साहित्‍य फेस्‍टिवल 2019: सियासत की जुबान नई पीढ़ी को खराब कर देगी: गुलजार

गीतकार और फिल्मकार गुलजार (Gulzar) का कहना है कि आज की सियासत में जिस तरह की जुबान इस्तेमाल हो रही है, वह सियासत और दोस्ती को तो खराब कर ही रही है, अगली पीढ़ी की जुबान भी खराब कर देगी.

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Sonam Kanojia
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साहित्‍य फेस्‍टिवल 2019: सियासत की जुबान नई पीढ़ी को खराब कर देगी: गुलजार

Jaipur Literature Festival 2019 में गुलजार

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गीतकार और फिल्मकार गुलजार (Gulzar) का कहना है कि आज की सियासत में जिस तरह की जुबान इस्तेमाल हो रही है, वह सियासत और दोस्ती को तो खराब कर ही रही है, अगली पीढ़ी की जुबान भी खराब कर देगी. जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल (Jaipur Literature Festival 2019) के दूसरे दिन फिल्म लेखिका नसरीन मुन्नी कबीर की किताब 'जिया जले-स्टोरीज बिहाइंड द सांग्स' पर नसरीन और संजोय के. राय के साथ चर्चा के दौरान न सिर्फ फिल्मों के गीतों के पीछे की रोचक कहानियां बताई, बल्कि अनुवाद के तरीके और फिल्मी गीत लिखने की प्रक्रिया पर भी चर्चा की.

गुलजार ने कहा कि सियासत करने वालों को यह ध्यान रखना चाहिए कि जो जुबान वो आज बोल रहे हैं, वह नई पीढ़ी तक जाएगी. इसलिए इस पर ध्यान जरूर दें. उन्होंने हिंदी और उर्दू के विवाद पर कहा कि उर्दू हिंदी से अलग नहीं है. इसका सिर्फ लहजा और साउंड ही इसे अलग बनाता है. हम जो बोलते हैं, उसे हिंदुस्तानी नाम दे दीजिए, सब झगड़ा खत्म हो जाएगा.

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फिल्मी गीत और कविता के अंतर के बारे में गुलजार ने कहा कि कविता आपकी अभिव्यक्ति होती है. आपको पता होता है कि आपको क्या कहना है, लेकिन फिल्मी गीत ऐसा नहीं है. इसमें हमें एक सिचुएशन दे दी जाती है, किरदार का ध्यान रखना पड़ता है. उसकी जुबान का ध्यान रखना पड़ता है और फिर धुन के रूप में एक नपा तुला कपड़ा दे दिया जाता है. हम उससे बाहर नहीं जा सकते, लेकिन फिर यह लिखने वाले पर निर्भर करता है कि वह ऊपर की तह के नीचे कितनी और तहें बना सकता है. उन्होंने साफ कहा कि फिल्मी गीत हमेशा सिर्फ धुनों पर लिखे जाते हैं. फिल्मों में कहानियों पर गीत होते हैं, लेकिन हर गीत की भी एक कहानी होती है.

फिल्म 'दिल से' के गीत 'जिया जले' की चर्चा करते हुए गुलजार ने बताया कि इस गीत की रिकॉर्डिंग के लिए लता जी पहली बार मुंबई से बाहर गई और चेन्नई में रिकॉर्डिंग की. वहां भी कुछ सेटिंग्स ऐसी थी, स्टूडियों में लता जी के सामने सिर्फ एक दीवार थी. उन्होंने कहा कि सामने कोई नहीं है तो मैं कैसे गाऊंगी! तो फिर मैं खुद एक कुर्सी लगा कर उनके सामने बैठा और उन्होंने यह गीत गाया.

फिल्म स्लमडॉग मिलेनियर के गीत 'जय हो' के बारे में गुलजार ने कहा कि यह गीत पूरी तरह रहमान के संगीत और सुखविंदर की गायकी का कमाल है. रहमान ने हिन्दी फिल्म संगीत के प्रचलित मुहावरे को पूरी तरह से बदला है.

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नसरीन मुन्नी कबीर ने कहा कि गीतों का अनुवाद हास्यास्पद नहीं होना चाहिए और ऐसा भी नहीं होना चाहिए कि लोग समझ ही न सकें. ऐेसे में शब्दों का चयन बहुत मुश्किल काम होता है. इस किताब के दौरान मुझे इस बारे में गुलजार से बहुत कुछ सीखने को मिला.

वॉट्सएप पर गुलजार के नाम से आनी वाली कविताओं के बारे में गुलजार ने कहा कि इनमें से एक भी मेरी नहीं है. जो लोग ऐसा कर रहे है, उन्हें अपने नाम से लिखने की हिम्मत दिखानी चाहिए. अपनी हरकतों से ही आदमी सिखता है. अपने नाम से लिखने की हिम्म्त रखिए.

Source : News Nation Bureau

Gulzar jaipur literature festival 2019
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