मंटो एक लेखक जो कोई भी बात कहने में लिहाज नहीं करते थे। मंटो एक लेखक जो शराफत के दायरे से बाहर होकर लिखते थे। मंटो एक लेखक जो सभ्य-समाज की बुनियाद में छिपी घिनौनी सच्चाई को बयां करते थे। मंटो एक लेखक जो वेश्याओं की संवेदनाओं को उकेरने का काम करते थे और उनकी यही हिमाकत समाज को नागवार गुजरी और उसने मंटो की कहानियों के महिला पात्रों को अश्लील करार दिया। मंटो को अश्लील लेखक, 'पोर्नोग्राफर' क्या-क्या नहीं कहा लेकिन मंटो समाज के इस सच्चाइ से कहां मुंह मोड़ने वाले थे । उन्होंने लिखा और बस लिखा। कई साल लग गए लोगों को यह समझने में की मंटो का पात्र अश्लील नहीं हैं बल्कि अश्लीलता और निर्ममता तो समाज में है जिसे मंटो दिखाता है।
मंटो कहते हैं कि वैश्या का मकान अपने आप में जनाजा है जिसे समाज अपने कंधों पर लेकर चल रहा है। इस तरह से बेबाक लिखने वाले अफसानानिगार का जन्म 11 मई 1912 को पुश्तैनी बैरिस्टरों के परिवार में हुआ था। उनके पिता ग़ुलाम हसन नामी बैरिस्टर और सेशन जज थे। उनकी माता का नाम सरदार बेगम था, और मंटो उन्हें बीबीजान कहते थे।
और पढ़ें- रवींद्रनाथ टैगोर जयंती: जानें महान साहित्यकार के जीवन के कुछ अनछुए पहलुओं को
मंटो ने अपने 19 साल के साहित्यिक जीवन में 230 कहानियां, 67 रेडियो नाटक, 22 शब्द चित्र और 70 लेख लिखे। मंटो ने कई फिल्मों के स्क्रिप्ट भी लिखे। 'कीचड़' 'अपनी नगरिया' 'बेगम' 'नौकर' 'चल-चल रे नौजवान' 'मुझे पापी कहो' और 'मिर्ज़ा ग़ालिब' जैसी फिल्में कुछ उदाहरण है।
'मिर्ज़ा ग़ालिब' फिल्म बनती इससे पहले ही मंटो ने पाकिस्तान जाने का फैसला कर लिया। पाकिस्तान में मंटो ने अपनी जिंदगी की सबसे बेहतरीन कहानियां लिखी। एक मात्र दैनिक अखबार जो मंटो की रचनाओं को लगातार छापता था उसका नाम 'दैनिक अफाक़' था। इस अखबार के लिए मंटो ने कई रेखाचित्र लिखे। बाद में सभी रेखाचित्रों को 'गंजे फ़रिश्ते' नामक किताब में पेश किया गया। रेखाचित्रों में अशोक कुमार, नरगिस, नूर जहां, नसीम (शायरा बानो की मां) आदि प्रख्यात व्यक्तित्व प्रमुख थे।
मंटो ने भारत क्यों छोड़ा। क्या इसके पीछे बॉम्बे टॉकीज स्टूडियो में भेजे गए वह गुमनाम खत थे जिसमें लिखा गया था कि मुसलमानों को अगर वहां काम दिया गया तो वह स्टूडियो जला देंगे या फिर मंटो के हिन्दुस्तान छोड़ने का कारण उनकी बेटी की सुरक्षा थी। वह डरे हुए थे कि अगर वह नहीं गए तो उनके परिवार को नुकसान पहंचाया जा सकता है। कारण जो भी हो लेकिन लिबरल मंटो को पाकिस्तान में भी सुकून नहीं मिला। वह हमेशा अपने प्रो इंडिया और एंटी मुस्लिम लीग विचारों के लिए कई समाचार पत्रों और पत्रकारों द्वारा नापसंद किए गए।
सआदत हसन मंटो के बारे में यहां पढ़ें-
कई दिलचस्प पहलू हैं उस शख्स की जिंदगी के जो अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में उर्दू के विषयों में फेल होने के बावजूद एक महान अफसाना निगार बना।मंटो हमेशा कहते थे भाषा का न तो निर्माण किया जा सकता है और न उसे नष्ट किया जा सकता है।
मंटो की ज़िंदगी और उनकी कहानियों पर वैसे तो कई फिल्म और धारावाहिक बने हैं लेकिन 21 सितंबर 2018 को डायरेक्टर नंदिता दास द्वारा निर्देशित मंटो की बायोपिक आ रही है। इस फिल्म का ट्रेलर रिलीज़ हो गया है और इस फिल्म में नवाज़ुद्दीन सिद्दिकी खुद सआदत हसन मंटो के किरदार में नज़र आ रहे हैं। फिल्म में नवाज़ुद्दीन सिद्दिकी के अलावा रसिका दुग्गल, ताहिर भसीन, ऋषि कपूर और जावेद अख्तर भी अहम भूमिका में नजर आएंगे। इसके अलावा फिल्म में दिव्या दत्ता, परेश रावल, चंदन राय सान्याल और राजश्री देशपांडे भी है।
और पढ़ें- साहित्य के कैनवास पर भूख से विवश होरी और बुज़ुर्गों के लिए फ़िक्रमंद हामिद की तस्वीर बनाते प्रेमचंद
इस फिल्म को लेकर लोगों में काफी उत्सुकता है। 21 सितंबर को नंदिता दास के फिल्म के जरिए लोग मंटो से एक बार फिर मिलेंगे और मंटो के 42 साल की उम्र को करीब से पर्दे पर देंखेंगे और अगर दर्शक इस फिल्म को देखने बाद यह सोचने पर मजबूर हुए कि 'आखिर क्यों मंटो हमे इतनी जल्दी छोड़ कर चले गए, अगर वह जिंदा रहते तो कई और कहानियां लिखते जो अनलिखी रह गई। मंटो के सिवा उसे कोई नहीं लिख सकता' तो दर्शकों की यही सोच इस फिल्म की कामयाबी मानी जाएगी।
Source : Sankalp Thakur