फिल्मों के जरिए बेबाकी से सामाजिक मुद्दों को सुनहरे पर्दे पर उतारने वाले निर्माता-निर्देशक महेश भट्ट ने देश में चल रहे 'मी टू मूवमेंट' पर भी बेबाकी से अपनी राय दी है. उन्होंने कहा है कि यह कुछ ऐसा है, जिससे हम अलग-अलग विचार रखकर नहीं निपट सकते हैं. हमें पूरी जिम्मेदारी व एकजुटता के साथ इसका समर्थन करना चाहिए.
महेश भट्ट 12 अक्टूबर को रिलीज हुई अपनी होम प्रोडक्शन की फिल्म 'जलेबी' के प्रचार के लिए दिल्ली आए थे. उन्होंने बताया कि उनकी फिल्म में दिखाया गया प्यार किस तरह हिंदी फिल्मों में दिखाए जाने वाले पारंपरिक प्यार से अलग है.
महेश से जब पूछा गया कि फिल्म की कहानी अन्य प्रेम कहानियों से कितनी अलग है तो उन्होंने आईएएनएस को बताया, 'हमारी फिल्म प्यार के उतार-चढ़ावों और उसकी बारीकियों से बड़ी हिम्मत से आंख मिलाती है. यह पारंपरिक हिंदी फिल्मों से इतर है. इसके अंत में लिखा आता है 'एंड दे लिव्ड हैपिली एवर आफ्टर'. लेकिन वास्तव में प्यार परियों की कहानी से परे है. इंसानी सोच ने प्यार को शादी की परंपरा से जोड़ दिया, लेकिन प्यार तो कुदरत की देन है.
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उन्होंने कहा, 'आप देखें कि इस देश में राधा-कृष्ण के प्रेम को मंदिरों में बिठाया गया है, जबकि राधा-कृष्ण का प्यार शादी के बंधन तक सीमित नहीं था. हमारी फिल्म एक तरह से इसी तरह के प्यार और दो इंसानों की भावनाओं को पेश करती है.'
महेश कहते हैं, 'फिल्म की सबसे खास बात यह है कि इसने नौजवान पीढ़ी को बहुत सम्मान दिया है. फिल्म के माध्यम से बताया गया है कि यह आज के दौर के जो युवा हैं या दर्शक हैं, वे जिंदगी से जुड़ी इस गहरी बात को समझेंगे.'
'जलेबी' के पोस्टर ने सुर्खियां और विवाद दोनों बटोरे थे. इसमें फिल्म की हीरोइन ट्रेन की खिड़की से चेहरा निकालकर हीरो को 'किस' करती नजर आती है. इसका जिक्र करने पर महेश हंसते हुए कहते हैं, 'यह मार्केटिंग की जरूरत थी कि हम फिल्म की पहली ऐसी तस्वीर जारी करें, जिससे हल्ला मच जाए और देखिए आज आप भी यही सवाल पूछ रही हैं...दरअसल, जब से हमारे संचार के माध्यम बदले हैं और हम शब्दों से तस्वीरों पर आए हैं, तब से अभिव्यक्ति ज्यादा असरदार हो गई है. तस्वीरों का असर ज्यादा होता है..उसका मिजाज कुछ अलग होता है. वास्तव में यह तस्वीर महिलाओं की आजादी को प्रतिबिंबित करती है.'
फिल्म की पृष्ठभूमि पुरानी दिल्ली है. इसके पीछे की वजह पूछे जाने पर महेश ने कहा, 'इसका श्रेय फिल्म के निर्देशक (पुष्पदीप भारद्वाज) को जाता है. इनकी परवरिश पुरानी दिल्ली की जिन गलियों में हुई है, उन्होंने उन्हीं गलियों को पर्दे पर उतारा है. कोई शख्स जब किसी दौर में जिन पलों को जीता है तो जब वह उन्हें पर्दे पर उतारता है तो उसकी अदा कुछ और होती है.
महेश कहते हैं, 'हमने यहां 'जन्नत 2' भी शूट की थी जिसके निर्देशक कुणाल देशमुख थे. वह बहुत काबिल निर्देशक हैं, मगर उन्होंने दिल्ली को पर्दे पर उस तरह से पेश नहीं किया जिस तरह पुष्पद्वीप ने किया है, क्योंकि इन्होंने उसे जिया है, और जब आप किसी चीज को महसूस करके फिल्माते हैं तो उसमें आपकी एक तड़प या महक आ जाती है.'
'मी टू मूवमेंट' के बारे में आलिया भट्ट के पापा ने कहा, 'हमें इस पहल का समर्थन करना चाहिए. यहां हमें अपनी जिम्मेदारी भी निभाने की जरूरत है. हम अलग-अलग राय रखकर इस समस्या का हल नहीं निकाल सकते, हम संवेदना और समझदारी के साथ इसका समाधान तलाशना होगा.'
Source : IANS