Good Newwz movie review :
शुक्रवार को अक्षय कुमार और करीना कपूर तथा दिलजीत दोसांज और कियारा आडवाणी की फिल्म Good newwz रिलीज हो रही है. फिल्म काफी एंटरटेनिंग है. शुरुआत के कुछ मिनट आपको बोरिंग लगेंगे, कई बार लगता है जबरन कॉमेडी के पंच जोड़े जा रहे हैं, लेकिन कुछ समय में ही फिल्म रफतार पकड़ती है और फिर दर्शकों को बांधे रखने में सफल होती है. फिल्म में दिलजीत दोसांज की एंट्री धमाकेदार और उनकी एंट्री के बाद फिल्म काफी शानदार हो जाती है. फिल्म में कॉमेडी का तड़का जो दिलजीत ने लगाया वो अक्षय कुमार भी लगाने में सफल नहीं हो पाते हैं. यह अलग बात है कि एक्टिंग में अक्षय की बराबरी या फिर तुलना नहीं की जा सकती लेकिन दिलजीत ने न तो स्क्रीन प्रेजेंस में कमी की न ही किरदार के साथ न्याय करने में कोई कमी छोड़ी. यह कहा जा सकता है कि कॉमेडी में दिलजीत कहीं भी अक्षय से 19 नहीं नजर आए. करीना कपूर भी शानदार भूमिका निभाती हैं. उनकी एक्टिंग फिल्म में देखकर लोगों को एक मां की पशोपेश को समझने में काफी मददगार होगी और जो लोग अपनी मां की इज्जत नहीं करते उन्हें सोचने पर मजबूर करती है. कियारा ने भी अपनी एक्टिंग से साफ किया है कि वह अब बॉलीवुड में लंबे समय तक टिकने के लिए आईं हैं.
फिल्म का म्यूजिक कुछ कमजोर है. लगता है कि इस फिल्म में म्यूजिक पर थोड़ा भी ध्यान नहीं दिया गया है. फिल्म में पूरा ध्यान कहानी पर ही रखा गया है. एक गंभीर बात को कॉमेडी के जरिए कहा गया है. फिल्म का डारेक्शन, कोरियोग्राफी, आर्ट, स्क्रीनप्ले भी बेहतरीन है. दर्शकों को इस वजह से फिल्म पसंद आएगी. मेरी समझ में फिल्म काफी एंटरटेनिंग है और इसे दर्शकों को जरूर देखना चाहिए.
कहानी
यह फिल्म नए जमाने के ब्रह्मा की कहानी भी कही जा सकती है. फिल्म IVF (In Vitro Fertility) सेंटर के जरिए नि:संतान दंपती को बच्चे के सुख से आल्हादित करने की कहानी है. यहीं से फिल्म का ट्विस्ट पैदा होता है जो पूरी फिल्म को रोचक बना देता है. फिल्म में एक मां के संघर्ष और गर्भावस्था के दौरान उसके जीवन में आने वाले शारीरिक से लेकर वैचारिक बदलाव को भी दर्शाता है. वहीं यह फिल्म यह भी दर्शाने की कोशिश करती है कि कैसे एक पुरुष महिला से इतर अपनी एक सोच पर जैसे अडिग या कहें चिपका रहता है. महिला जहां गर्भस्थ शिशु के साथ लगाव महसूस करती है और उसके लिए दिन ब दिन अपनी जीवनशैली को बदलती है, और कई बार न चाहते हुए भी पेट में पल रहे बच्चे के लिए अपनी तमाम इच्छाओं को दरकिनार करती है, यह सब यह फिल्म बखूबी दर्शाती है.
दूसरी ओर जहां कई पुरुष गर्भ में पल रहे शिशु में अपने जीवांश तलाशने की कोशिश करते हैं, ऐसे लोगों पर भी इस फिल्म बखूबी कटाक्ष किया गया है. फिल्म यह भी बताने में पूरी तरह कामयाब होती है कि आज के कामकाजी जीवन में लोग बच्चे पैदा करने पर ध्यान नहीं देते हैं. मियां बीवी जब कामकाजी होते हैं तब पहले उन्हें बच्चे जरूरी नहीं लगते लेकिन समय बीतने के साथ ही बच्चे की अहमीयत जीवन में समझ में आने लगती है.
Source : Rajeev Mishra