हर किसी के अपनी शादी को लेकर और शादी के बाद वाले जीवन को लेकर लाखों सपने होते हैं. हर कोई अपने जीवनसाथी के साथ शादी करके पूरी जिंदगी प्यार से बिताने का सपना देखता है. लेकिन ये सपने सभी के पूरे हो जाएं, ऐसा जरूरी नहीं क्योंकि दुनिया में कई महिलाओं के जीवनसाथी समय से पहले ही दुनिया को छोड़ देते हैं. जब किसी महिला के पति का निधन हो जाता है, तो उसके हाथ दुख और निराशा लगती है. जो सपने महिला ने शादी से पहले अपनी आने वाली जिंदगी के लिए देखे होते हैं, वो सब टूट जाते हैं. यही नहीं हमारा समाज भी उन्हें सम्मान की नजरों से देखना बंद कर देता है. ऐसी महिलाओं को विधवा कहा जाने लगता है, और उन्हें शुभ काम में शामिल नहीं होने दिया जाता. ऐसे में इस समाज की जिम्मेदारी बनती है कि विधवाओं को भी बाकी लोगों की तरह दर्जा मिले. ऐसे में इन्हीं महिलाओं को सम्मान दिलाने के लिए हर साल 23 जून को अंतरराष्ट्रीय विधवा दिवस मनाया जाता है. आज हम आपको कुछ ऐसी फिल्मों के बारे में बताने जा रहे हैं, जो विधवा के किरदार को लेकर हिट हो गईं...
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बॉलीवुड में शुरू से ही विधवाओं को लेकर फिल्में बनती रहती हैं. आशा पारेख से लेकर रानी मुखर्जी तक विधवा महिला का रोल प्ले कर चुकी हैं. मदर इंडिया हो या प्रेम रोग, बाबुल हो या पगलैट. ये वो फिल्में हैं जिनमें विधवा को लीड रोल में दिखाया गया. इन फिल्मों में विधवा महिलाओं के दर्द और टूटे हुए जीवन को दिखाने की कोशिश की गई है, और दर्शकों ने भी इन फिल्मों का काफी पसंद किया.
मदर इंडिया- साल 1957 में रिलीज हुई मदर इंडिया फिल्म में एक्ट्रेस नरगिस ने एक विधवा महिला का सशक्त रोल प्ले किया था. फिल्म में दिखाया गया था कि कैसे पति के जाने के बाद एक अकेली औरत अपने बच्चों को पालती है और लोगों की गंदी नजरों से तक खुद को बचाती है. फिल्म पूरी नरगिस के आस पास ही घूमती दिखाई थी. इस फिल्म में नरगिस ने एक ऐसी अकेली मजबूत महिला का रोल किया था जो अंत में अपने बेटे तक को मार देती है.
प्रेमरोग- फिल्म में देवधर यानी ऋषि कपूर एक गरीब अनाथ का किरदार निभाते हैं. जिसकी बचपन में अमीर और शक्तिशाली ठाकुर की एकलौती बेटी मनोरमा यानी पद्मिनी कोल्हापुरी के साथ दोस्ती थी. ये दोस्ती कब प्यार में बदल में जाती है देवधर को पता ही नहीं चलता है. और वो अपने दिल की बात मनोरमा से कह भी नहीं पाता है. बड़े राजा ठाकुर यानी शम्मी कपूर मनोरमा की शादी एक अमीर और खानदानी ठाकुर लड़के से करवा देते हैं. लेकिन मनोरमा पर वक्त की मार पड़ती है और उसके पति का देहांत हो जाता है. विधवा मनोरमा की इज्जत उसके पति का बड़ा भाई ही लूट लेता है. ससुराल में इतना बड़ा जख्म मिलने के बाद वो वापस अपने घर लौट आती है. और यहां एक बार फिर से उसकी मुलाकात देवधर से होती है. देवधर को जब उसके दुखों का पता चलता है तो वो उसे वापस एक नई जिंदगी देने की कोशिश करता है. फिल्म उस जमाने में सुपरहिट हुई थी, और मनोरमा के किरदार की काफी तारीफ हुई थी. फिल्म के सारे गाने भी सुपरहिट हुए थे.
कटी पतंग- कटी पतंग में एक विधवा के बारे में दिखाया गया है जो अपनी जिंदगी में कई उतार-चढ़ाव देखती हैं और आखिर में वह हीरो के पास ही जाती है. हालांकि फिल्म की कहानी विधवा पर आधारित नहीं है, लेकिन उनके किरदार के बारे में दर्शाया गया है. माधवी फिल्म में जो विधवा का किरदार निभा रही है वो गाना गाती है कि उसकी जिंदगी कटी पतंग के जैसे है जिसकी ना कोई उमंग है ना तरंग है. लेकिन जैसे ही उसकी लाइफ में हीरो राजेश की एंट्री होती है तो उसकी लाइफ में टर्न आ जाता है और गाना आता है ये शाम मस्तानी. इसमें ऐसा दिखाया गया कि जैसे एक आदमी ही उसकी जिंदगी में खुशी और रंग भर सकता है.
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मृत्युदंड- 1997 में रिलीज हुई मृत्युदंड में शानदार रोल प्ले करके माधुरी दीक्षित ने हर किसी को हैरान कर दिया था. फिल्म माधुरी एक बेबाक, मजबूत महिला के रोल में दिखाई गई थीं. फिल्म में माधुरी एक ऐसी महिला की भूमिका में थी जो अपने और समाज की अन्य महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ती है. इतना ही नहीं पति के निधन के बाद परेशानियों को झेलते हुए वह अपने पति की मौत का बदला भी लेती है. इस पुरुषवादी समाज में एक दमदार महिला का किरदार निभाने के लिए माधुरी दीक्षित को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के स्क्रीन अवॉर्ड से नवाजा गया था.
शोले- पिछली सदी के महानायक अमिताभ बच्चन उस वक्त तक जया भादुड़ी से शादी कर चुके थे और इस वजह से जया भादुड़ी, जया बच्चन बन चुकी थीं. वर्ष 1975 में आई हिंदी सिनेमा की सबसे प्रतिष्ठित फिल्मों में से एक 'शोले' में जया बच्चन ने एक विधवा राधा का किरदार निभाया है. फिल्म का खलनायक गब्बर फिल्म के मुख्य किरदारों में से एक ठाकुर के पूरे परिवार को खत्म कर देता है. उसमें राधा का पति भी शामिल होता है. जया ने ठाकुर परिवार की शांत, सुशील और सहृदया विधवा बहू के किरदार को बहुत शानदार तरीके से निभाया है. गब्बर को पकड़ने के लिए जब ठाकुर जय-वीरू को अपने गांव बुलाता है. तो जय को राधा काफी पसंद आ जाती है. वो उससे शादी करने के सपने सजा लेता है, लेकिन फिल्म के अंत में जय भी मर जाता है और राधा का सपना एक बार फिर से टूट जाता है.
बाबुल- रानी मुखर्जी की फिल्म बाबुल में दिखाया गया है कि कैसे पति के निधन के बाद उसके ससुर अपनी पसंद के लड़के से उसकी दोबारा शादी करवाना चाहते हैं. फिल्म के टाइटल से साफ पता चल रहा है कि फिल्म एक ‘दयालु’ पिता के बारे में अधिक और एक महिला और उसकी आकांक्षाओं के बारे में कम है.
वाटर- 2005 में आई वाटर फिल्म ऐसे तो तमाम तरह के मैसेज देने वाली फिल्म थी. लेकिन फिल्म में लीजा रे , सीमा विश्वास, सरला करियावासम, लीज रोल में थीं. सरला करियावासम जो छोटी सी उम्र में विधवा हो जाती है और विधवा आश्रम आने के बाद भी वह अपनी आम जिंदगी के सपने देखती है. वही लीजा रे जो एक विधवा है लेकिन थोड़ी अलग है और अपने सपनों को पूरा करना चाहती है. सीमा विश्वास इन दोनों का साथ देती है. फिल्म में इन तीनों एक्ट्रेस ने बहुत ही शानदार एक्टिंग पेश की थी.
द लास्ट कलर- इसके अलावा साल 2019 में रिलीज हुई फिल्म द लास्ट कलर (The Last Color) में भी विधवा महिला के संघर्ष को बयां करती है. इसमें नीना गुप्ता (Neena Gupta) ने विधवा औरत का किरदार निभाया था फिल्म में दिखाया गया है कि किस तरह एक औरत विधवा का अपना धर्म निभाने के लिए सारे सुखों को त्याग देती है.
पगलैट- फिल्म में सान्या मल्होत्रा ने विधवा संध्या का किरदार निभाया है. संध्या की शादी के कुछ दिन बाद ही वो विधवा हो जाती है. इतने कम समय में उसे पति का प्यार मिल ही नहीं पाया था तो वो अपने पति के निधन पर उसको कुछ बुरा फील ही नहीं होता है. वो तो अपने पति के निधन की तस्वीर पर कमेंट और लाइक गिनने में बिजी होती है. संध्या के पति ने 50 लाख का इंश्योरेंश कराया था और उसकी नॉमिनी संध्या को बनाया था. पैसों के लिए रिश्तेदारों की सलाह को फिल्म में बेहतरीन ढंग से पेश किया गया है.
HIGHLIGHTS
- अंतरराष्ट्रीय विधवा दिवस आज मनाया जा रहा है
- समाज में विधवाओं को सम्मान और हक दिलाने की कोशिश
- विधवा के किरदार से हिट हो गई थी ये फिल्में