदवारों को लग रहा है 'अपनों' से ही डर, कहीं गणित न पड़ जाए उलटा

संतोष सिंह गंगवार और धर्मेंद्र यादव

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रूहेलखंड क्षेत्र की बरेली और बदायूं सीट पर इस बार गंगवार और मुस्लिम वोट उम्मीदवारों के लिए फांस बन सकते हैं. 23 अप्रैल (Loksabha Elections Third Phase Voting) को वोटिंग के लिए जनता के दरबार में जाने वाली बरेली सीट पर केंद्रीय मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) संतोष सिंह गंगवार (Santosh Singh Gangwar) और बदायूं से धर्मेंद्र यादव (Dharmendra Yadav) के उतरने से इन सीटों की प्रतिष्ठा भी बढ़ गई है. संतोष सिंह गंगवार का मुकाबला सपा के भागवत शरण से हैं, जो खुद भी गंगवार हैं. उधर सपा के धर्मेंद्र यादव के लिए कांग्रेस के सलीम शेरवानी बदायूं में मुस्लिम वोटों के लिहाज से वोट कटवा की भूमिका निभा सकते हैं.

बरेली (Bareilly)सीट पर 17.76 लाख मतदाता हैं, जिसमें से मुस्लिमों की संख्या 5 लाख के आसपास है. दूसरी बड़ी संख्या गंगवार वोटों की है, जो लगभग 4 लाख है. इसके अलावा एक लाख के आसपास वैश्य मतदाता हैं. 3 लाख अनुसूचित जाति, एक लाख लोध और एक लाख वोट मौर्य-शाक्य के हैं. यहां यादवों की संख्या 70 हजार, तो जाट महज 25 हजार ही हैं.

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जातिगत समीकरण 1989 से बीजेपी के संतोष सिंह गंगवार के पक्ष में रहे हैं. हालांकि 2009 में कांग्रेस के प्रवीण सिंह अरोन ने उन्हें पराजित कर सतत जीत का सिलसिला तोड़ा था. इस बार फिर कांग्रेस ने अरोन पर ही दांव आजमाया है, लेकिन संतोष सिंह गंगवार को मुख्य चुनौती सपा के भागवत शरण से मिल रही है, जो महागठबंधन के संयुक्त प्रत्याशी हैं. ऊपर से भागवत शरण संतोष सिंह गंगवार के रिश्तेदार भी हैं.

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बरेली के मुस्लिम मतों का झुकाव भी भागवत शरण की तरफ ही है. ऐसे में दोनों गंगवार रिश्तेदारों के बीच ही यहां सीधा मुकाबला होगा. स्थानीय लोगों में महागठबंधन प्रत्याशी के प्रति रुझान है. हालांकि अरोन के कांग्रेसी होने से कुछ मुस्लिम वोट उधर भी जा सकते हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'मजबूत सरकार बनाम मजबूर सरकार' के नारों के उलट यहां के लोग 'मजबूत विपक्ष' की बात कह महागठबंधन को तरजीह दे रहे हैं. हालांकि भागवत शरण गंगवार वोट काटेंगे, तो इसका सीधा लाभ उन्हें मिलना तय है.

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बरेली में अगर गंगवार वोट निर्णायक भूमिका में हैं, तो बदायूं (BADAUN) सीट पर यादव वोट किसी को भी चुनाव जितवा-हरवा सकते हैं. यादवों की इस सीट पर 4 लाख के आसपास भागदारी है, जिसके बाद 3.5 लाख वोटों के साथ नंबर मुसलमानों का आता है. 2.7 लाख मौर्य.-शाक्य, 2 लाख अनुसूचित जाति, 1.25 लाख ठाकुर और 1.20 लाख वैश्य हैं. एक लाख ब्राह्मण और 60 हजार लोध मतदाताओं के साथ इस सीट पर 18.81 लाख लोग अपना प्रत्याशी चुनने में अपनी भूमिका निभाएंगे.

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सपा ने यहां से उत्तर प्रदेश के भूतपूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश सिंह यादव के चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव को उतारा है, जो 2009 से 'माय' (MY Factor) फैक्टर यानी मुस्लिम-यादव वोट बैंक के सहारे जीतते आ रहे हैं. हालांकि बीजेपी ने यहां से संघमित्रा मौर्य (Sanghmitra Maurya) को टिकट दिया है. संघमित्रा बसपा के दिग्गज नेता रहे स्वामी प्रसाद मौर्य (Swami Prasad Maurya) की बेटी हैं. स्वामी प्रसाद मौर्य ने 2017 विधानसभा चुनाव से पहले बसपा को अलविदा कहकर बीजेपी का दामन थाम लिया था. संघमित्रा की मौर्य-शाक्य मतदाताओं पर पकड़ बताई जा रही है. हालांकि ठीक-ठाक संख्या में यादव वोटों के इस बार बीजेपी के खेमे में जाने की भी चर्चा है. उस पर कांग्रेस के सलीम शेरवानी के उतारने से मुस्लिम मतों में भी बंटवारा तय है, जो कहीं न कहीं से संघमित्रा को ही फायदा पहुंचाएगा.

Source : News Nation Bureau

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