पूरी दुनिया में आज सुरों के जादूगर मोहम्मद रफ़ी की गायिकी के शौकीन उनका 93वां जन्मदिन मना रहे हैं।
मोहम्मद रफी अपनी सुरीली और रोमांटिक आवाज़ की वजह से अब तक लोगों के दिल पर राज कर रहे हैं, या यूं कहें कि आगे भी करेंगे।
रफ़ी अपने समय के सभी सुपर स्टार्स जैसे कि दिलीप कुमार, भारत भूषण, देवानंद, शम्मी कपूर, राजेश खन्ना और धर्मेंद्र की आवाज़ बने।
रफ़ी जब छोटे थे, तभी उनका परिवार लाहौर से अमृतसर आ गया था। रफी के बड़े भाई की नाई की दुकान थी। रफी ज्यादा समय वहीं बिताया करते थे।
कहा जाता है कि एक फकीर हर रोज़ उस दुकान से होकर गुजरा करते थे। सात साल के रफ़ी रोज़ उनके पीछे लग जाते और फकीर के साथ गुनगुनाते रहते।
रफ़ी के बड़े भाई मोहम्मद हमीद ने जब देखा की उनकी दिलचस्पी गायन में बढ़ती जा रही है तो उन्होंने उस्ताद अब्दुल वाहिद खान से परंपरागत शिक्षा प्राप्त करने की सलाह दी।
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रफ़ी के पहली बार सार्वजनिक मंच पर गाना गाने का क़िस्सा भी बड़ा मज़ेदार है। एक बार प्रख्यात गायक केएल सहगल (कुंदन लाल सहगल) आकाशवाणी (ऑल इंडिया रेडियो लाहौर) के लिए खुले मंच पर गीत गाने आए, लेकिन बिजली गुल हो जाने की वजह से सहगल ने गाने से मना कर दिया।
ऐसे में जब दर्शकों का गुस्सा भड़कने लगा तो उसे शांत कराने के लिए रफी के भाई ने आयोजकों से अनुरोध किया कि वो रफी को स्टेज पर जाने दें। इस तरह महज़ 13 साल की उम्र में रफी ने पहली बार सार्वजनिक मंच पर प्रस्तुति दी।
'चौदहवीं का चांद' (1960) के शीर्षक गीत के लिए रफ़ी को पहली बार फिल्म फेयर पुरस्कार मिला।
1961 में रफी को दूसरा फिल्मफेयर पुरस्कार फिल्म 'ससुराल' के गीत 'तेरी प्यारी-प्यारी सूरत' के लिए मिला।
संगीतकार लक्ष्मीकांत ने फिल्मी दुनिया में अपना आगाज ही रफ़ी की मधुर आवाज के साथ किया।
लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के धुनों से सजी फिल्म 'दोस्ती' (1965) के गीत 'चाहूंगा मैं तुझे सांझ सवेरे' के लिए उन्हें तीसरा फिल्मफेयर पुरस्कार मिला। उन्हें 1965 में पद्मश्री पुरस्कार से भी नवाजा गया।
1966 की फिल्म 'सूरज' के गीत 'बहारों फूल बरसाओं' के लिए उन्हें चौथा पुरस्कार मिला।
1968 में 'ब्रह्मचारी' फिल्म के गीत 'दिल के झरोखे में तुझको बिठाकर' के लिए उन्हें पाचवां फिल्मफेयर पुरस्कार मिला।
वहीं 1977 की फिल्म 'हम किसी से कम नहीं' के गाने 'क्या हुआ तेरा वादा' के लिए गायक को छठा पुरस्कार मिला।
एक बार लता मंगेशकर के साथ रॉयल्टी को लेकर रफी का विवाद हो गया था। रफी कहते थे कि गाना गाकर मेहनताना लेने के बाद रॉयल्टी लेने का सवाल ही नहीं उठता, वहीं लता कहती थीं कि गाने से होने वाली आमदानी का हिस्सा गायक-गायिकाओं को जरूर मिलना चहिए।
इसे लेकर रफ़ी और लता के बीच मनमुटाव हो गया। दोनों ने साथ गाना बंद कर दिया। बाद में नरगिस के कहने पर फिल्म 'ज्वेल थीफ' के गाने 'दिल पुकारे आ रे आ रे आ रे' को दोनों ने साथ गाया।
31 जुलाई, 1980 को उन्होंने अपना गाना रिकॉर्ड कराने के बाद लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल से कहा, 'नाउ आई विल लीव'। जिसके बाद शाम 7.30 बजे उन्हें अचानक दिल का दौरा पड़ा और वो हमेशा के लिए हम सबको छोड़कर चले गए।
Source : News Nation Bureau