70 MM के पर्दे पर जिस सीन को देखकर अक्सर दर्शक रोमांचित होते हैं, उन्हें हकीकत जैसा बनाने में पर्दे के पीछे के लोगों की बड़ी भूमिका होती है. आज हम आपको आवाज के उन्हीं जादूगरों से रूबरू करा रहे हैं, जो कबाड़ से भी कमाल की आवाज निकालते हैं.
सब कुछ कबाड़ जैसे कमरे में होता है
हवा की सरसराहट हो यो घोड़े की हिनहिनाहट या फिर फिल्म पर दिख रही फाइट हो, बारिश का कोई सीन फिल्माना हो. ये सब कबाड़नुमा दिख रहे कमरों में फिल्माए जाते हैं. बाद में इनमें साउंड मिक्सिंग करके सदाबहार बना दिया जाता है. आज हम आपको बालीबुड में फोली साउंड के बारे में बताने जा रहे हैं.
ये हैं दो नाम
मायानगरी में आवाज की दुनिया दुनिया में दो नाम हैं करनैल सिंह और सज्जन चौधरी है. 40 सालों से ये दोनों बॉलीवुड की फिल्मों के हर सीन में आवाज की कारीगरी पैदा करने के लिए जाने जाते हैं. फिल्म शोले का ये सीन तो आपको याद होगा. इस सीन में बसंती गब्बर के गुर्गों से बचने के लिए तांगा लेकर भागती है. लेकिन बहुत कम दर्शकों को पता होगा कि इस सीन में बसंती के तांगे की आवाज इसी स्टूडियो में पैदा की गई थी.
इन्होंने बताया कि ऐसा कुछ बाजीराव में किया गया था. कोई भी फिल्म हो उसमें फोली का जरूरत तो होती ही है. बाजीराव में हमने किया जैसे धानपट्टा का साउंज था, इसे गाने में मिक्स किया. हालांकि ये काफी चैलेंजिंग था. धानपट्टा, तीर की आवाज और पायल की साउंड सब इस कबाड़ से लग रहे कमरे से किया जाता है.
फोली ऑर्टिस्टों की मेहनत का कमाल
फोली ऑर्टिस्टों की मेहनत की बदौलत ही गाने में जान आती है लेकिन दर्शकों को तक यह जानकारी नहीं पहुंच पाती है. वास्तव में हकीकत यह है कि फोली ऑर्टिस्ट के हाथों के जादू से ही यह संभव हो पाता है.
Source : News Nation Bureau