27 जनवरी के इस कार्यक्रम के बाद में नेहरू ने लता मंगेशकर को अपने निवास दिल्ली स्थित तीन मूर्ति भवन पर चाय के लिए बुलाया. इस मौके को याद कर लता ने कहा था, "बाकी लोग पंडित जी से बड़ी उत्सुकता से बातें कर रहे थे, मैं एक अकेले एक कोने में खड़ी थी, अपनी मौजूदगी का एहसास कराने में मुझे संकोच हो रहा था. अचानक मैंने पंडित जी को कहते हुए सुना- लता कहां हैं? मैं जहां खड़ी थी वहीं रही. तभी मिसेज इंदिरा गांधी आईं, उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा और कहा, मैं चाहती हूं कि आप अपने दो नन्हें फैंस से मिलें.. उन्होंने मेरी भेंट छोटे-छोटे बच्चों राजीव और संजय गांधी से कराई. उन्होंने मुझे नमस्ते किया और भाग गए."
मेरी बहन की शादी थी और मैं नेहरू जी के घर
लता ने आगे बताया कि तभी पंडित जी ने फिर से मेरे बारे में पूछा. महबूब खान साहब आए और मुझे पंडित जी के पास ले गए. पंडित जी ने मुझसे पूछा-"क्या तुम बंबई जाकर फिर से ऐ मेरे वतन के लोगों गा रही हो..." मैंने उत्तर दिया, "नहीं, यह एक ही बार की बात थी." वे मेरे साथ एक तस्वीर खिंचवाना चाहते थे. हमने यादगार के तौर पर एक फोटो खिंचवाई. इसके बाद में चुपचाप वहां से निकल गई. लता ने कहा था कि मुझे वहां से जल्दी में निकलना पड़ा क्योंकि उसी दिन कोल्हापुर में मेरी बहन मीना की शादी हो रही थी. अगले दिन जब मैं अपनी दोस्त नलिनी के साथ मुंबई लौटी तो मुझे अंदाजा नहीं था कि ये गीत (ऐ मेरे वतन के लोगों...) पहले ही धूम मचा चुका था. जब हम मुंबई पहुंचे, तो पूरे शहर और मीडिया में, इस गीत ने दिल्ली में जो असर छोड़ा था, कैसे पंडित जी की आंखें भर आई थी, की चर्चा थी.
इंदिरा गांधी ने लता जी के लिए धीमा करवा दिया था काफिला
देश की आयरन लैडी कही जाने वालीं पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपना काफिला सिर्फ लता दीदी की अपील कर धीमा करवा दिया था। एक दिन जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का काफिला लताजी के घर के सामने निकला तो मैंने देखा कि दीदी कैमरा लेकर बालकनी की ओर दौड़ी और जल्दबाजी में फोटो लेने लगी। तभी किसी ने इंदिरा जी को इशारे से कहा कि लता आपकी फोटो खिंचना चाहती हैं। इस दौरान इंदिरा गांधी ने अपने काफिले की रफ्तार धीमी कर दीदी का अभिवादन किया।
Source : News Nation Bureau