कहते हैं कि तानसेन जैसा गायक कोई दूसरा नहीं हुआ. इसलिए तानसेन के इस दुनिया से रुखसत होने के पांच सदी बाद जब के आसिफ मुगले आजम बनाते हैं तो उन्हें पर्दे पर तानसेन जैसा अलाप चाहिए और इसके लिए वो डे गुलाम अली खान जैसे शास्त्रीय गायक को मुंहमांगी फीस देने को तैयार हो जाते थे, क्योंकि खां साहेब की आवाज तानसेन की याद दिलाती थी. तानसेन का जन्म पंद्रहवीं सदी के अंत में हुआ था. जिस सुर सम्राट का स्वर सुनने वालों को दीवाना बना देता था, वो बचपन में ठीक से बोल नहीं पाते थे तानसेन का बचपन का नाम रामतनु था.
बचपन में पशु पक्षियों की नकल करते थे तानसेन
बचपन में रामतनु पशु पक्षियों की हू-ब-हू आवाजें निकालते थे. एक बार वृंदावन के स्वामी हरिदास ग्वालियर के जंगल से गुजर रहे थे. तभी रामतनु ने चीते जैसी आवाज निकाली. जिससे स्वामी हरिदास के शिष्य डर गए. जब उन्होंने रामतनु को देखातो उसे पकड़ लिया. लेकिन हरिदास रामतनु को लेकर उनके पिता के पास पहुंचे और कहा कि इसे संगीत सिखने के लिए सूफी संत मोहम्मद गौस के पास लेकर जाएं.
राग मल्हार गाकर अकबर की बेटी को जिंदगी बचाया
एक बार मुगल सम्राट अकबर की बेटी बीमार पड़ीदरबारियों ने समझाया. बीमारी से निजात पाने का एक ही उपाय है और वो है दीपक राग. दीपक राग सबके बूते की बात नहीं थी. अकेले तानसेन ही थे. जो दीपक राग गाने में महारत रखते थे. लेकिन मुश्किल ये थी कि दीपक गाने वाला का शरीर भी जलने लगता है. आस पास का माहौल भी तपने लगता है और यही हुआ. तानसेन ने अकबर के दरबार में जब दीपक राग गया.तो उनका शरीर भयंकर तौर पर तपने लगा. लेकिन दरबार में मौजूद उनकी बेटियों ने राग मल्हार गाकर उनकी जिंदगी बचा ली.
तानसेन पर कई फिल्में भी बनाई गई
5 मई 1589 में जब संगीत का ये महान सुल्तान दुनिया से विदा हुआतो आखिरी छांव भी वहीं मिली.जहां उनके गुरु मोहम्मद गौस दफन हुए थे. ग्वालियर में आज भी उनका भव्य मकबरा है. हालांकि उनकी कब्र की पहचान को लेकर सवाल उठते रहे हैं. तानसेन पर कई फिल्में भी बनीं पहली फिल्म 1943 में बनी. जिसमें के एल सहगल ने तानसेन की भूमिका निभाई थी साल 1952 में बैजू बावरा, साल 1958 में तानसेन और साल 1962 में संगीत सम्राट तानसेन इन फिल्मों में तानसेन से जुड़ी कई कहानियां दिखाई गईं.
Source : News Nation Bureau