क्या आप जानते हैं कि जिस विनोद खन्ना को आप बॉलीवुड इंडस्ट्री का सबसे हैंडसम और वेटरन एक्टर के तौर पर जानते हैं, उन्होंने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत बतौर विलेन की थी. विनोद खन्ना की ज़िंदगी से जुड़े कई ऐसे किस्से हैं, जिसके बारे में शायद ही आपको पता होगा. विनोद ने अपनी ज़िंदगी में कई उतार-चढ़ाव देखें हैं. जैसा कि आज आप देखते हैं कि एक्टर अब न केवल हीरो का किरदार निभा रहे हैं बल्कि बतौर विलेन भी ऑडियंस के सामने खुद को पेश कर रहे हैं. लेकिन विनोद खन्ना के साथ ये स्थिति बिल्कुल उलट थी. उन्होंने पहले तो अपने फिल्मी करियर की शुरुआत बतौर विलेन की और फिर हीरो का किरदार निभाया, जिससे वो फिल्मी दुनिया में छा गए और एक जाना-माना नाम बन गए.
आपको जानकर हैरानी होगी कि विनोद खन्ना बेहद शर्मीले थे. आपके दिमाग में अब ये सवाल आ रहा होगा कि अगर ऐसा था कि विनोद खन्ना शर्मीले थे तो एक शर्माने वाला इंसान फिल्मी दुनिया में कैसे आ सकता है. तो बता दें कि इसके पीछे भी एक किस्सा है. दरअसल, स्कूल के दौरान उन्हें एक टीचर ने जबरदस्ती नाटक में उतार दिया. यहीं से उन्हें एक्टिंग की तरफ रुझान हुआ। बोर्डिंग स्कूल में पढ़ाई के दौरान विनोद खन्ना ने ‘सोलहवां साल’ और ‘मुगल-ए-आज़म’ जैसी फिल्में देखीं और इन फिल्मों ने उन पर गहरा असर किया. फिर क्या था विनोद फिल्मी दुनिया में जाने के लिए बेताब हो गए...लेकिन बॉलीवुड में उनकी कोई जान-पहचान नहीं थी, जो उनके और उनके सपनों के बीच रोड़ा बन रही थी. हालांकि, विनोद ने हार नहीं मानी और अपनी आकर्षक शक्ल के साथ निकल पड़े अपनी मंज़िल पाने.
इसी बीच उनकी मुलाकात होती है निर्माता-निर्देशक सुनील दत्त से, जो उस दौरान अपनी फिल्म 'मन का मीत' के लिए नए चेहरे की तलाश कर रहे थे. और ये मौका मिला विनोद खन्ना को. इस तरह सुनील दत्त ने उन्हें पहला चांस दिया. लेकिन विनोद की मुश्किलें अभी खत्म नहीं बल्कि शुरू हुई थी. जैसे ही विनोद घर पहुंचे और अपने पिता को सुनील दत्त से ऑफर मिलने की बात बताई तो वो खुश होने के बजाय आग-बबूला हो गए. गुस्सा इस कदर की बेटे पर पिस्तौल तान दी. हालांकि, मां ने बीच-बचाव किया. जिसके बाद पिता ने उन्हें इंडस्ट्री में पैर जमाने के लिए दो साल का समय दिया और शर्त रखी कि अगर इंडस्ट्री में सफल नहीं हुए तो बिजनेस में हाथ बंटाना होगा. बता दें कि इस फिल्म में उन्हें बतौर को-एक्टर काम करने का ऑफर मिला था. हालांकि ये फिल्म पर्दे पर सफल नहीं रही, लेकिन विनोद को लोगों ने नोटिस किया और उनकी गाड़ी चल पड़ी. इसके बाद ‘सच्चा झूठा’, ‘आन मिलो सजना’, ‘मेरा गांव मेरा देश’ जैसी फिल्मों में खलनायक की भूमिकाएं निभाने का अवसर मिला.हालांकि उन्हें सफलता गुलजार की फिल्म ‘मेरे अपने’ से मिली.
फिर इतनी फिल्मों में विलेन बनने के बाद एक समय आया जब गुलजार साहब को हैंडसम विनोद खन्ना में एक हीरो नज़र आया. यही वो समय था जब उनके करियर में बड़ा ट्विस्ट आया और फिर फिल्म ‘अचानक’ (1973) में विनोद बतौर हीरो उभरे.
अब बात ट्विस्ट एंड टर्न्स की चल पड़ी है तो विनोद खन्ना के संन्यासी बनने का किस्सा कैसे छूट सकता है. जिन्हें बतौर सेक्सी संन्यासी जाना जाने लगा. ये बात 70-80 के दशक की है, जब विनोद का स्टारडम पीक पर था. इसी दौरान उनकी मां का निधन हुआ था और वे इससे बेहद दुखी थी. ऐसे में वो सब कुछ छोड़-छाड़कर संन्यासी बन गए थे. वो अमेरिका के ओरेगोन स्थित रजनीशपुरम आश्रम चले गए, जहां वो रजनीथ की माला पहने घूमते थे. इसलिए मीडिया ने उन्हें सेक्सी संन्यासी की संज्ञा दे दी थी.
फिर आगे बढ़े सन् 1988 की ओर, जब विनोद खन्ना अपनी दूसरी पत्नी कविता से एक पार्टी में मिले. जहां वो उन्हें देखते ही रह गए. कई दिनों बाद दोनों की मुलाकात एक पार्क में हुई. फिर एक दिन विनोद बैडमिंटन खेल रहे थे और पसीने में लथपथ वहां से सीधे कविता के घर पहुंचे और उन्हें शादी के लिए प्रपोज़ कर दिया. दूसरी तरफ कविता ने भी हामी भर दी.
विनोद ने फिल्म ‘वॉन्टेड’, ‘दबंग’ और ‘दबंग 2’ में सलमान के पिता की भूमिका निभाई थी. आखिरी बार वह साल 2015 में शाहरुख खान की फिल्म ‘दिलवाले’ में दिखे थे.साल 2017 में 27 अप्रैल को कैंसर से उनका निधन हो गया था. उनकी एक आखिरी इच्छा थी जो पूरी नहीं हो सकी. दरअसल, वो पाकिस्तान में स्थित अपना पुस्तैनी घर देखना चाहते थे।
Source : News Nation Bureau