बतौर निर्देशक नंदिता दास की यह दूसरी फिल्म है. फिल्म में नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने सआदत हसन मंटो का किरदार निभाया है. फिल्म में वर्ष 1946 से शुरू लेखक के सबसे अधिक उथल-पुथल भरे एवं रचनात्मक दौर को दर्शाया गया है. यह पूछे जाने पर कि कलाकार बार-बार विभाजन पर ही बात क्यों करते हैं, इस पर नंदिता ने कहा, 'आखिर हम इसे भूल क्यों नहीं पाये हैं।. शायद हम इसे इसलिए नहीं भूल पाये हैं क्योंकि हमने इससे कुछ सीखा ही नहीं.'
अभिनेत्री से निर्देशक बनीं नंदिता ने कहा कि वह मंटो की नजर से उथल-पुथल भरे उस इतिहास को देखने में अधिक रूचि रखती हैं. उन्होंने पीटीआई-भाषा को बताया, 'आज सांप्रदायिक हिंसा की वही घटनाएं हो रही हैं. तब जो लोग इससे जूझे थे और आज जो इससे जूझ रहे हैं : वो आम लोग हैं. सिरिल रेडक्लिफ ने एक रेखा खींच दी जो शायद एक गांव से होकर गुजरी और फिर सबकुछ तबाह हो गया.'
और पढ़ें- जब 'मंटो' पर लगा अपनी ही पत्नी से बदसलूकी का आरोप
मंटो की दो बेटियां नुसरत एवं नुजहत हाल में इस फिल्म को देखने के लिये इसके विशेष प्रीमियर पर मुंबई आयी थीं. नंदिता ने कहा कि यह उर्दू लेखक जनवरी 1948 में मुंबई छोड़ पाकिस्तान चला गया. उन्हें राष्ट्रीयता में नहीं बांटा जा सकता है. उन्होंने कहा, 'मंटो एक ऐसे लेखक हैं जो भारत और पाकिस्तान दोनों से संबंधित हैं. उन्हें राष्ट्रीयता में नहीं बांटें.'
नंदिता ने कहा कि वह पड़ोसी देश में भी फिल्म को रिलीज होते देखना चाहती हैं.
Source : News Nation Bureau