टाइम तो सबका आता है, मेरा दौर आएगा... ये डॉयलॉग जब सिनेमाघरों में सुनाई दिया तो पूरा थियेटर सीटियों से गूंज उठा. एक्टर जॉन अब्राहम और इमरान हाशमी की मोस्ट अवेटेड फिल्म 'मुंबई सागा' को फाइनली सिनेमाघरों में रिलीज कर दिया गया है. फिल्म में जॉन अब्राहम एक गैंगस्टर के किरदार में नजर आ रहे हैं जबकि इमरान हाशमी एक पुलिस अधिकारी की भूमिका में दिखाई दिए. इन दोनों के बीच की लड़ाई और धमाकेदार ऐक्शन ही इस फिल्म का अहम हिस्सा है. फिल्म में बालासाहेब ठाकरे से प्रेरित एक किरदार है भाऊ (महेश मांजरेकर), जो अपनी सभा में कहते हैं कि "मुंबा देवी का शहर है ये, हमारी आई है.. तो आज से शहर का नाम होगा मुंबई..", और यहां से शुरु होती है मुंबई सागा. फिल्म में संजय गुप्ता ने उस वक्त की कहानी को दिखाने का प्रयास किया है. जब मुंबई को बॉम्बे के नाम से जाना जाता था. और शहर में अंडरवर्ल्ड के कई गैंग सक्रिय थे.
मुंबई में भाईगिरी के इर्दगिर्द घूमती है कहानी
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बॉम्बे पर गैंगस्टर गायतोंडे का राज था. उसके आदमी आम दुकानदारों से आए दिन मनचाहा हफ्ता वसूली करते थे. शहर भर में कोई उनके खिलाफ आवाज नहीं उठाता था. एक दिन एक 12 साल के लड़के ने उनके जुल्म के खिलाफ आवाज उठाई, लेकिन उसी वक्त गायतोंडे के आदमियों ने उसे मार मारकर अधमरा कर दिया. अर्जुन के बड़े भाई अर्मत्य राव यानी जॉन अब्राहम को जैसे ही इस घटना के बारे में पता चला. तो उसके अंदर बदले की आग में ऐसा उठी कि वो बिना सोचे समझे उसने अपराध की दुनिया में कूद गया. अपने सबसे बड़े दुश्मन गायतोंडे को खत्म करना ही अमर्त्य राव का लक्ष्य बन जाता है. और इस काम में उसका साथ देते हैं मुरली शंकर यानी सुनील शेट्टी, ड्रग डीलर नारी खान मतलब गुलशन ग्रोवर और किसानों का एक नेता भाऊ यानी महेश मांजरेकर.
अमर्त्य राव अपने दोस्तों के साथ एक नया गैंग बनाता है. और यहीं से वो पुलिस के रडार पर आ जाता है. यहां एंट्री होती है एनकाउंटर स्पेशलिस्ट विजय सवांरकर यानी इमरान हासमी की. फिल्म में अमर्त्य ऐलान करता है कि आज से कोई गुंडों को हफ्ता नहीं देगा. वह अकेला 50-50 गुंडों को पीटता है. जेल जाकर भी गायतोंडे की नाक के नीचे से बच निकलता है. वो इतना बड़ा अपराधी बन जाता है कि पुलिस को उस पर 10 करोड़ रुपये का इनाम रखना पड़ता है.
कहानी में नयापन नहीं
जॉन अब्राहम को हम पहले भी मुंबई के डॉन के रूप में देख चुके हैं. फिल्म शूटआउट एट लोखंडवाला और मुंबई सागा की कहानी में कुछ नया नहीं है. फिल्म का पीला-हरा कलर टोन भी यहां उनकी पुरानी ऐक्शन-अपराध कथाओं जैसा है. अपराधी-नायकों का अंदाज हमेशा की तरह स्टाइलिश है. उनके डायलॉग और ऐक्शन ध्यान खींचते हैं. ऐसे में अगर आप बगैर दिमाग खर्च किए देखें तो मुंबई सागा पसंद आएगी. फिल्म का पीला-हरा कलर टोन भी यहां उनकी पुरानी ऐक्शन-अपराध कथाओं जैसा है. अपराधी-नायकों का अंदाज हमेशा की तरह स्टाइलिश है. उनके डायलॉग और ऐक्शन ध्यान खींचते हैं. ऐसे में अगर आप बगैर दिमाग खर्च किए देखें तो मुंबई सागा पसंद आएगी.
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फिल्म में दमदार डॉयलॉग्स की भरमार
इमरान हाशमी लंबे समय बाद थोड़े बर्दाश्त करने लायक हैं. वह यहां अपने कुछ-कुछ खोए अंदाज में संवाद बोलते हैं और ऐक्शन दृश्यों में भी थोड़े रोमांटिक लगते हैं. सुनील शेट्टी, गुलशन ग्रोवर और प्रतीक बब्बर समेत बाकी कलाकारों को देखकर ऐसा लगता है कि मानो इन्हें जबरदस्ती फिल्म में जोड़ा गया है. फिल्म की कहानी 80 के दशक की है, लेकिन फिल्म के गाने यो यो गनी सिंह ने गाए हैं. जोकि बहुत ही मजाकिया लगता है. लेकिन फिल्म के डॉयलॉग्स जरूर पसंद आते हैं. पुरानी फिल्मों की तरह इस फिल्म के भी कुछ डॉयलॉग्स को दोस्तों के साथ दोहराया जा सकता है.
HIGHLIGHTS
- सिनेमाघरों में आई फिल्म मुंबई सागा
- फिल्म की कहानी में नयापन नहीं
- सुनील शेट्टी के रोल जबरन लिखा गया