Kareena Kapoor Looks: करीना कपूर खान एक ऐसी एक्ट्रेस हैं जो दशकों से इंडियन फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ी हुई हैं. फिल्म में जगह बनाने के बाद, एक्ट्रेस ने इस साल अपना ओटीटी डेब्यू किया था. सुजॉय घोष की जाने जान से करीना कपूर खान ने फिल्म इंडस्ट्री में दबदबा बनाने के बाद ओटीटी की दुनिया में कदम रखा. हाल ही में एक बातचीत में, उन्होंने बताया कि यह कितना मुश्किल था कि वह यह न सोचें कि वह कैसी दिख रही हैं और केवल अपनी एक्टिंग पर ध्यान दें.
लुक्स पर नहीं एक्टिंग पर फोकस रखती हैं करीना
आपको बता दें कि, 'द फिल्म कंपेनियन एक्टर्स अड्डा 2023' के दौरान, एक्ट्रेस ने एक सीन की शूटिंग के बारे में शेयर किया जिसमें कैमरा उनके चेहरे के बहुत करीब था और लगातार उनके चारों ओर घूम रहा था. जब उनसे पूछा गया कि अच्छा दिखने और सिर्फ अपने अभिनय पर ध्यान देने के घमंड से फ्री होना उनके लिए कितना चुनौती वाला था. इसका जवाब देते हुए, एक्ट्रेस ने कहा कि पिछले दो दशकों में, इंडस्ट्री ने उन्हें लगातार उनके दिखने के तरीके पर ध्यान देने के लिए कहा है. हालाँकि, उन्होंने हमेशा इस फैक्ट से दूर रहने की कोशिश की है. एक्ट्रेस ने शेयर किया, “मैं पहले एक एक्ट्रेस बनना चाहती हूं. मेरी पहली फिल्म से ही यही सिचुएशन रही है,''
एक्ट्रेस ने आगे कहा, “मैं जिस तरह दिखती हूं, उसे लेकर मैं संतुष्ट हूं. मुझे इसकी परवाह नहीं है कि मेरी झुर्रियां दिख रही हैं क्योंकि मैं वैसी ही हूँ. मैं एक एक्ट्रेस हूँ. क्या आप उससे आगे देख सकते हैं? यह मेरे लिए हमेशा एक चुनौती रही है. मैं चाहती थी कि वे इससे आगे देखें,'' उन्होंने कहा कि उनकी फिल्म रिफ्यूजी से ही, यह हमेशा एक एक्ट्रेस के रूप में खुद को साबित करने की चाहत के बारे में रहा है. “इसका स्टार वाला हिस्सा बेहद आकस्मिक था और मैंने उसके लिए फिल्में भी की हैं. लेकिन अब यह उस बारे में नहीं है.''
करीना कपूर खान अपने ओटीटी को लेकर घबराई हुई थीं
नेटफ्लिक्स के द एक्टर्स राउंडटेबल 2023 के दौरान, करीना ने अपने ओटीटी एक्सपीरिएंस को 'नर्वस-रैकिंग' कहा. उन्होंने कहा, "ओटीटी प्लेटफॉर्म पर आना, यह थोड़ा नर्वस-रैकिंग था. मुझे लगता है कि इससे मेरे परफॉर्मेंस करने का तरीका बदल गया. ऐसा लग रहा था मानो मैं पहली बार स्क्रीन पर आ रही हूं. यह वैसा ही था जैसा मैंने 24 साल पहले महसूस किया था.”
वह घबरा गई थीं क्योंकि उनके मुताबिक, टीवी फिल्मों से ज्यादा निजी है. “सिनेमा में बैठकर पॉपकॉर्न चबाने और स्क्रीन वहीं मौजूद रहने के बजाय आप असल में बहुत करीब और पर्सनल हैं. तो, किसी तरह, मुझे ऐसा लगता है कि इससे मेरी सोच थोड़ी बदल गई है.''