हाल ही में दिग्गज अदाकारा शबाना आज़मी ने इस साल भारतीय सिनेमा में 50 साल पूरे किए है. आर्ट और कमर्शियल फिल्मों में अपनी अदाकारी दिखा चुकीं शबाना आजमी ने अपने करियर में हर तरह की भूमिका निभाई है. आज भी उनकी गिनती सिनेमा जगत की बेहतरीन अदाकाराओं में आता है. राजेश खन्ना के साथ उनकी जोड़ी हिट थी और वुमन ओरिएंटेड फिल्मों में भी उनका कोई जवाब नहीं था. देखिए उनकी बेहतरीन फिल्मों की लिस्ट.
इन अवॉर्ड से हो चुकी है सम्मानित
अंकुर के बाद शबाना आजमी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. वह आर्ट फिल्मों का चेहरा बन गईं. आर्ट के बाद उन्होंने कमर्शियल फिल्मों में भी काम किया और नाम कमाया. उन्होंने 60 साल के करियर में 160 से ज्यादा फिल्मों में काम किया है. अपनी उम्दा अदाकारी के लिए शबाना ने 5 नेशनल अवॉर्ड अपने नाम किया है. वह पद्म श्री और पद्म भूषण से भी सम्मानित हो चुकी हैं.
इस विवादित फिल्म में किया काम
दीपा मेहता निर्मित और निर्देशित फायर 1996 की सबसे विवादित फिल्मों में से एक है. शबाना आजमी ने नंदिता दास के साथ लीड रोल निभाया. फिल्म की कहानी होमोसेक्सुअलिटी पर आधारित है. फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे जेठानी (शबाना) को अपनी देवरानी (नंदिता) के बीच नजदीकियां बढ़ जाती हैं. एक्ट्रेस ने बताया कि फिल्म की स्क्रिप्ट पढ़ने के बाद वह इस फिल्म को लेने में झिझक रही थईं. उन्हें काफी ज्यादा डर था कि इसका असर कहीं उनके काम पर ना पढ़ें. हालांकि, उन्होंने अपने पति जावेद अख्तर और सौतेली बेटी जोया अख्तर के समर्थन से आगे बढ़ने का फैसला किया.
एक्ट्रेस ने शेयर किया एक्सपीरियंस
"मुझे आपको बताना होगा कि जब मुझे इसके बारे में बताया गया, तो मुझे स्क्रिप्ट बहुत पसंद आई थी. लेकिन, मैं झुग्गियों में काम कर रही थी और मुझे लगा कि इसका इस्तेमाल मेरे खिलाफ बहुत ज्यादा किया जाएगा, क्योंकि जैसा कि होता है, जिन महिलाओं के साथ मैं काम कर रही थी, वे सोचती थीं कि मेरा उन पर बहुत बुरा प्रभाव है, मैं उनसे अपने फैसले खुद लेने के लिए कहूंगी और इस तरह की बातें करती हूं,'' उन्होंने कहा. "मेरा पूरा परिवार समर्थन में सामने आया. जावेद ने कहा, 'देखिए, ऐसा नहीं है कि इससे आपको ईंट-पत्थर नहीं मिलेंगे. लेकिन, अगर आप सोचते हैं कि आप इसका बचाव कर पाएंगे, अगर आपको लगता है कि इससे ऐसा नहीं होगा." जोया बहुत छोटी थी, मुझे लगता है कि वह 18 साल की भी नहीं थी. मुझे नहीं पता कि क्या करना है. उसने पूछा, 'आपको स्क्रिप्ट पसंद है या नहीं?' मैंने कहा, 'मुझे स्क्रिप्ट बहुत पसंद है.' उसने कहा, 'फिर?' तो मैंने कहा, 'लेकिन यह एक विषय है.' उसने कहा, 'तो?' 18 साल की उम्र में उसने यह कहा! इसलिए मैंने सोचा, युवा कैसे सोचते हैं यह देखें और हम कैसे सोचते हैं. शबाना ने कहा, ''मैं भावुक हो गई और मुझे लगा कि यह संवेदनशील तरीके से किया जाना चाहिए, जो किया गया.''
इन फिल्मों को दोबारो रिलीज करने की ईच्छा जताई
शबाना ने यह भी इच्छा जताई कि उनकी फिल्में अर्थ (1982), मासूम (1983), मंडी (1983) और मकड़ी (2002) दोबारा रिलीज हों. राजनीतिक रूप से जागरूक होने की अपनी यात्रा के बारे में उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि एक समय मेरे पिता को निराशा हुई होगी जब उन्होंने देखा कि मुझे राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं थी. मुझे अखबार पढ़ने में भी कोई दिलचस्पी नहीं थी और उन्होंने मुझे कभी धक्का नहीं दिया.
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