भारत की सबसे मशहूर कवियत्रियों में से एक अमृता प्रीतम (Amrita Pritam) की 100वीं जयंती है. वह अपने समय की मशहूर लेखिकाओं में से एक थीं. अमृता प्रीतम (Amrita Pritam) का जन्म पंजाब के गुजरांवाला जिले में 31 अगस्त 1919 को हुआ था. वही अमृता जिनके प्रेम को सरहदों, जातियों, मजहबों या वक्त के दायरे में नहीं बांधा जा सकता. लोग कविता लिखते हैं और जिंदगी जीते हैं मगर अमृता जिंदगी लिखती थी और कविता जीती थी.
अमृता ने साहिर से प्यार किया और इमरोज ने अमृता से और फिर इन तीनों ने मिलकर इश्क की वह दास्तां लिखी जो अधूरी होती हुई भी पूरी थी. अगर अमृता को साहिर या इमरोज को अमृता मिल गई होती तो मुमकिन था कि इनमें से कोई पूरा जाता लेकिन इस सूरत में इश्क अधूरा रह जाता. अमृता ने लिखा, 'साहिर मेरा खुला आसमान है और इमरोज मेरे घर की छत, यह बात और है कि छत खुलती आसमान में है.
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इस पंक्ति को पढ़ने के साथ समझिएगा भी. इसमें उस इंसान के लिए भी जगह है जिससे अमृता प्यार करती है और उस इंसान के लिए भी जो अमृता से प्यार करता था. इश्क के मायने यही है जो सबको अपना ले वही मोहब्बत है. प्यार की दुनिया में आज भी अमृता प्रीतम का नाम अमर है, उस दुनिया से कभी भी वह रुख़सत ही नहीं हुईं. अमृता बेहद कम उम्र में प्रीतम सिंह के साथ शादी के बंधन में बंधी थी.
अमृता ने अपनी शादीशुदा ज़िंदगी से बाहर निकलने का फैसला किया लेकिन साहिर का साथ भी ज्यादा न चल पाया. ज़िंदगी के आखिरी समय में सच्चा प्यार उन्हें इमरोज़ के रूप में मिला. अमृता प्रीतम के जन्मदिन के मौके पर पढ़ें उनकी बेहतरीन कविताएं.
रोशनी की एक खिड़की
आज सूरज ने कुछ घबरा कर
रोशनी की एक खिड़की खोली
बादल की एक खिड़की बंद की
और अंधेरे की सीढियां उतर गया…
आसमान की भवों पर
जाने क्यों पसीना आ गया
सितारों के बटन खोल कर
उसने चांद का कुर्ता उतार दिया…
मैं दिल के एक कोने में बैठी हूं
तुम्हारी याद इस तरह आयी
जैसे गीली लकड़ी में से
गहरा और काला धूंआ उठता है…
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आत्ममिलन
मेरी सेज हाजिर है
पर जूते और कमीज की तरह
तू अपना बदन भी उतार दे
उधर मूढ़े पर रख दे
कोई खास बात नहीं
बस अपने अपने देश का रिवाज है
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निवाला
जीवन-बाला ने कल रात
सपने का एक निवाला तोड़ा
जाने यह खबर किस तरह
आसमान के कानों तक जा पहुंची
बड़े पंखों ने यह ख़बर सुनी
लंबी चोंचों ने यह ख़बर सुनी
तेज़ ज़बानों ने यह ख़बर सुनी
ऐ मेरे दोस्त! मेरे अजनबी
ऐ मेरे दोस्त! मेरे अजनबी!
एक बार अचानक - तू आया
वक़्त बिल्कुल हैरान
मेरे कमरे में खड़ा रह गया.
सांझ का सूरज अस्त होने को था,
पर न हो सका
और डूबने की क़िस्मत वो भूल-सा गया
ऐश ट्रे
इलहाम के धुएं से लेकर
सिगरेट की राख तक
उम्र की सूरज ढले
माथे की सोच बले
एक फेफड़ा गले
एक वीयतनाम जले
और रोशनी
अंधेरे का बदन ज्यों ज्वर में तपे
और ज्वर की अचेतना में
हर मज़हब बड़राये
हर फ़लसफ़ा लंगड़ाये
हर नज़्म तुतलाये
और कहना-सा चाहे
कि हर सल्तनत
सिक्के की होती है, बारूद की होती है
और हर जन्मपत्री
आदम के जन्म की
एक झूठी गवाही देती है.
Source : न्यूज स्टेट ब्यूरो