अपने अंतिम समय में ऋषि कपूर भले ही बहुत गंभीर ट्वीट करते रहे हों, लेकिन कई बार उनके ट्वीट अजीब तरह के हुआ करते थे. उन्हें देख-पढ़ कर शक होता था कि कहीं उनमें नशे की कुछ बूंदें तो नहीं हैं. पता नहीं ऋषि कपूर वे ट्वीट गुस्से में करते थे या मदहोशी में, लेकिन शराब से उनका रिश्ता था बहुत पुराना. कपूर खानदान पर मधु जैन की लिखी किताब 'द कपूर्स' में ऋषि कपूर वाले चैप्टर की शुरुआत ही शराब के जिक्र के साथ होती है.
किस्सा कुछ यूं है कि ऋषि कपूर जब ढंग से चलना भी नहीं सीखे थे, तभी से आईने के सामने खड़े होकर तरह-तरह के मुंह बनाकर एक्टिंग करने लगे थे. उन्हीं दिनों एक दिन उनके पिता राज कपूर ने अपने ग्लास से एक घूंट व्हिस्की ऋषि को पिला दी. इससे पहले की राज कुछ समझ पाते ऋषि ने कहा- पापा, ये तो ब्लैक लेबल है और फटाफट आईने के सामने पहुंचकर शराबी की एक्टिंग शुरू कर दी.
दरअसल ऋषि कपूर एक ऐसे एक्टर थे जिनके न सिर्फ खून में एक्टिंग थी, बल्कि वे तो जब मां का दूध पीते थे, तब भी एक्टर ही थे. अपनी एक्टिंग की शुरुआत का जिक्र करते हुए ऋषि कपूर ने बताया था कि उन्होंने पहला अभिनय दादा पृथ्वीराज कपूर के नाटक 'पठान' में किया था. इस नाटक में वे एक दुधमुंहे बच्चे थे, जो चुपचाप खटिया पर सो रहा था.
जब वे चार साल के थे तो 'श्री 420' के सेट पर जाया करते थे और जब आठ साल के हुए तो अपने दादा के साथ मुगल-ए-आजम के सेट पर जाते थे. मुगल-ए-आजम के सेट पर ऋषि कपूर को प्लास्टर ऑफ पेरिस के बने खंजर और तलवार बहुत पसंद आते थे. महान फिल्म निर्माता के आसिफ ने यहीं उन्हें एक खिलौना खंजर उपहार में दिया था.
जब वे 16 साल के हुए तो अपने पिता की महान किंतु असफल फिल्म मेरा नाम जोकर में उन्होंने राज कपूर के बचपन की भूमिका निभाई. इस फिल्म में बाल कलाकार के तौर पर उन्हें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला. जिस पुरस्कार को पाने में नायकों का पूरा जीवन बीत जाता है, वह पुरस्कार ऋषि कपूर को औपचारिक करियर शुरू करने के पहले ही मिल गया. इस पुरस्कार के महत्व को इस बात से समझा जा सकता है कि पुरस्कार मिलने के बाद ऋषि जब राज कपूर के पास गए तो उन्होंने कहा जाओ इसे अपने दादा को दिखाओ.
Source : News State