मुंबई: एक समय था जब साउथ की फिल्मों को हिट की गारंटी माना जाता था. हमारे पास ऐसे तमाम उदाहरण हैं जब रीमेक को खूब पसंद किया. दर्शकों और क्रिटिक्स का प्यार मिला और बॉक्स ऑफिस पर चांदी रही. चाची 420 (1997), हेरा फेरी (2000), रहना है तेरे दिल में (2001), गजनी (2008), वांटेड (2009), सिंघम, दृश्यम, कबीर सिंह...ऐसी की फिल्में आई हैं जिन्हें काफी पसंद किया गया. यही वजह है कि फिल्म मेकर्स इस रीमेक के फॉर्मुले को बार-बार अपनाने लगे. लेकिन अब इसका असर खत्म होता जा रहा है. शहजादा और सेल्फी इसका ताजा उदाहरण हैं. इन दोनों फिल्मों का फ्लॉप होना बताता है कि कहानी पकड़ लेना ही काफी नहीं है. उसकी ट्रीटमेंट भी उसी तरह की दमदार होनी चाहिए. अगर इतना भी ना मिले तो कोई रीमेक देखने के लिए भला क्यों जाएगा.
एक्सपर्ट्स कहते हैं कि साउथ की फिल्में अपने अलग सब्जेक्ट की वजह से दर्शकों को पसंद आ रही हैं. पहले ये फिल्में हिंदी में रिलीज नहीं होती थीं लेकिन अब पैन इंडिया अप्रोच के साथ आ रही फिल्म हिंदी में रिलीज की जाती हैं. अब आप हालिया रिलीज RRR को ही लीजिए. ये फिल्म हिंदी में आई थी और थिएटर्स में दर्शकों की भीड़ लग गई थी. उससे पहले बाहुबली सीरीज भी हिंदी में आई. अब अगर ये फिल्में हिंदी में रीमेक होने लगे तो सोचिए कि क्या हाल होगा. स्टार कास्ट फाइनल हो भी जाए लेकिन स्क्रीन पर दोबारा एक सा इफेक्ट दिखाना और दर्शकों को कन्विंस करना इतना आसान नहीं होगा.
OTT भी है बड़ी वजह
ऑनलाइन प्लैटफॉर्म दर्शकों के लिए बहुत सारा कंटेंट अवेलेबल करवाता है. इसकी वजह से दर्शक ओरिजनल और रीमेक में कंपैरिजन भी कर पाते हैं. इस वजह से भी लोग कई बार रीमेक्स को नकार देते हैं. शाहिद कपूर की फिल्म जर्सी के साथ ऐसा ही हुआ था. असली 'जर्सी' साउथ के पॉपुलर एक्टर नानी की थी. इसके बाद जब शाहिद जर्सी लेकर आए तो फिल्म को उतनी कामयाबी नहीं मिली.
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साल की शुरुआत तो रीमेक के मामले में मंदी साबित हुई देखना होगा कि आगे किस तरह की परफॉर्मेंस रहती हैं. अजय देवगन की भोला और आदित्य रॉय कपूर की गुमराह के साथ-साथ इस साल साउथ की कई रीमेक रिलीज होने वाली हैं.