24 अक्टूबर 2013 को भारतीय संगीत की एक पहचान हम सबको छोड़ कर चली गई थी। वह आवाज जिसने कई अभिनेताओं को पहचान दी और जो लाखों दिल पर राज़ करती थी, वह आवाज थी भारतीय संगीत की पहचान रहे मन्ना डे की। मन्ना डे के निधन से एक युग का अंत हो गया। मन्ना डे को 1971 में पद्मश्री और 2005 में पद्म विभूषण से नवाजा जा चुका है। 2007 में उन्हें प्रतिष्ठित दादा साहब फाल्के पुरस्कार प्रदान किया गया। मन्ना डे ने यूं तो बॉलीवुड में हजारों गाने गाए। लेकिन यहां बताते है कि उनकी कुछ दिलचस्प बातों के साथ साथ उनके कुछ सदाबाहार गानों के बारें में-
मन्ना डे के बचपन के दिनों का एक दिलचस्प वाकया है। उस्ताद बादल खान और मन्ना डे के चाचा एक बार साथ-साथ रियाज कर रहे थे। तभी बादल खान ने मन्ना डे की आवाज सुनी और उनके चाचा से पूछा यह कौन गा रहा है। जब मन्ना डे को बुलाया गया तो उन्होंने अपने उस्ताद से कहा, बस ऐसे ही गा लेता हूं। लेकिन बादल खान ने मन्ना डे की छिपी प्रतिभा को पहचान लिया। इसके बाद वह अपने चाचा से संगीत की शिक्षा लेने लगे।
मन्ना डे को भारतीय संगीत की जानी मानी आवाज़ों में से एक माना जाता था। पचास और साठ के दशक में अगर हिंदी फिल्मों में राग पर आधारित कोई गाना होता, तो उसके लिए संगीतकारों की पहली पसंद मन्ना डे ही होते थे।
मन्ना डे को 1950 में आई फिल्म ‘मशाल’में पहली बार एकल गीत गाने का मौका मिला। गीत के बोल थे ‘ऊपर गगन विशाल’और इसे संगीत से संवारा था सचिन देव वर्मन ने। मन्ना डे ने सभी संगीतकारों के लिये कभी शास्त्रीय, कभी रूमानी, कभी हल्के फुल्के, कभी भजन तो कभी पाश्चात्य धुनों वाले गाने भी गाए।
आमतौर पर पहले माना जाता था कि मन्ना डे केवल शास्त्रीय गीत ही गा सकते हैं, लेकिन बाद में उन्होने ऐ मेरे प्यारे वतन, ओ मेरी जोहरा जबीं, ये रात भीगी-भीगी, ना तो कारवां की तलाश है और ए भाई जरा देख के चलो जैसे गीत गाकर अपने आलोचको का मुंह बंद कर दिया।
मन्ना डे के बारे में प्रसिद्ध संगीतकार अनिल विश्वास ने एक बार कहा था कि मन्ना डे हर वह गीत गा सकते हैं, जो मोहम्मद रफी, किशोर कुमार या मुकेश ने गाये हों, लेकिन इनमें से कोई भी मन्ना डे के हर गीत को नहीं गा सकता है। इसी तरह आवाज की दुनिया के बेताज बादशाह मोहम्मद रफी ने एक बार कहा था, आप लोग मेरे गीत को सुनते हैं लेकिन अगर मुझसे पूछा जाए तो मैं कहूंगा कि मैं मन्ना डे के गीतों को ही सुनता हूं।