98 साल की उम्र में लंबी बीमारी के बाद मरने वाले दिलीप कुमार के बारे में अपने जमाने की शीर्ष अभिनेत्री देविका रानी का मानना था कि एक रोमांटिक हीरो के ऊपर यूसुफ़ खां का नाम ज़्यादा फ़बेगा नहीं. इसलिए यूसुफ खान के लिए नए नाम की तलाश शुरू हुई और युसूफ खान बन गए दिलीप कुमार. अशोक राज ने अपनी किताब में 'हीरो' में लिखा है कि हिंदी के वरिष्ठ साहित्यकार भगवती चरण वर्मा ने उन्हें दिलीप नाम दिया था, जबकि माना जाता है कि कुमार उन्हें उस समय के उभरते सितारे अशोक कुमार से मिला था. फिल्म लेखक बनी रूबेन कहते हैं कि देविका रानी उनके लिए तीन नाम लेकर आई थीं, दिलीप कुमार, वासुदेव और जहांगीर.
खुद चुना था दिलीप कुमार नाम
कहा ये भी जाता है की उस समय बॉम्बे टॉकीज़ में काम करने वाले और बाद में हिंदी के बड़े कवि बने नरेंद्र शर्मा ने उन्हें तीन नाम सुझाए, जहांगीर, वासुदेव और दिलीप कुमार. यूसुफ़ खां ने अपना नया नाम दिलीप कुमार चुना. नाम छुपाने की वजह यह भी थी कि इस नाम की वजह से उनके पुराने ख़्यालों वाले पिता को उनके असली पेशे का पता नहीं चल पाता. फ़िल्में बनाने वालों के बारे में उनके पिता की राय बहुत अच्छी नहीं थी और वो उन सबका नौटंकीवाला कहकर मज़ाक उड़ाते थे.
लंबी-लंबी रिहर्सल भी कीं देविका के कहने पर
दिलीप कुमार ने अपनी आत्मकथा में लिखा है, देविका रानी ने जब मुझे समेत कई एक्टर्स को बॉम्बे टॉकीज में नौकरी दी, तो साथ में इसके लिए भी ताकीद किया कि रिहर्सल करना कितना जरूरी है. उनके मुताबिक एक न्यूनतम लेवल का परफेक्शन हासिल करने के लिए ऐसा करना बेहद जरूरी है. बॉम्बे टाकीज़ में रिहर्सल को लेकर अपनी आदतों के बारे में दिलीप कुमार ने कहा था, ये सीख मेरे साथ शुरुआती वर्षों तक ही नहीं रही. बहुत बाद तक मैं मानसिक तैयारी के साथ ही सेट पर शॉट के लिए जाता था. मैं साधारण से सीन को भी कई टेक में और लगातार रिहर्सल के बाद करने के लिए कुख्यात था.
दिलीप कुमार बनने के बाद देखी हॉलीवुड फिल्में
दिलीप कुमार ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि इस नाम का उन पर गहरा असर हुआ. उन्होंने हॉलीवुड की फिल्मों के बड़े अदाकार जेम्स स्टीवर्ट, पॉल मुनी, इंग्रिड बर्गमैन औऱ क्लार्क गैब्ले की फ़िल्में देखनी शुरू कर दी. दिलीप कुमार ने कई भाषाएं सिखने शुरू कर दी. अशोक कुमार और एस मुखर्जी से वो बांग्ला सीखते, बदले में अशोक कुमार को उर्दू सिखाते. फ़ारसी और उर्दू पर दिलीप कुमार की ज़बरदस्त पकड़ थी. बॉम्बे टाकीज़ के मशहूर प्रोड्यूसर एस मुखर्जी ने उन्हें एक फंक्शन में उर्दू और फ़ारसी में भाषण देने को कहा, दिलीप कुमार ने ज़बरदस्त भाषण दिया.
HIGHLIGHTS
- यूसुफ खां का नाम दिया था बॉम्बे टॉकीज की देविका रानी
- यूसुफ खां चाहते थे कि उनके पिता को न चले मालूम
- फारसी और उर्दू पर गहरी पकड़ थी दिलीप कुमार की
Source : News Nation Bureau