हिंदी साहित्य की जानी मानी लेखिका कृष्णा सोबती का 94 साल की उम्र में निधन हो गया है. 18 फरवरी 1924 को पाकिस्तान में कृष्णा सोबती का जन्म हुआ था. उन्होंने अपनी रचनाओं में महिला सशक्तिकरण और स्त्री जीवन की जटिलताओं का जिक्र किया था. वह राजनीति व सामाजिक मुद्दों पर भी अपनी बेबाक राय रखने के लिए भी जानी जाती थीं. कृ्ष्णा सोबती स्त्री की आजादी और न्याय की पक्षधर थी जिसकी झलक उनके उपन्यासों में भी दिखती थी. उनका अंतिम संस्कार शुक्रवार शाम को निगम बोध घाट पर विद्युत शव दाह गृह में होगा.
साल 2017 में कृष्णा को देश का सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार से भी नवाजा गया. उन्हें उनके उपन्यास ‘जिंदगीनामा’ के लिए साल 1980 का साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था. इसके अलावा उन्हें पद्मभूषण, व्यास सम्मान, शलाका सम्मान से भी नवाजा जा चुका है.
कृष्णा सोबती को उनके बेहतरीन उपन्यासों मित्रो मरजानी, दिलोदानिश, ज़िन्दगीनामा,सूरजमुखी अंधेरे के, ऐ लड़की, समय सरगम के लिए जाना जाता है.
फेमस लेखिका कृष्णा सोबती के निधन पर छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल ने शोक जताते हुए लिखा- 'कई पीढ़ियों को अपनी दमदार लेखनी से प्रभावित करने वाली कथाकार कृष्णा सोबती जी का चला जाना गहरा शोक पैदा करता है. उनका लिखा और उनका संघर्ष हमेशा याद किया जाता रहेगा. श्रद्धांजलि.'