सुशांत सिंह राजपूत केस में (Sushant Singh Rajput case) में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. रिया चक्रवर्ती ( Rhea Chakraborty) की ओर से कोर्ट में वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने पैरवी की तो वहीं बिहार सरकार का पक्ष वरिष्ठ वकील मनिंदर सिंह ने अपना पक्ष रखा. सुशांत के पिता की ओर से वरिष्ठ वकील विकास सिंह और महाराष्ट्र सरकार की ओर से अभिषेक मनु सिंघवी ने अपना-अपना पक्ष रखा है. इस वक्त देश की निगाहें कोर्ट के आदेश पर टिकी हैं. हालांकि, सुशांत सिंह केस में रिया चक्रवर्ती ने पटना में दर्ज मुकदमे को मुंबई ट्रांसफर करने मांग की है. रिया चक्रवर्ती की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है. साथ ही कोर्ट ने सभी पक्षों को गुरुवार तक अपनी दलीलों पर संक्षिप्त नोट जमा करवाने को कहा है.
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सुप्रीम कोर्ट में रिया की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने पटना में दर्ज एफआईआर पर सवाल उठाया. उन्होंने कहा कि बिहार का क्षेत्राधिकार नहीं है. 38 दिन के बाद FIR दर्ज करने का कोई औचित्य नहीं है. एफआईआर दर्ज होने के पीछे राजनैतिक वजह है. उन्होंने आगे कहा कि महाराष्ट्र सरकार के हलफनामे से साफ है कि वहां जांच सही तरीक़े से हो रही है. मुंबई पुलिस ही जांच का क्षेत्राधिकार बनता है. बिहार में पूर्वाग्रह से FIR दर्ज की गई थी.
वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने आगे कहा कि बिहार पुलिस ने एक ऐसे मामले के लिए FIR दर्ज की, जिसका पटना से कोई कनेक्शन ही नहीं है. इस दौरान उन्होंने कोर्ट में सोमवार को रिया की ओर से जमा कराए हलफनामे को पढ़ा. रिया की ओर श्याम दीवान ने कहा कि रिया सुशांत से मोहब्बत करती थी, लेकिन अब उसे ही इस मामले में पीड़ित किया जा रहा है, बेवजह ट्रोल किया जा रहा है.
सुप्रीम कोर्ट में वकील श्याम दीवान सुशांत के पिता की ओर से दर्ज शिकायत और महाराष्ट्र पुलिस की ओर से हलफनामे के जरिये ये साबित कर रहे हैं कि जो कुछ भी आरोप हैं, उन सब घटनाओं का संबंध मुंबई से है न कि पटना से. वकील दीवान ने कहा कि नियम यही कहता है कि अगर किसी ऐसे मामले के लिए कहीं पर FIR दर्ज होती है, जिसका संबंध उस इलाके से नहीं है तो वहां की पुलिस जीरो FIR दर्ज कर मामला घटनास्थल की जगह वाली पुलिस को ट्रांसफर कर देती है.
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वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने कहा कि मुंबई पुलिस की जांच प्रगति पर है. 56 लोगों के बयान दर्ज हो चुके हैं. मुंबई पुलिस ने सभी एंगल से जांच कर रही है. जांच रिपोर्ट कोर्ट में पेश भी की है. वकील अब इस पर भी सवाल उठा रहे हैं कि जब रिया की याचिका SC में पेंडिंग थी तो कैसे CBI जांच का आदेश दिया जा सकता है. उन्होंने कहा कि पहले पटना पुलिस की FIR, फिर DSPE एक्ट के तहत सीबीआई को जांच का ट्रांसफर, सेक्शन 406 के तहत मेरी अर्जी को धता नहीं बता सकता.
उन्होंने कोर्ट में कहा कि FIR के पीछे सीधे-सीधे राजनीतिक दबाव है. पटना पुलिस पहले FIR दर्ज़ नहीं कर रही थी पर नीतीश कुमार और संजय झा जैसे नेताजी ने FIR के लिए दबाव डाला है. कोर्ट गौर करे इन सब बातों पर कि कैसे FIR के पीछे राजनीति है. इतने दिन बाद FIR दर्ज होती है और सबसे बड़ी बात किसी घटना का ताल्लुक बिहार से है ही नहीं.
उन्होंने कहा कि रिया सुशांत की प्रेमी थीं. वो दोनों एक अरसे तक साथ रहे. उस लड़की का अधिकार है कि उसके साथ कोई ज़्यादती ना हो. रिया खुद परेशान थी. उसने ट्वीट कर निष्पक्ष जांच की मांग की. लोगों ने उसे ही ट्रोल किया और धमकियां दीं. इस मामले में मीडिया ट्रायल भी चल रहा है. गवाहों और मामले से जुड़े लोगों पर लगातार दबाव बनाया जा रहा है.
सुप्रीम कोर्ट में बिहार सरकार की ओर से अपना पक्ष रखते हुए वरिष्ठ वकील मनिंदर सिंह ने कहा कि जो भी बिहार पुलिस ने किया, एकदम कानून सम्मत किया. इसमें कोई खामी नहीं है. महाराष्ट्र की ओर वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने टोका और कहा- हमारा भी सवाल इस मामले में बिहार पुलिस की जांच के अधिकार को लेकर है.
सवाल- कोर्ट का रिया के वकील से- आप CBI जांच चाहते हैं?
जवाब- रिया के वकील ने कहा कि हम स्वतंत्र जांच चाहते हैं. जिस तरीक़े से बिहार ने CBI जांच की सिफारिश की, वो ग़लत है. पहले मामला महाराष्ट्र पुलिस को सौंपा जाना चाहिए. अगर महाराष्ट्र सरकार आगे सीबीआई जांच की सिफारिश करे तो बेशक CBI जांच हो.
सवाल- जस्टिस राय ने कहा- तो हम ये माने कि आपको एतराज उस तरीके से है, जिसके जरिये जांच सीबीआई को सौंपी गई. मीडिया में जैसी रिपोर्टिंग हो रही है, आप ख़ुद को पीड़ित महसूस कर रहे हैं. वैसे आप भी निष्पक्ष जांच ही चाहते हैं.
जवाब- श्याम दीवान ने कहा- जी बिल्कुल. हम यही कहना चाह रहे हैं
सुशांत के पिता की ओर से वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने कहा कि 56 लोगों को महाराष्ट्र पुलिस पूछताछ कर चुकी है. 25 जून को सुशांत की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ चुकी है. आज तक इन्होंने FIR दर्ज नहीं की. CRPC तो यही कहती है कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद यह तो आप 174 के तहत केस बंद कर दे या फिर FIR दर्ज करे. मेरा सवाल ये है कि 56 में से कितने लोगों से इन्होंने 25 जून के बाद पूछताछ की है.
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बिहार सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील मनिंदर सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में दलील रखते हुए कहा कि इस मामले में इकलौती एफआईआर पटना पुलिस ने दर्ज की है. ऐसा लगता है कि मुंबई पुलिस पर मामले को कवर अप करने के लिए दबाव है. जांच के लिए जब बिहार की टीम मुंबई गई तो पुलिस टीम को जबरन क्वारंटीन कर दिया गया. कहा तो ये भी जा रहा है कि महाराष्ट्र में एक राजनीतिक वर्ग है, जो नहीं चाहता कि FIR दर्ज हो. CRPC-178 कहती है कि जांच के स्टेज पर आप क्षेत्राधिकार का मसला नहीं उठा सकते हैं.
वरिष्ठ वकील मनिंदर सिंह ने आगे कहा कि अभी ये ट्रांसफर याचिका सुनी ही नहीं जानी चाहिए. शुरुआती जांच के स्टेज पर कैसे आप क्षेत्राधिकार का मसला उठा सकते हैं. ट्रांसफर अर्जी पर सुनवाई तब हो जब जांच पूरी हो जाए या रिपोर्ट पेश हो जाए. अगर कोई संज्ञेय अपराध किसी के नोटिस में आता है तो जांच अधिकारी की ये जिम्मेदारी है कि वो जांच पूरी करे.
वकील मनिंदर सिंह ने कहा कि अगर सुशांत के खाते से 15 करोड़ रुपये गायब हुए हैं तो सुशांत के पिता को पटना में रिपोर्ट दर्ज करवानी चाहिए थी. मुंबई पुलिस सिर्फ मीडिया को दिखाने के लिए जांच का दिखावा कर रही है. हकीकत में कोई जांच नहीं हो रही है. सही मायनों में 25 जून के बाद कानूनन मुंबई में कोई जांच लंबित नहीं है.
महाराष्ट्र सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने बिहार पुलिस की जांच के क्षेत्राधिकार पर सवाल उठाया. उन्होंने कहा कि हैरान हूं कि एक ट्रांसफर पिटीशन को इतना टाइम दिया जा रहा है. हर कोई जज बन गया है- टीवी एंकर से लेकर एक्सपर्ट तक. लोग टीवी पर बैठकर ज्ञान दे रहे हैं कि कैसे कोर्ट हमारे एफिडेविट को नहीं स्वीकारेगा.
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सिंघवी ने कहा कि बिहार पुलिस चाहती है कि क्षेत्राधिकार का मसला ही नहीं उठे. उसे जांच करनी दी जाए. आखिर इतनी तत्परता क्यों. अगर इसे कायम रहने दिया जाए तो परिणाम गम्भीर होंगे. मान लीजिए कल कोई मुंबई में हिट रन केस हो जाए. अगर पीड़ित और आरोपी दोनों ये कहने लगे कि हमें मुंबई पुलिस पंसद नहीं है. जांच केरल या कोई राज्य की पुलिस करे, तब क्या होगा.
सिंघवी ने आगे कहा कि महाराष्ट्र में इस केस को लेकर एक भी शिकायत नहीं है. सबको मालूम है कि बिहार ऐसा क्यों कर रहा है. चुनाव जो होने वाले है. चुनाव के बाद कोई नहीं पूछने वाला है. SC चाहे तो FIR को एक राज्य से दूसरे राज्य या एजेंसी को ट्रांसफर कर सकता है, लेकिन इस मामले में जो हो रहा है, वो गैरकानूनी है. घटना जहां पर हुई है उस राज्य की सहमति सीबीआई जांच के लिए जरूरी है. अपवाद यह है कि हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट अपनी ओर से भी सीबीआई जांच का आदेश दे सकता है, लेकिन ऐसा बेहद रेयर केस में होना चाहिए. सवाल ये भी है कि क्या एक सिंगल जज की बेंच सीबीआई को जांच ट्रांसफर करने का आदेश दे सकती है.
बिहार सरकार की ओर से रखी गई दलीलों के विरोध में सिंघवी ने कहा कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट फाइल करने का यह मतलब नहीं है कि जांच बंद हो गई. यहां सवाल देश के संघीय ढांचे और जांच के क्षेत्राधिकार का है.
सुशांत के पिता की ओर से वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने कहा कि मैं मीडिया रिपोर्ट्स पर नहीं जाना चाहता, लेकिन यह भी सच है कि इन रिपोर्ट्स में महाराष्ट्र के सीएम के बेटे पर सवाल उठ रहे हैं. दूसरा पक्ष मीडिया रिपोर्ट के आधार पर दलील दी रहा है, लेकिन मैं ऐसा नहीं करूंगा. मीडिया भले ही सीएम के बेटे को लेकर सवाल उठा रहा हो, लेकिन मुझे इस पर कुछ नहीं कहना है.
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विकास सिंह ने सुप्रीम कोर्ट के कुछ पुराने फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि दरअसल जांच अधिकारी का दायित्व जांच को पूरा करना है बजाये इसके कि वह क्षेत्राधिकार के पेंच में फंसे. सुशांत के पिता और उनकी बहन अलग-थलग पड़ गए थे. सुशांत के पिता उससे बात करना चाहते थे, लेकिन रिया ने उसे परिवार से दूर कर दिया था. सुशांत के गले का निशान देखिए, वो रस्सी का निशान नहीं बल्कि बेल्ट का निशान है. अगर सुशांत का मर्डर हुआ है तो निश्चित तौर पर जांच की जरूरत है. विकास सिंह ने आगे कहा कि कृपया कोर्ट ये सुनिश्चित करें कि जब सीबीआई की टीम जांच के लिए मुंबई जाए तो उसे विनय तिवारी की तरह क्वारंटाइन न रहना पड़े.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट में महाराष्ट्र पुलिस इस बात को मान चुकी है कि ये आत्महत्या का केस है और दूसरी बात की है कि अभी तक इस मामले में कोई FIR उनकी तरफ से दर्ज नहीं हुई है. सीबीआई, बिहार सरकार की सिफारिश पर जांच का जिम्मा पहली ले चुकी है. महाराष्ट्र सरकार ने अभी तक जो कुछ भी किया है वह बिना FIR के किया है. मजिस्ट्रेट के सामने सुशांत की मौत को लेकर कोई रिपोर्ट पेश नहीं गई है. सुशांत के शरीर पर घाव या फैक्चर को लेकर कोई बेसिक रिपोर्ट तो मजिस्ट्रेट के सामने पेश की जानी चाहिए थी.
तुषार मेहता ने आगे कहा कि सुशांत की मौत को लेकर अभी कोई केस महाराष्ट्र में पेंडिंग नहीं है. क्या महाराष्ट्र पुलिस ने जांच के नाम पर कुछ लोगों को बचाने की कोशिश की. मैं अपनी तरफ से इस पर कुछ नहीं कहूंगा, लेकिन ये सही है कि महाराष्ट्र पुलिस का जो रवैया रहा है वह कानूनसम्मत नहीं है आखिर मामले में एफआइआर दर्ज क्यों नहीं की गई?.
तुषार मेहता ने कहा कि CRPC 174 के तहत शुरू दुर्घटना में मौत की जांच बहुत कम समय तक चलती है. बॉडी देखकर और स्पॉट पर जाकर देखा जाता है कि मौत की वजह संदिग्ध है या नहीं. फिर FIR दर्ज होती है. कैसे राज्य पुलिस ने बिना कोई FIR दर्ज किए 56 लोगों से पूछताछ कर ली. उन्होंने आगे कहा कि महाराष्ट्र पुलिस द्वारा 56 लोगों की बयान रिकॉर्ड करने का कोई मतलब नहीं रह जाता, क्योंकि महाराष्ट्र पुलिस ने तय कानूनी प्रक्रिया का पालन ही नहीं किया.
तुषार मेहता ने महाराष्ट्र पुलिस की ओर से सीलबंद कवर में डॉक्यूमेंट पेश करने पर भी कटाक्ष किया. उन्होंने कहा कि मैं दोहरा रवैया नहीं रखूंगा. मुझे कोई एतराज नहीं अगर सीलबंद कवर में डॉक्यूमेंट पेश किए जाते हैं, लेकिन सिंघवी हमेशा हमारी ओर से डॉक्यूमेंट सीलबंद कवर में दिए जाने पर ऐतराज जाहिर करते रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों की बात सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है. अब अगली सुनवाई 13 अगस्त को होगी.
Source : News Nation Bureau